गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

मेरा ही नशीब था

न कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
सब कुछ पास था उस के | मुझे देने के लिए वो गरीब था |
उस ने बहुत धन दोलत दिया दुनिया को पर में तो एक गरीब था |

जो भी मिला उसी से मिला | ये मेरा ही नशीब था
मेरा जनम हुआ ये भी उस के लिए बड़ा अजीब था |
कोई हंशा, कोई रोया मेरे घर का ये माहोल था
उस वक़्त माँ का दर्द में न समझ पाया था
पर मुझे पता है माँ के में कितना करीब था

जन्म की रात काली थी | चाँद भी न आया था
दिन में बदलो ने डाला डेरा ये मेरा नशीब था
दादा जी कहते है वो साल पड़ा बड़ा अकाल था |
सब कुछ कला था सिर्फ वो ही मेरा गुनगार था
ये कैसा  मेरा नशीब था | ????????

बचपन बिता जवानी आई , घर छोड़ा ये कितना अजीब था
आज तो माँ की ममता के लिए जीता हूँ  | हर रोज़ गम पिता हूँ 

पांच भाई बहनों में बटी माँ की ममता ये भी मेरा ही नशीब था
गाव छोड़ के आया लेकिन यहाँ भी जीना मुहाल था ................

आज आज माँ के साथ मंदिर गया
मंदिर में किसी ने पूछा तेरा चेहरा इतना उदास क्यों है| ?????
बरसती आखों में प्यास क्यों है और तुम मंदिर में क्यों हूँ
जिनकी नजरो में तू कुछ भी नहीं वो तेरे लिए आज इतना खास क्यों है ||?
मैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था
न कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
दिनेश पारीक

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

भ्रष्टाचारी बात कर रहे भ्रष्टाचार की

भ्रष्टाचारी बात कर रहे भ्रष्टाचार की
नित करते हम नये सवाल,नित ही पाते हैं जवाब
क्या खू़ब हो गर पूछें आज
है कौन बचा अपने में आप
शुरुवात कहीं से करनी है तो
पहले खु़द को ही झाँकें
उसे साफ़ करते ही,खुल जायेंगी सारी आँखें
हमें भी आता मज़ा बहुत है
करते काम वही सारे
होते हैं बदनाम जब नेता
हम हो जाते हैं बेचारे।
बुरा न बोलो,बुरा न देखो
न करो बुरे काम कभी
नित करते रहते हम ये सब
पर है ये हमें स्वीकार नहीं।
क्या खू़ब गज़ब की बातें होती
चर्चायें हर गलियों में
हम भी तो हैं शामिल होते,
उन्हीं जली मोमबत्तियों में
भ्रष्टाचारी बात कर रहे भ्रष्टाचार की…

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

प्रेम कविताएँ


हाँ पापा, मैंने प्यार किया था
उसी लड़के से
जिसे आपने मेरे लिए ढूँढा था।

उसी लड़के से
जो बेटा था आपके ही मित्र का।
हाँ पापा, मैंने प्यार किया था बस उसी से।

फिर क्या हुआ?
क्यों नहीं बन सकी मैं उसकी और वो मेरा?

मैंने तो एक अच्छी बेटी का
निभाया था ना फर्ज?
जो तस्वीर लाकर रख दी सामने
उसी को जड़ लिया था अपने दिल की फ्रेम में।

फिर क्यों हुआ ऐसा कि
नहीं हुआ उसे मुझसे प्यार?

क्या साँवली लड़कियाँ
नहीं ब्याही जाती इस देश में?

क्यों लिखते हैं कवि झूठी कविताएँ?
अगर होता जो मुझमें सलोनापन तो
क्या यूँ ठूकरा दी जाती
बिना किसी अपराध के?

पापा, आपको नहीं पता
कितना कुछ टूटा था उस दिन
जब सुना था मैंने आपको यह कहते हुए
'बस, थोड़ा सा रंग ही दबा हुआ है मेरी बेटी का
बाकि तो कुछ कमी नहीं।

उफ, मैं क्यों कर बैठी उस शो-केस में रखे
गोरे पुतले से प्यार?

मुझे देख लेना था
अपने साँवले रंग को एक बार।

सारी प्रतिभा, सारी सुघड़ताएँ
बस एक ही लम्हे में सिकुड़ सी गई थी।
और फैल गया था उस दिन
सारे घर में मेरा साँवला रंग।

कोई नहीं जानता पापा
माँ भी नहीं।
हाँ, मैंने प्यार किया था
उसी लड़के से
जिसे ढूँढा था आपने मेरे लिए।