शनिवार, 29 दिसंबर 2012

मत कहो कि हार गई


मत कहो कि हार गई .....कितनों का ज़मीर जिंदा कर गई !!!
सलाम है उसे 
बहुत शर्म की बात हैं  हमें   चल्लू   भर  पानी  मैं  डूब   मरना  चाहिए ,उस से भी शर्म  की बात इन नेताओ  की बयानबाजी  हैं अब भी चुप  रहना है तो  घर से  मत निकलना    मत कहना की  किसी ने आपको कुछ कहा है 
कुछ गलत हरकत की है  आपके साथ  आप इस लायक ही हो  तब तो एक तो 39 साल  से बम्बई  के अस्पताल  मैं गम सुम पड़ी है  और एक दामिनी  आज माँ  को गोद मैं  समां गई  और कल  किसी और की बहु बेटी 
समां  जाएगी   आप  एक ही काम  कर सकते  हो  हाथ  मैं मोमबती  लेकर मरने वाली बेटी बहु  के लिए दुआ  और अत्मा  की  के लिए  प्राथना अब बस भी करो और घर से निकल  के इस  सरकार  के कपडे खोल  दो  अपना दुर्गा रूप दिखा दो  कहने को तुम दुर्गा नहीं हो  हम देखना चाहते हैं इस दुर्गा रूप  को इस इन्टरनेट की और फसबूकिया  दुनिया से बहार निकल  के कुछ बोलो 
ये   नेता  और उनके सु पुत्र  बयानबाजी  करते हैं  क्या हम लोग मर गए हैं क्या नेता  किसी दूसरी फेक्टरी  मैं   बनते  हैं क्या  वो भी हम  लोगो ने बनाये हैं वो बोल सकते हैं खुले  आम तो हम लोग चुप  क्यूँ है 
सिर्फ  क्या हम लोग 2 दिन  हल ही कर सकते हैं  क्यूँ नहीं हम लोगो ने  उस  दामिनी  को  हिंद्स्तान से  बाहर  इलाज़  के लिए भेजा आज  उस  दामिनी की  राख  आ रही हैं  उस राख  का तिलक  करके  कसम खाओ  की अब और नहीं 
 दामिनी सिर्फ दो स्थति में ही बच सकती थी- अगर डॉक्टर भगवान होते या हमारे नेता इंसान होते!!  वो दोनों  ही इस हिन्दुस्तान  मैं नहीं हैं  तो हमारी  दुआ  भी कहा काम  करती 
अब भी तो हम सब  के मुह  से ये निकला ता है की प्रयास और प्रयास 
और इस सरकार  को ही देख लो की इस साल  इस ने क्या  है  बलात्कार पीड़ितों  के लिए 
बलात्कार पीड़ितों को इंसाफ और मदद दिलाने के लिए यूं तो सरकार और कानून दोनों ही नये नयी स्कीम और योजनाएं शुरू कर देते हैं. लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि ये सिर्फ योजनाओं के नाम पर एक भद्दा मजाक ही साबित होती हैं जो बलात्कार पीड़ित के दर्द को और बढ़ा देती है.
अपराध या ज्यादती के शिकार पीड़ितों को मुआवजे के लिए सरकार ने लीगल सर्विस अथॉरिटी तो बना दी. लेकिन इस साल सिर्फ चार पीड़ितों को 12 लाख का मुआवजा मिल सका जबकि इस साल रेप के 635 मामले दर्ज हुए. लीगल सर्विस अथॉरिटी रेप, तेज़ाब, अपहरण और बाल उत्पीड़न के शिकारों के लिए बनाई गई. सरकार ने इस स्कीम के लिए 15 करोड़ की राशि भी तय कर दी. लेकिन ये रकम पीड़ितों तक नहीं पहुंच पा रही.अध्यक्ष, दिल्ली महिला आयोग की अध्‍यक्ष बरखा सिंह ने कहा, 'पहले ज्यादा अच्छी व्यव्स्था थी. उसको अपने इलाज के लिए कुछ पैसे की व्यवस्था हो जाती थी.'
जाहिर है पीड़ितों को मुआवजा मिलना और मुश्किल हो गया है. ऐसे पीड़ितों को इलाज और कानूनी लड़ाई का खर्चा भी खुद ही उठाना पड़ रहा है.


गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

अब और सहन नहीं होता है


अब और सहन  नहीं  होता है 

देख  इस देश  की हालत  उस दिन अखबार  मैं 
इस कड़क  ती  ठंड  मैं पसीने  की बूंद   भी  खून  बन  गई 
एक बेटी , बहन  की इज्जत  तार - तार-
देख  कर भी लोगो  से यही सुना  दिल्ली  तो दिलवालों 
की हैं 
गलियाँ  बदल  लो , रास्ता  बदल  लो 
अपना  चेहरा  ढक  लो  अपना पहनावा  बदलो 
पर मैं पूछता हूँ  की ये इन्सान  किस फेक्टरी  मैं बदने जाऊ  मैं 
इन  पुरषों  को  कैसा  नकाब  पहनाऊ 
इन से बचने के लिए मैं  कैसा  जिस्म  बनवाऊ 
इस प्रेम  की परीभाषा  कैसे  समझाऊ 

उस  की बीवी  मर गई थी  वो बहुत हतास  था 
वो तो मनोरोगी था उस की यादास्त  ठीक नहीं थी 
क्या ये कारण  काफी है  एक बलात्कारी  को बचाने 
और एक बलात्कारी से सहानुभूति  रखने के लिए 
कानून  को दोष  कब तक देने  हम सब का दाईत्व 
पूरा हो जाता है

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

खूब पहचानती हूँ मैं तुम को

खूब पहचानती हूँ मैं तुम को 
और तुम्हारे इस  समाज 
और इस समाज  के थेकेदारों  को 
जिस के नाम पर तुम लोग  
मेरी  इज्जत  तार- तार  करते हो  
और फिर बोलते हो की वो तो मनोरोगी  था
 मैंने ही उस को भड़काया था
 हाँ  भड़काया तो मैंने ही था 
 तुम को जब तुम को पैदा  करने की सोची
9 महीनो तक  संताप  सहती रही  पर
 तुम जैसे सामाजक  पैदा  हुवे 
हाँ  भड़काया  तो मैंने ही था  अपनी आत्मा  को
 की तुम से निश्चल  प्रेम  किया  
तुम को अपनी आत्मा  सोप  दी 
तुम जानते हो इस संसार में
 तुम कैसे जीवित हो 
इस वक्स्थल  से तुम को सीच -सीच  कर पला  है
 मैने ही अपने 
 विभिन्न रूपों में तु्म्हें उबारा है
माँ, भगिनी, प्रेयसी  और बेटी बनकर 
तुम्हें संबल दिया मैं ही तुम  
को पिता  बनने  का दर्जा  दिया है 
आज  तुम मुझे नहीं नोंचते तुम 
अपनी माँ  माँ, भगिनी, प्रेयसी बेटी के साथ बलात्कार  करते हो जिस योनि को तुम आज लहुलुहान  करते हो उस योनि ने तुम को इस संसार दिया है जिन छातियों को तुम लहुलुहान करते हो उन 
 वात्सल्य  से मैंने  तुम्हारे लहू को सींचता है 
जिस  खून की तुम गर्मी मुझे  दिखाते हो 
वो खून  तो मेरा ही है 
तुम  तो  जन्म  लेते  ही मेरे पर अश्रित  थे 
हर  भय ,डर   से मैं ही तुम को  उभारा  है 
और आज भी तुम मेरी ही चोखट 
के भिखारी  हो और सदा  रहोगे 
इसी  लिए तो  अब तुम  हीन  भावना  के 
शिकार  हो  गए हो
कितनी दयनीय  दशा  हो गई तुम्हारी
अब मुझ पर तुम्हारा कोई भी वार
काम  नहीं  करेगा
मैं तुम को पहचान  गई हूँ
..........सावधान .....
बाजी  आज मेरे हाथ  है षड़यंन्त्र की तो तुम  कोशिश
कभी कभी   मत करना
मेरी आँखों में अँगार है
और……तुम्हारा रोम-रोम
मेरा कर्जदार है
वो तो मनोरोगी  था , वो  उस को उसकी   यादस्थ  भी ठीक नहीं है अगर  ऐसा  था तो  उस ने  अपने घर मैं फांसी  क्यूँ नहीं लगाई
उस ने मेरी इज्जत  तार - तार  कैसे  कर दी  उस को तो ये दुनिया क्या या याद  ही  नहीं है

रविवार, 9 दिसंबर 2012

नारी


कभी आसमान तो कभी  धरती  भी  कहा करते हैं 
फिर  नारी  की समुन्दर से तुलना किया करते है 
पता नहीं क्यों लोग लड़की को बेजान कहते हैं ? 
फिर एक नारी को मर्दो की शान कहते है  
उन  मैं भी उनकी इज्जत आबरू कहते हैं ?
फिर उस लुटी नारी को किस्मत की मारी कहते हैं 
 कभी आसमान तो कभी  धरती  भी  कहा करते हैं 
फिर  नारी  की समुन्दर से तुलना किया करते है 
लुट के आबरू दबा के पैरों मैं 
फिर उसी को ही बदनाम किया करते हैं 
न जाने क्यों लोग 
उसी मैं अपनी शान समझ ते हैं ?
लुट के अस्मत- लुट के आबरु 
लुट के उन  की जिंदगी 
घर आके नारी को ही माँ कहते हैं 
न जाने क्यों लोग इस मैं भी  मर्दों  की शान कहते है ?
कभी उस को सीता कभी उस को गीता 
कभी उस को द्रोपती   कहते हैं ?
फिर उसी नारी को करके खड़ा  
अपने ही घर मैं बे आबरू करते हैं 
फिर उसी  दुर्गा नारी की पूजा करते हैं

वो और मैं

हँसने से पहले उन्होंने मुझे कहा था 
की तुम रोना नहीं 
मैं हँसने का प्रयास  करता रहा और 
वो मुझे रुलाते चले गए 
मैं रोता चला गया वो हँसते चले गए 

कहा एक दिन उन्होंने हमें  कह भी दो एक कहानी 
मैं कह भी कैसे देता  आज तो अंशुओ की आहत सुने दे रही थी 
कभी प्रयास किया मैंने 
और एक किस्सा बनता चला गया 
मैं किस्सा कहता चला गया वो किस्सा बनाते चले गए  
मैं कहानिया बनता गया वो मिटाते  चले गए 

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

रूपली

कमावण लागया रूपली जद हुया जवान
कागद रो जग जीत गे हू या घणा परेशान

जग भुल्या घर भुलग्या , भुलग्या गाँव समाज
गाँव री बेठक भूल्या , भुलग्या खेत खलिहान 

बचपन भुलया, बड़पण भुलया, भुलया गळी -गुवाड़
बा बाड़ा री बाड़ कुदणी, पिंपळ री झुरणी बो संगळया रो साथ

कद याद ना आव बडीया बापड़ी , घणा दिना सूं ताऊ
काको भूल्या दादों भूल्या , बोळा दिना सूं भूल्या माऊ

इण कागद री माया घणेरी यो कागद बड़ो बलवान
कागद रो जग जीत गे हू या घणा परेशान

गाँव रो खेल भूल्या, बचपण मेल रो भूल्या
गायां खूँटो भूल्या , पिंपळ रो गटो भूल्या

राताँ री बाताँ बिसराई , मांग्योड़ी छा बिसराई
धन धन में भाजताँ बाजरी गी ठंडी रोटी बिसराई

कभी-कभी

चंद लम्हो से मिनट , मिनट से घंटे 
घंटो से तर-बतर पल-पल दिन जया करते है 

कभी-कभी हम किसी एक को याद रखने मे 
किसी ओर को भी तो भूल जया करते है

गर्मी सर्दी वर्षा बसंत बहार 
हर साल ये जरूर आया करते है 

मोसम तो आते जाते रहते जानी 
लेकिन सायद ही कभी भूले याद आया करते है

ये तो जालिम जमाने का दोष है भाई
हम तो बहुत याद करने की कोशिश करते

कभी-कभी तो पास आ कर ठहर जाया करते है
क्या करे हर बार ये कमबख्त काम आ जया करते है

बहाने नहीं है ये दोस्त मेरे सच है
जिंदगी के सफर में कभी-क भूले बिसरे भी याद आया करते है

दूल्हा

एक अदद ईनसान जो है बड़ा ही खुश
चमक चाँदनी से भूल गया सारे दुःख
चारों ओर बज रहे हैं बड़े गाजे बाजे
साज धज कर के वो घोड़ी पे साजे

नाच-गा रहे है चारों और सारे लोग
तन्मय लीन हो के बड़े ही आत्म विभोर
छूट रहे है पटाखे – बंट रही है मिठाईयाँ
खुशी से गले पड़ रहे है हो रही है बधाइयाँ


में ने देखा फिर हुआ जरा सा सोच
जरा रुका फिर एक को लिया मैं ने रोक
हे महानुभाव ये क्या हो रहा है
किस खुशी में ये मोहल्ला जाग रहा है

पहले वो हंसा फिर जोर से रोया
अपने अंश्रुओं से मेरा कंधा भिगोया
पहले तोला सोचा फिर बोला हो के गंभीर
हे सज्जन ये शादी कर रहा है महावीर

सुर है सरगम है लय है तराना है
एक महा देवी के चरणों में इसे चढ़ाना है
ता उम्र ये अब उस गुड़िया का खिलौना है
जितना होना खुश होले फिर ता उम्र तो रोना है

ये खुशी-खुशी से खुदकुशी करने जा रहा है
आखिरी बार ये हंस-हंस के नाच, गा रहा है
कसाई बड़े में ये बकरा कटने जा रहा है
महा काली को बलि के लिए भा रहा है

हे महाबाहु ये तो बेचारा दूल्हा है
जो दुल्हन के लिए सजाया जा रहा है
स्वतंत्र जीवन से गुलामी में प्रवेश को तत्पर
एक ओर मर्द शादी के हवन में आहुति बन रहा है
क्रमश: जारी है
इस रचना के लेखक  मेरे बड़े भाई  संजय कुमार पारीक हैं 



गुरुवार, 29 नवंबर 2012

रोशनी -रोशनी

देखने का तो मन था की चाँद देखते हैं  पर 
आज टिमटिमाते तारो को देख ने लग गया 
ये  भी इतनी दुरी से केसे टिमटिमाते  रहते है
अपना एक संसार से लगता है उनका 
कोई भाई कोई कुछ हर एक रिश्तो मैं  बंधे  लगते है 
ये सब देख चेहरा मुरझा सा जाता है 
ये अपनी दुजिया बेगानी सी लगती है 
जैसे  कड़ी धुप मैं इस दुनिया का रंग उड़ गया हो 
और उस सूरज से रोशनी पाकर ये तारे टीम तिमाते रहते हैं 
वही रौशनी पाकर हम कैसे   कम करते रहते हैं 
न गम देखने को मिला न कोई शिकवा 
न धुप थी वह ना अँधेरा 
दुसरो से पारकर रौशनी  फिर भी कहते हैं 
हमारा भी होता है सवेरा 
काश ये मुझे भी कोई समझा दे  
सवेरा होकर भी नहीं होता सवेरा 
कोई मुझे देदे वो रोशनी जिसे कर दू इस दुनिया में सवेरा 

शनिवार, 24 नवंबर 2012

ये मेरा रंग मेरा

ना मुझे प्यार करने का हक है ? ना मुझे इकरार करने का हक है ?
मुझे तो बस ,हर किसी के  इशारों पे नाचने का ही हक है ||
ना मुझे कुछ पाने का हक है ?  .... मुझे तो बस  हर ................
पापा तो हर मेहमान से कहते है 
ये मेरी प्यारी है ये मेरी राजकुमारी है, नाजो से पाला है  
बस एक रंग का फर्क है , बस थोड़ी  सी काली है
मुझ पर तो आसमान ही टूट पड़ा  
सुनकर इतना मिटटी से मूर्त बन गई| 
हर ख़ुशी टूट गई एक सीरत बन गई ||
मन टूट - टूट कर बिखर गया , हर ख़ुशी  लुट गई 
मन के दिये तो कब के बुझ गए थे , अब दुनीया लुट गई  ||
 मुझे तो  एक रंग का फर्क  भी आज समझ मैं  आया  है
मुझे पैदा होने से पहले क्यों नहीं मार दिया  
मिटटी को तो मिटटी में ही मिलना था , क्यों नहीं मुझे मिटटी में ढाल दिया  ||
अब तो अपने ही पराये लगते है  अपने ही घर मैं अजीब -अजीब साये दीखते है 
बस मेरे हाथ मैं एक फोटो थमा दिया |
बस तू इसे प्यार कर ये हुकम सुना दिया ||
कैसे करू मैं एक अजनबी से प्यार  , कैसे ना करू मैं मुझ से प्यार 
ना इस को मुझ से प्यार है , ना आपको , ना इस दुनीया को 
ना उस खुदा को जिस ने मुझ मैं बे रंग भरे है 
 क्या मुझे इतना पूछने का हक है ?
क्या काले रंग की लड़की की शादी नहीं होती ?
क्या वो बोझ होती है ? 
क्या उन को प्यार करने का हक नहीं? 
क्या उनको जीने का हक नहीं ? 

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

विचार


आज सुबह उठ कर  चाय भी नहीं पी और सोचने बैठ गया
रात कुछ सोच कर सोया था की कल कुछ नया करुगा 
पर आज फिर मैं अपने मन को ही कचोटने बैठ गया 
सोच था कुछ नया कर गुजरुगा 
पर मैं अपने आप को ही खाने बैठ गया 
कल का हिसाब लगाना था पर ?
मैं हर साल का हिसाब लगाने बैठ गया 
हिसाब लगाने के चक्कर मैं सारा दिन निकल गया 
देखना था मुझे सुबह सूरज 
और अब डूबता सूरज को देखते .....................
लिखना था कुछ और 
लिखता चला गया कुछ और 
दिनेश पारीक 

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

ये मेरे बुजर्गो का खजाना

उम्र को देख कर तो कुछ नहीं कहा मैने
पर उनकी उम्र ने बहुत कुछ कहा था उस दिन 
जिंदगी भर की बेसर्मी से बच गया था उस दिन 
उस दिन पता चला इस उम्र के पड़ाव का 
हजारो मुश्किलो को पार करने के बाद ये ही 
तो एक दम भरने वाली चीज़ रहती है 
तकाजा , अनुभव , समझदारी ,
जिम्मेदारी , कुछ दर्द कुछ यादें 
कहा उस दिन मुझे की अब तुम इन्हें संभालना
उनकी आँखों के दर्द को समझ कर 
वादा तो कर दिया था मैंने पर ?
इस खजाने को कैसे  संभालू?
ये मेरे बुजर्गो का खजाना 

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

तन्हा

आजकल तो  वक्त  बदला बदला नज़र आता है |
इन  सालो में हवा का रुख भी मुड़ा मुड़ा नज़र आता है||
 दादा जी मेरे कहा करते थे पुरानी कहानिया
वो अपने  ज़माने  की बहुत सी निशानिया
की आज फिर वो नए  नए कपडे पहने नज़र आता है |
आजकल तो वक्त  बदला बदला नज़र आता है ||
खोखले लोग, सोच खोखली , खोखली बातें सारी।

सफ़र तन्हा है, वो भी कब तक झेलेंगे,रिश्तो मैं ना खून न पानी, फिर कब तक  होली खेलेंगे  
अभी तो कहतें हैं किसी की जरुरत नहीं,
देखते हैं कि बूढी उमर अकेले कैसे ढोलेंगे

दस्तूर दौर यही होगा रोएगी  खोखली  दुनिया सारी।
वो पुरानी बैठक  भी  तन्हा सी  लगती है || आजकल तो .....





बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

आज फिर जीने का मन करता है

आज फिर जीने का मन करता है 
आज की इस हवा को छुने का मन करता है 
कभी इस संघर्ष का अंत करने का मन करता है 
हर रोज़ एक नया सवेरा देखने का मन करता है 
कभी इस दो तिहाई मन को बाटने का मन करता है 
कभी इस नदियों की तरह छलकने का मन करता है ..................
कभी दुनिया का दर्द सहने का मन करता है 
कभी अकेले अकेले रोने का मन करता है >>>>>>>>
सपनो से अपने सपने चुराने का मन करता है 
कभी कभी इस दुनिया  को सपना बनाने  का मन करता है 
आज फिर वापिस लोटने का मन करता है >....................................
कभी उस धुप को पकड़ने का मन करता है 
कभी उस छाव को छुपाने का मन करता है 
फिर उस बचपन में जाने का मन करता है >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
फिर दोबारा माँ की लोरी सुन ने का मन करता है 
कभी बीते दिन को भूल जाने का मन करता है 
कभी कभी मर के भी जीने का मन करता है 
आज फिर जीने का मन करता है >>>>>>>>>>>>>>>>>>
दिनेश पारीक 

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

वो मेरा साया


वो मेरी परछाई, वो मेरा साया  
कुछ इस कदर से चाहते है  की
मुझे भी जलन होती है 
कभी अपनी परछाई से तो कभी अपने साये से 
न उन्हें कभी गम होता है  ना इनका प्यार कम होता है 
हर पल एक साथ चलते हैं 
एक दुसरे का हाथ पकड़ के 
एक दुसरे की राह पकडके 
ना कभी भूला था   रास्ता 
हर वक्त मेरे साथ होते हैं 
कभी मेरे साथ कोई सिकवा ना गिला 
ना इने रत का अँधेरा डरता हैं ना दिन के उजाले से ये डर के
 भागते है 
बस  दिन के उजाले मैं ये मेरी परछाई मेरे अंधार से बहार आकार 
मेरी तरह इस कडकती धुप में चलती रहती है 
तन्हा मैं हूं, तन्हा राहें भी | साथ तन्हाइयों से रहा मेरा.
खोई हूं इस कद्र जमाने में | पूछता हूँ  मेरे साये  से  पता मेरा.
कल रात सोचा था रोशनी का इंतज़ार करेंगे,
छिटक कर दूर हर बुरे ख्वाब को,
महबूब  यार का फिर एहतराम करेंगे.

मगर ये क्या हुआ कि,
आज फिर सूरज रूठ गया,
अपनी रोशनी को समेट,
आज मेरे साये को भी जुदा कर गया.

बुधवार, 19 सितंबर 2012

मनहूस


मुझे तो  लोगो  ने  मनहूस  करार  दे दिया
मुझे तो अपनों ने सदाचार से दुराचार दे दिया
वहा भटक भी जाता मैं  जिन गलियों मैं वो थे
वहा रूक भी जाता मैं जी गलियों मैं वो थे |
हम तो उस दिन भी मोहबब्त करने गए थे
जिस दिन उन होने मुझे मुझे बे वफ़ा करार देदिया ||
मनहूस तो सायद था  ही में
मनहूस ही जन्मा  था मैं
तभी तो आपने मुझे कन्यादान का पुकार देदिया ....
मोहबब्त के कीड़े  मर गए दिल ही दिल में
 दीवाना बे मोहबब्त किये  मशहूर हो गया
जहाँ दिन के उजालों में  खुला प्यार चलता हो
वहा उनकी शादी  देखने को भी मैं मजबूर हो गया
 किस को पुकारू में लोगो ने चार कन्धा दे दिया
बारिश ने भी साथ न दिया  फिर मिटटी के  हवाले कर दिया
मुझे तो  लोगो  ने  मनहूस  करार  दे दिया
दिनेश पारीक

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मेरी इबादत पे शक क्यों होता है


तुम मुझे कहते हो अब की मुझे मोहब्बत से डर लगता है 
डरते तो तुम हो  और मेरी इबादत पे शक क्यों होता है
मैंने तो उन दिनों ही सारी जिंदगी जी ली थी 
अब तो मरने का भी गम नहीं है मुझे को 
काश वो दिन कुछ और लम्बे हो जाते 
शादी और सगाई के  बीच के वो दिन 
कुछ और  उधार मै ही मिल जाते 
जब देखा था तुम को मैंने | एक टक देखती रह गई थी 
कभी इतना अपने आप से गुम न हुई  थी 
बस पहली बार में ही प्यार कर बैठी
बात  तो उस वक़्त नहीं हो  पाई थी तुम से  | पर ?
तुम्हारी आँखों से ही हर सवाल का जवाब मिल ही गया था 
वो केसा अद्भुत प्यार और इबादत थी 
हर वक़्त तुम ही तुम दिखाई देते थे 
हर रोज़ आदत बदलती जा रही थी 
वो इंतजार वो लम्हा जाने कब आयेगा 
इस इंतजार में वो राते भी लम्बी हो जाती थी 
बस गुम सूम रहना  और तुम्हारे सपनो में खो जाना 
तुम भी अब कितने बदल गए हो ?
मैंने तो सपनो में ऐसा न देखा था 
इंतजार तो में अब भी करती हूं तुम्हारा 
पहले तुम से मिलने का और अब तुम्हारे घर आने का 
तुम पास तो आके देखो  में तो वही तुम्हारी खुशबू हूं
पहले में तुम्हारा अपने घर  में इंतजार करती  थी 
अब तुम्हारे घर में इंतजार करती हूं
में तो अब भी वही खुशबू हूं , तुम बस अपने प्यार से मुझे सींच के देखो 
एक बार मुझे छु  के देखो अब भी वही गहराई है मेरी इबादत में 
अब तो मैंने वो सब नाज नखरे छोड़ दिए हैं 
अब तुम्हारे नाज नखरे उठाने का मन करता है 
तुम मेरे पास आके तो देखो  अब भी वो ही  ऑंखें है 
जो तुम्हे कभी सकून देती थी 
तुम पास होकर भी नहीं हो 
तो ये ऑंखें मुझे  सिर्फ गमो का   पानी देती हैं 
कितनी बार समझती हूं   पर ये तुम्हे  ही प्यार करती है 
मुझे इंकार कर देती हैं
 दिनेश पारीक 




सोमवार, 10 सितंबर 2012

काफी वक़त गुजर गया है (2)

कभी कुछ जतन करता हूँ , कभी कुछ यतन करता हूँ |
फिर भी न जाने  क्यों  मैं उसी  मुहाने पर रहता हूँ  || ??
वक्त के पीछे तो मैं दोड़ नहीं सकता 
बस अपने पुराने ख्यालों मैं जीता हूँ 
वक्त  गुजरता जाता है नई बहु का राज आ जाता हैं 
हम अपने ही घर में बंद पड़े रहते हैं 
उनका स्वागत किया जाता है 
इस दुनिया को दोष दू , या इस ज़माने को दोष दू | 
इस पीढ़ी को दोष दू , या इस जवानी को दोष दू 
तुम सब को इस तरह बना दिया | जवान  तो हम भी  हुए  थे ,
कहूँ तो  ऐसे लगता है की जले पर नमक लगा दिया ||
फिर ना जाने  क्यों मैं तेरी लम्बी उम्र की दुआ करता हूँ ................
इस गोद मैं खेला करता था , अगुली पकड़ कर चला करता था 
 तुम को चलने  में तकलीफ हुई  तो घोडा भी बना करता था 
तुम मेरे होकर भी नए ज़माने के हो गए 
हम तो  अपने घर मैं ही   एक मेहमान  हो गए 
इस उम्र मैं  तेरे ज़माने के साथ चले की  कोशिश  करता हूँ 
फिर भी तुम दूर दिखाई देते हो 
मैं तो उसी मुहाने  पर रह जाता हूँ .............................
मैं तो जिंदगी को बोझ की तरह जी कर रवानगी ले  लूंगा
उस  वक्त   पास आ जाना मैं ख़ुशी ख़ुशी मर लुगा 
फिर ना जाने  क्यों मैं तेरी लम्बी उम्र की दुआ करता हूँ..

शनिवार, 8 सितंबर 2012

जिन को हमारी तलाश थी


आजकल वो  कहाँ   है ? जिन को हमारी तलाश थी
आजकल हम  कहाँ   है ?  उनको हमारी तलाश थी ||
 ख्यालों  मैं आजकल तो  ना चाँद  ना   जन्नत   जाते है |
बस सपनो मैं भी भटकते हैं श्मशान चले जाते हैं ||
उनकी दरिया दिली भी तो देखो
मेरे मरने के बाद उनके करीब रौशनी भी देखो
पूछा उस दिन लोगो ने इस  रास्ते पे केसे हो आप  ?
वो कहते चले गए
हम  भी सुनते चले गए
बोले हम तो आये ना थे कभी
पर उनके हाथ में तो मेरे श्मशान की मिटटी के साथ मेरा रकीब था
हमें तो विश्वास  बर्षों बाद हुआ
जब उन्हें  हमारी जगह एक  खुद्दार  की तलाश थी
वो बहुत दूर से लौट  रहे थे अँधेरे मैं
हर कोई पूछ रहा था   क्या है  हथेली  में  ?
कुछ बोलना चाहते थे पर
मेरे रकीब  ने कहा ये लोट रही है उनकी  राख   लेके श्मशान से खुशियों की तलाश में
आजकल वो कहा है ? जिन को हमारी तलाश थी
आजकल हम कहा है ?  उनको हमारी तलाश थी ||

दिनेश पारीक





मंगलवार, 4 सितंबर 2012

काफी वक़त गुजर गया है

काफी वक़त गुजर गया  है
यु ही खाट पे बैठे- बैठे 
अब आवाजे आती हैं रिश्तों की 
कभी रिसने की कभी  गांठ लगाने की 
अब आवाजें आती है 
कभी टूटने की  तो कभी जुड़ने की 
काफी वक़त गुजर चुका रिश्तो को  ढोते - ढोते 
अब तो खुद को ढूढता  हूँ रिश्तो में जीते - जीते 
वक्त नहीं ठहरता अहसास ठहर जाते है
यादो के भीतर से बस जख्म उभर आते है
कुछ खुशियों के पल दे जाते है 
कुछ ग़मों से दिल छिल जाते हैं 
रिश्तों से लिखा अब मिटने लगा है 
धुआं सा रह गया है जोश बुझने लगा है 
आज फिर वही आवाजें आने लगी गई 

रविवार, 2 सितंबर 2012

तुम न किसी की बेटी हो न किसी की बहिन


मैं
एक बहन
एक बेटी
एक औरत हूँ
तुम्हारी शब्दावली केवल उस औरत की बात करती है
जिसके हाथ साफ हैं
जिसका शरीर नर्म है
जिसकी त्वचा मुलायम है
और जिसके बाल खुशबूदार हैं
मेरी रग - रग में नफ़रत की आग भरी है
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो
की मेरी 
भूख   एक भ्रम है
और मेरा नंगापन एक ख्वाब
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्त्व को बयान कर सके
एक औरत जिसके सीने में
गुस्से से फफकते नासूरों से भरा एक दिल छिपा है
जब भी   सानिया मिर्ज़ा , मेरी कोम जेसी औरत  मेडल जीतती है 
तो बहुत ख़ुशी होती है हमारा दिल बाग बाग हो जाता है 
पर जब शर्लिन चोपड़ा   बॉलीवुड मॉडल औऱ अभिनेत्री ऐसा कहती है की 
मैं पैसों के लिए सेक्स करती हूँ तो हमें क्या महसूस होता है हमारी अंतर आत्मा पर क्या गुजरती है ?
बहुत दर्द होता है जितनी ख़ुशी मेडल जितने की होती है उतना ही दर्द 
होता है जेसे शर्लिन चोपड़ा ने अपना मन शरीर नहीं बेचा  हिंदुस्तान की नारी का   शरीर बिका है 
हिंदुस्तान की नारी किसी के  अपना मन समान ट्विट किया हैं 
क्या हिंदुस्तान मैं पब्लिसिटी  इतनी घटिया स्तर  की   हो गई है ?
 एक नज़र शर्लिन चोपड़ा के बयानों पर 
जब सुबह ये न्यूज़ पढ़ी  तो अब तक समझ मैं नहीं अत की आज अख़बार देखा ही क्यूँ  अपने आप से गिलानी महसूस हो रही है 
पर मैं गिलानी क्यूँ करू  गिलानी तो उसे करनी चाहिए थी जिस ने असा बयान दिया हो वो तो इतने बेशर्म है  की बयानों पर बयान दिए जाये और लोग चुप चाप उनके tawitter Accounts  के followe र बने मजे लेते रहे  
३०/०८/२०१२ आज की हॉट मॉडल औऱ अभिनेत्री शर्लिन चोपड़ा फिर सुर्खियों में हैं। इस बार ‘न्यूड’ होकर नहीं, बल्कि अपनी बयान से उन्होंने सबको चौंका दिया है।

 २१.०८ /.२०१२ शर्लिन चोपड़ा प्लेबॉय मैग्जीन के कवर पेज पर छाने से पहले विवादों में आ चुकी हैं। इस सिलसिले में एक प्रेस कॉंफ्रेंस के दौरान शर्लिन चोपड़ा ने कई बोल्ड बयान दे दिए। साड़ी में बेहद हॉट नजर आ रही शर्लिन ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि उन्होंने पेटीकोट नहीं पहना है।
०२/०९/२०१२ याद नहीं, पैसे के लिए कितने लोगों के साथ किया सेक्स : शर्लिन चोपड़ा
शर्लिन के ट्विट किया, मुझे अपने वेबसाइट ऑन कॉनटेक्ट@शर्लिन चोपड़ा डॉट कॉम पर कई फोन नंबर मिले, जो मुझसे शारीरिक संबंध बनाने चाहते हैं।

शर्लिन ने लिखा, अतीत में बहुत सारे मौके पर मैंने मनी लेकर सेक्स किया। मुझे याद नहीं कि मैंने कितने लोगों से साथ सेक्स किया क्योंकि मेरे साथ हम बिस्तर होने वाले कोई एक पुरुष नहीं था जिस मेमोरी में रखा जाए। लेकिन जब से मैं जुलाई में लॉस एंजिल्स से लौटी हूं, मैंने अपनी सोच के स्तर को चेंज किया है। मैं अब समझती हूं कि मैं उस तरह से फैसले लेने के लिए आजाद नहीं हूं और दायित्व के अधीन हूं।

मिस चोपड़ा ने लिखा कि मुझ में इस तरह का आनंद उठाने का साहस है। मैंने तस्वीर में सेक्स का मजा लिया है। वीडियो में सेक्स का आनंद उठाया है। मैंने सेक्स का मजा लिया पर मैं अब इसके रिजल्ट से असहज महसूस कर रही हूं। मुझे दुख है कि आप निराश होंगे क्योंकि अब मैं पेड सेक्स के लिए उपलब्ध नहीं हूं। क्योंकि मैंने महसूस किया कि मुझे शारीरिक संबंध बनाने में ना तो आनंद आ रहा है और ना ही खुशी मिल रही है 
तबी तो लोग एक औरत  को सिर्फ हम बिस्तर  होने के अलावा कुछ नहीं समझ ते है  लोगो की सोच असी औरत  के बयानों का ही ओ नतीजा  है 
क्या एसे बयानों को  रोका जा सकता है 
श्याद   नहीं क्यूँ की ये तो अपने शरीर को अपनी पेरसोनल प्रोपर्टी समझती है  
तुम न किसी की बेटी हो न किसी की बहिन
दिनेश पारीक