मंगलवार, 24 मई 2011

तेरे बिना ह्रर रंग फ़ीखा लगता हैं


तेरी यह मायूसी बन जाती है बेचैनी मेरी ज़िंदगी से तेरा खफा होना, लगे ज़िंदगी है ख़फा मेरी तेरी सासों से मैं खुद सास लेती हूँ चहरे पे उदासी तेरी, लगती है हार मुझे अपनी
मेरे लिए क्या चाँद क्या सूरज क्या तारे तू साथ हो तो सब लगते है अपने प्यारे पर तू रूठा है इस्कदर खुद से ही लगे तूफान आया हो मिटाने पहचान मेरी
तेरी हसी पे घायल हुए थे, निराली तेरी हर अदा तेरी मोहब्बत को आपना समझ जी रहे थे तू अब ना जा छोड़ के, ना हो मुझसे जुदा तेरे बिन हर रंग फीका लगता है आँखो को मेरी
रजनी

सोमवार, 9 मई 2011

ये समंदर भी कितना पास है … फिर भी दो बूँद की प्यास है .

ये समंदर भी कितना पास है …
फिर भी दो बूँद की प्यास है .
आसमां मिल जाए इस जमीं से …
आज भी इस बात की आस है.
नहीं पड़ता है फर्क तुझे …
पर इसी बात से तो तू ख़ास है.
मत कर बात और ना देख मुझे …
पर रहेगी तू हरपल मेरे पास है.
मुस्कुराता तो मै अब भी हूँ …
बस लोग कहते मुझे जिन्दा लाश हैं.
झनझनाती तेरी मुस्कराहट आज भी है …
जो हर मजबूर की ख़ुशी में तेरा वास है.
मुसीबतों से भागता हूँ नहीं मै अब …
क्यूंकि तेरी यादों का साथ मेरे पास है.
गर जान लिया होता मैंने जो पहले तुमको
तो ना कहता जिन्दगी भर बस ये “काश” है.


हर अल्फाज की वजह बस तू है …
इस दिल की धड़कन की सुर ताल भी तू है .
हर पल तुझे पाने के ख्वाब में खोया हूँ …
क्यूंकि मेरे वजूद की वजह तू है.
तुझसे अलग कैसे जियूं मै ,
क्यूंकि दिल के कोने में कहीं बैठा शख्स भी तू है .





सिहरन की इस सर्दी में …

तेरी यादें एक गर्माहट का अहसास दे जाती है .

मुश्किलें क्योँ ना कितनी ही हो …

तेरी मुस्कराहट उनसे लड़ने को हौसला दे जाती है .

जब जीना लगने लगे मुश्किल …

तेरी आँखें 1 नयी जिन्दगी दे जाती है .

प्यार ना कह इसे बदनाम करो …

ये तो मुझे ”कैसे जियें” सिखलाती नज़र आती है …





गर मेरी एक झूठी तारीफ ला दे तेरे चेहरे पे मुस्कराहट …
तो खुदा कसम सारी जिन्दगी इन्ही झूठों के बीच गुजार दूं .
कम लगे अगर तुझको ये भी …
तो सारे likes, super likes, awesome तेरे facebook profile पे सजा दूं.





जमाने भर की खुशियाँ देनी चाही तुझे …
पर कब तू दिल तोड़ गया, मालूम ना चला.
आज ये दिल जल रहा है तेरी हर मुस्कराहट की याद में ,
दुनिया पड़ रही है इसे और जालिम तुझे पता भी ना चला.





दिन भर करता हूँ बातें तुमसे,चेहरे पर हंसी रहती है
पर यकीं मान,इक ख़ामोशी मेरे दिल में भी पलती है

यूँ तो है हर पल तू मेरे साथ …
पर इस दिल में आके कभी, इक तन्हाई भी मिलती है

तू गर समझे है कि तुझे है दुःख मुझसे ना मिल पाने का कभी
कभी आके देख दिल में मेरे, जुदाई की आग यहाँ भी जलती है !!!





चाहूँ मै तुझे कितना , ये मै बता नहीं सकता ,
मै तेरे लिए क्या हूँ , ये मै जान नहीं सकता .
क्यों सी कर बैठी है होठों को तू ,
मेरा इन्तेजार मत कर , मै इतनी हिम्मत जुटा नहीं सकता ,
लोग चाहे कुछ भी कहे ,
पर तुने मुझे ऐसे ही अपनाया ,
जीत लिया दिल तूने , इस बात को मै झुठला नहीं सकता ,
तू जो ना कहे , वो तेरी आँखे कह जाये ,
पर हूँ मै बदकिस्मत इतना कि वो मै सुन नहीं सकता ,
तेरे लिए कर जाऊं मै कुछ भी ,
बस जान नहीं माँगना , ये मै दे नहीं सकता ,
जीना है जब तेरे ही साथ , तो कैसे दूँ ये जान तुझे ,
सब कुछ तो है तेरा , पर मै कुछ मांग नहीं सकता .
मिल सकता नहीं तुझसे , तो कविता ही लिख देता हूँ ,
पर अब और नहीं , इतना इन्तेजार मै कर नहीं सकता ,
गर जो मिली होती पहले मुझे , मै आज कहाँ होता ,
दूर हो कर भी , दूरियों का अहसास मै कर नहीं सकता .
कुछ तो ख़ास है तुझमे ऐसा , कि ये lines खुद बा खुद बन जाती है ,
बेवजह बेसबब मेरे दिलो दिमाग पर छा जाती है .
मत कर तू और पागल मुझे , मुझे ऐसे ही जीने दे ,
क्योकि तू ना मिली अगर मुझको , तो फिर मै जी नहीं सकता .





जब भी होता हूँ तनहा , अतीत में लौट जाने को मन करता है ,
1 बार फिर बचपन में जाने को दिल करता है .
साँसों कि तपिश जब छूती है इस दिल को, तो खुद को आंसुओं में भिगोने का मन करता है …
1 बार फिर बचपन में जाने को दिल करता है .





तू ही था जिस पर मै हंसा था कभी …

तू ही था जिसका दिल दुखाता था मैं कभी …
फिर बदला समय का पहिया ,
अब बारी तेरी है …
हँसाता भी अब तू ही है मुझे कभी …
रुलाता भी अब तू ही है मुझे अभी !!!





आज भी याद आती है क्यों वो ,
भुलाने पर भी भूल पाती नहीं वो ,
हँसता तो हूँ मै इस दुनिया को दिखाने के लिए,
पर हर हंसी के पीछे का दर्द जानती नहीं वो !
जिन्दगी क्यूँ यूँ दो राहे पे लाके खड़ा कर देती है ,
जब मंजिल ही कदम बढाने से रोक लेती है .
देना ही था गर हौसला मंजिल पाने का ,
तो क्यूँ तू अब मझदार में छोड़ देती है ???
माना कि हममे नहीं वो जज्बा ,
कि चाँद छू पाएं ,
पर ऐसा भी क्या खफा होना ,
कि आप चाँद देखने पे भी बंदिशें लगा देती है !!!







नफरत तो हो गयी मुझे खुद से …
जब मैंने जाना मेरी मोहब्बत की कदर क्या है …
आज भी कोसता हूँ उस लम्हे को …
जब सोचा था की दोस्ती करने में हर्ज़ ही क्या है !!!

मेरे हर अल्फाज की वजह भी वही थी …
जब निकला था आंसू पहली बार इन आँखों से …
तब भी वजह तू ही थी .
छोड़ दी थी दुनिया मैंने पाने को तुझे …
पर फिर क्यों ऐसा हुआ की …
…इस बार भी सिसकने की आवाज मेरी ही थी !!!
है ये कहानी एक आस पास की …
१ लड़का-ऐ-आम और लड़की ख़ास की.
लड़का कहलाता पहले ये ठरकी था …
हँसता तो था पर फिर भी सनकी था .
लड़की नाजों में पली थी .
सही मायनों में वो एक परी थी.
लड़का ना जानता था इस बात को …
हलके में ही लेता था इस ख़ास को.
एक रात कुछ ऐसा हुआ …
हमेशा दोस्त रहने का एक वादा हुआ .
लड़के को उस परी को जानने का मौका मिला …
तबसे उस “ठरकी” का चेहरा खिला .
असल जिन्दगी के मायने उसने उस परी से सीखे …
फिर कई कवितायेँ उसने उस परी को लिखे.
पड़कर lines परी बोली ये तो copy paste है .
सुनकर बात ये लड़के के दिल को हुआ ना था rest है .
समय बीता … लड़के पर चाहत का खुमार चड़ा …
धीरे धीरे प्यार के आसमानों में स्वछन्द उड़ा .
चाहतें लड़के की हिलोरें मार रही थी …
उधर परी उसे “just friend” के tag में बाँध रही थी .
जिस परी को चाहा था उसने दिल से …
उसका दिल तो बंधा था किसी और की डोर से .
लड़का वो आ गया था घुटनों पे …
बस दिल में उसके एक ही बात थी …
ना जाये छोड़ के उसको उसको परी …
पर उस परी को उसके जज्बातों की ना कदर थी .
दिल टूटा जो उस लड़के का …
तो ना जुड़ पाया कभी …
सीखा वो बस एक इतनी सी बात …
अब प्यार नहीं करना है कभी .




रिवाजें निभाने का वक़्त आ गया है…

तुम्हे भूल जाने का वक्त आ गया है.
तेरी बदली नजरों से आहत है ये दिल…
कि फ़िर मुस्कुराने का वक्त आ गया है.
शहर भर में फैलीं है अपनी कहानी..
अब नजरें चुराने का वक्त आ गया है…
तेरा जाना तय था,सो ये ही हुआ भी…
कि एक और जख्म खाने का वक्त आ गया है
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शनिवार, 7 मई 2011

अब शाहों का सिंहासन, जल्‍दी थर्राने वाला है,

अब शाहों का सिंहासन, जल्‍दी थर्राने वाला है,
मिजाजे आम हैं बिगड़ा, बवंडर आने वाला है।

बड़ी ही देर से सही, मगर आवाज तो आई,
यहाँ उजले लिबासों में छिपा हर हाथ काला है।

हया बेच कर खाई, अमीरों और वजीरों ने,
तमाशे हैं यहाँ सस्‍ते, मगर महगाँ निवाला है।

हमें ठंडा समझने की, तुमने कैसे की गुस्‍ताखी,
जवां हैं मुल्‍क हिन्‍दोस्‍तां, अभी तनमन में ज्‍वाला है।

जाओगे अब कहाँ बचकर, यहीं पर टेक लो माथा,
यहाँ आवाम मस्‍जिद हैं, यहाँ जनता शिवाला है

सोमवार, 2 मई 2011

मुझे तुझसे है क्या मिला

आदतन मैं हंसता रहा कभी किया न कोई गिला
तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला

कितने हंसी कितने जंवा खडे हुये थे हर मोड पर
तेरी नवाजिशों का असर न मिला मुझे वफ़ा का सिला

कितने मौसम गुजर गये इक खुशी के इन्तजार में
भेज दी तूने खिजां जब दश्ते-दिल में एक गुल खिला

राहे-सफ़र में मुसलसिल मुसाफ़िरों की भारी भीड थी
जाने फ़िर भी क्यूं लुटा सिर्फ़ मेरे प्यार का ही काफ़िला

अजनवी सा क्यों आज है जो दोस्ती का दम भरता रहा
गनीमत है कह कर नही तोडा उसने दोस्ती का सिलसिला

आदतन मैं हंसता रहा कभी किया न कोई गिला
तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला