बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

तन्हा

आजकल तो  वक्त  बदला बदला नज़र आता है |
इन  सालो में हवा का रुख भी मुड़ा मुड़ा नज़र आता है||
 दादा जी मेरे कहा करते थे पुरानी कहानिया
वो अपने  ज़माने  की बहुत सी निशानिया
की आज फिर वो नए  नए कपडे पहने नज़र आता है |
आजकल तो वक्त  बदला बदला नज़र आता है ||
खोखले लोग, सोच खोखली , खोखली बातें सारी।

सफ़र तन्हा है, वो भी कब तक झेलेंगे,रिश्तो मैं ना खून न पानी, फिर कब तक  होली खेलेंगे  
अभी तो कहतें हैं किसी की जरुरत नहीं,
देखते हैं कि बूढी उमर अकेले कैसे ढोलेंगे

दस्तूर दौर यही होगा रोएगी  खोखली  दुनिया सारी।
वो पुरानी बैठक  भी  तन्हा सी  लगती है || आजकल तो .....





बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

आज फिर जीने का मन करता है

आज फिर जीने का मन करता है 
आज की इस हवा को छुने का मन करता है 
कभी इस संघर्ष का अंत करने का मन करता है 
हर रोज़ एक नया सवेरा देखने का मन करता है 
कभी इस दो तिहाई मन को बाटने का मन करता है 
कभी इस नदियों की तरह छलकने का मन करता है ..................
कभी दुनिया का दर्द सहने का मन करता है 
कभी अकेले अकेले रोने का मन करता है >>>>>>>>
सपनो से अपने सपने चुराने का मन करता है 
कभी कभी इस दुनिया  को सपना बनाने  का मन करता है 
आज फिर वापिस लोटने का मन करता है >....................................
कभी उस धुप को पकड़ने का मन करता है 
कभी उस छाव को छुपाने का मन करता है 
फिर उस बचपन में जाने का मन करता है >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
फिर दोबारा माँ की लोरी सुन ने का मन करता है 
कभी बीते दिन को भूल जाने का मन करता है 
कभी कभी मर के भी जीने का मन करता है 
आज फिर जीने का मन करता है >>>>>>>>>>>>>>>>>>
दिनेश पारीक 

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

वो मेरा साया


वो मेरी परछाई, वो मेरा साया  
कुछ इस कदर से चाहते है  की
मुझे भी जलन होती है 
कभी अपनी परछाई से तो कभी अपने साये से 
न उन्हें कभी गम होता है  ना इनका प्यार कम होता है 
हर पल एक साथ चलते हैं 
एक दुसरे का हाथ पकड़ के 
एक दुसरे की राह पकडके 
ना कभी भूला था   रास्ता 
हर वक्त मेरे साथ होते हैं 
कभी मेरे साथ कोई सिकवा ना गिला 
ना इने रत का अँधेरा डरता हैं ना दिन के उजाले से ये डर के
 भागते है 
बस  दिन के उजाले मैं ये मेरी परछाई मेरे अंधार से बहार आकार 
मेरी तरह इस कडकती धुप में चलती रहती है 
तन्हा मैं हूं, तन्हा राहें भी | साथ तन्हाइयों से रहा मेरा.
खोई हूं इस कद्र जमाने में | पूछता हूँ  मेरे साये  से  पता मेरा.
कल रात सोचा था रोशनी का इंतज़ार करेंगे,
छिटक कर दूर हर बुरे ख्वाब को,
महबूब  यार का फिर एहतराम करेंगे.

मगर ये क्या हुआ कि,
आज फिर सूरज रूठ गया,
अपनी रोशनी को समेट,
आज मेरे साये को भी जुदा कर गया.