गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

रूपली

कमावण लागया रूपली जद हुया जवान
कागद रो जग जीत गे हू या घणा परेशान

जग भुल्या घर भुलग्या , भुलग्या गाँव समाज
गाँव री बेठक भूल्या , भुलग्या खेत खलिहान 

बचपन भुलया, बड़पण भुलया, भुलया गळी -गुवाड़
बा बाड़ा री बाड़ कुदणी, पिंपळ री झुरणी बो संगळया रो साथ

कद याद ना आव बडीया बापड़ी , घणा दिना सूं ताऊ
काको भूल्या दादों भूल्या , बोळा दिना सूं भूल्या माऊ

इण कागद री माया घणेरी यो कागद बड़ो बलवान
कागद रो जग जीत गे हू या घणा परेशान

गाँव रो खेल भूल्या, बचपण मेल रो भूल्या
गायां खूँटो भूल्या , पिंपळ रो गटो भूल्या

राताँ री बाताँ बिसराई , मांग्योड़ी छा बिसराई
धन धन में भाजताँ बाजरी गी ठंडी रोटी बिसराई

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रयास
    बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. कुछ शब्दों का अर्थ न मालूम होनेसे पूर्ण भाव स्पस्ट न समझ पाया !

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    1. राजस्थानी भाषा मे है सो थोड़ी कठिनाई हुवी होगी

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  3. जग भूल्या घर भूलग्या , भूलग्या गाँव समाज
    गाँव री बेठक भूल्या , भूलग्या खेत खलिहान

    … पण म्हैं जाणूं आप कीं नीं भूल्या
    जद ई तो आपरी मायड़ भोम ,आपरी संस्कृति नैं याद करता थका
    आपरी मायड़ भाषा में इत्ती फूठरी रचना लिखी …
    संजय पारीक 'भारती'जी !

    सरावणजोग रचना !

    परदेस बैठां आपनैं आपरी माटी री सौरम री रळी आवै जणां
    म्हारै राजस्थानी ब्लॉग ओळ्यूं मरुधर देश री… पर पधारजो सा … थां'रौ घणैमान स्वागत है …


    …और ,मेरे ब्लॉग शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है …
    यहां भी आइएगा …

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  4. आदरणीय .....सादर प्रणाम ... गाँव रो खेल भूल्या, बचपण मेल रो भूल्या
    गायां खूँटो भूल्या , पिंपळ रो गटो भूल्या
    राताँ री बाताँ बिसराई , मांग्योड़ी छा बिसराई

    बहुत मजेदार आइडिया चुना है. शानदार व्यंग्य. थोड़ी और रंगाई पुताई करते सर, छोटे में समेट दिया. लेकिन गजब है फिर भी . करारा व्यंग..............बधाई !

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