कभी आसमान तो कभी धरती भी कहा करते हैं
फिर नारी की समुन्दर से तुलना किया करते है
पता नहीं क्यों लोग लड़की को बेजान कहते हैं ?
फिर एक नारी को मर्दो की शान कहते है
उन मैं भी उनकी इज्जत आबरू कहते हैं ?
फिर उस लुटी नारी को किस्मत की मारी कहते हैं
कभी आसमान तो कभी धरती भी कहा करते हैं
फिर नारी की समुन्दर से तुलना किया करते है
लुट के आबरू दबा के पैरों मैं
फिर उसी को ही बदनाम किया करते हैं
न जाने क्यों लोग
उसी मैं अपनी शान समझ ते हैं ?
लुट के अस्मत- लुट के आबरु
लुट के उन की जिंदगी
घर आके नारी को ही माँ कहते हैं
न जाने क्यों लोग इस मैं भी मर्दों की शान कहते है ?
कभी उस को सीता कभी उस को गीता
कभी उस को द्रोपती कहते हैं ?
फिर उसी नारी को करके खड़ा
अपने ही घर मैं बे आबरू करते हैं
फिर उसी दुर्गा नारी की पूजा करते हैं
बहुत ही प्रभावी एवं भावमय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब - यही दोगलापन टीसता है
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जवाब देंहटाएंअपने ही घर में बे-आबरू करते हैं
फिर उसी दुर्गा नारी की पूजा करते हैं
अद्धभुत अभिव्यक्ति !!
आपका लेख सच्चाई के करीब नहीं बल्कि सत्य है
जवाब देंहटाएंआपका लेख सच्चाई के करीब नहीं बल्कि सत्य है
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंsateek bat behtareen abhivyakti.
जवाब देंहटाएंसादर निमंत्रण,
जवाब देंहटाएंअपना बेहतरीन ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में शामिल करें
mene koshis ki par huva nahi
हटाएंजहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ स्वयं भगवान निवास करते है...बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंswatch- sashakt va satik --***
जवाब देंहटाएंन जाने कब समाज की सोच नारी के प्रति बदलेगी???
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।।।
बदलाब की जरुरत है. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंनमन करता हूं मैं आप की सुंदर अभिव्यक्ति को। इस कविता में जिस प्रकार आप ने सत्य को प्रदर्शित किया है कविता पढ़ने के बाद कोई भी मंथन करने पर बाध्य हो जाएगा।
जवाब देंहटाएंनारी के जाने कितने ही रूप है .फिर भी ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
सशक्त व प्रभावी रचना..
जवाब देंहटाएंयत्र नार्यस्तु पूज्यंते रम्यंते तत्र देवताः
अच्छे भाव हैं दिनेश जी
अच्छे काव्य-प्रयास के लिए बधाई !
लिखते रहें … और श्रेष्ठ लिखते रहें …
शुभकामनाओं सहित…