आजकल वो कहाँ है ? जिन को हमारी तलाश थी
आजकल हम कहाँ है ? उनको हमारी तलाश थी ||
ख्यालों मैं आजकल तो ना चाँद ना जन्नत जाते है |
बस सपनो मैं भी भटकते हैं श्मशान चले जाते हैं ||
उनकी दरिया दिली भी तो देखो
मेरे मरने के बाद उनके करीब रौशनी भी देखो
पूछा उस दिन लोगो ने इस रास्ते पे केसे हो आप ?
वो कहते चले गए
हम भी सुनते चले गए
बोले हम तो आये ना थे कभी
पर उनके हाथ में तो मेरे श्मशान की मिटटी के साथ मेरा रकीब था
हमें तो विश्वास बर्षों बाद हुआ
जब उन्हें हमारी जगह एक खुद्दार की तलाश थी
वो बहुत दूर से लौट रहे थे अँधेरे मैं
हर कोई पूछ रहा था क्या है हथेली में ?
कुछ बोलना चाहते थे पर
मेरे रकीब ने कहा ये लोट रही है उनकी राख लेके श्मशान से खुशियों की तलाश में
आजकल वो कहा है ? जिन को हमारी तलाश थी
आजकल हम कहा है ? उनको हमारी तलाश थी ||
दिनेश पारीक
भाई साहब !आप बहुत अच्छा लिख रहें हैं .वर्तनी पर ध्यान क्यों नहीं देते -
जवाब देंहटाएंजिन को हमारी तलाश थी
आजकल वो कहा(कहाँ ) है ? जिन को हमारी तलाश थी
आजकल हम कहा(कहाँ ) है ? उनको हमारी तलाश थी ||
खयालो(ख्यालों ) मैं आ -जकल तो ना चाँद ना जनत(जन्नत ?) जाते है(हैं ) |
बस सपनो मैं भी भटकते हैं श्मशान चले जाते है(हैं ) ||
उनकी दरिया दिली भी तो देखो
मेरे मरने के बाद उनके करीब रौशनी भी देखो
पूछा उस दिन लोगो ने इस रास्ते पे केसे हो आप ?
वो कहते चले गए
हम भी सुनते चले गए
बोले हम तो आये ना थे कभी
पर उनके हाथ में तो मेरे श्मशान की मिटटी के साथ मेरा रकीब था
हमे(हमें ) तो विश्वाश(विश्वास ) बर्षों बाद हुवा(हुआ )
जब उन्हें हमारी जगह एक खुद|र (खुद्दार )की तलाश थी
वो बहुत दूर से लोट(लौट ) रहे थे अँधेरे मैं (में )
हर कोई पूछ रहा था क्या है हथेली मैं ?
कुछ बोलना चाहते थे पर
मेरे रकीब नए(ने ) कहा ये लोट(लौट ) रही है उनकी रख(राख ) लेके श्मशान से खुशियों की तलाश मैं(में )
आपकी खयालो मैं आजकल तो ना चाँद ना जनत जाते है |
जवाब देंहटाएंबस सपनो मैं भी भटकते हैं श्मशान चले जाते है ||
ये तो अच्छे आसार नहीं दिखते ... {(
gambheer rachna
जवाब देंहटाएंक्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
achchhee prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्या बात हैं .....
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