खूब पहचानती हूँ मैं तुम को
और तुम्हारे इस समाज
और इस समाज के थेकेदारों को
जिस के नाम पर तुम लोग
मेरी इज्जत तार- तार करते हो
और फिर बोलते हो की वो तो मनोरोगी था
मैंने ही उस को भड़काया था
हाँ भड़काया तो मैंने ही था
तुम को जब तुम को पैदा करने की सोची
9 महीनो तक संताप सहती रही पर
तुम जैसे सामाजक पैदा हुवे
हाँ भड़काया तो मैंने ही था अपनी आत्मा को
की तुम से निश्चल प्रेम किया
तुम को अपनी आत्मा सोप दी
तुम जानते हो इस संसार में
तुम कैसे जीवित हो
इस वक्स्थल से तुम को सीच -सीच कर पला है
मैने ही अपने
विभिन्न रूपों में तु्म्हें उबारा है
माँ, भगिनी, प्रेयसी और बेटी बनकर
तुम्हें संबल दिया मैं ही तुम
को पिता बनने का दर्जा दिया है
आज तुम मुझे नहीं नोंचते तुम
अपनी माँ माँ, भगिनी, प्रेयसी बेटी के साथ बलात्कार करते हो जिस योनि को तुम आज लहुलुहान करते हो उस योनि ने तुम को इस संसार दिया है जिन छातियों को तुम लहुलुहान करते हो उन
वात्सल्य से मैंने तुम्हारे लहू को सींचता है
जिस खून की तुम गर्मी मुझे दिखाते हो
वो खून तो मेरा ही है
तुम तो जन्म लेते ही मेरे पर अश्रित थे
हर भय ,डर से मैं ही तुम को उभारा है
और आज भी तुम मेरी ही चोखट
के भिखारी हो और सदा रहोगे
इसी लिए तो अब तुम हीन भावना के
शिकार हो गए हो
कितनी दयनीय दशा हो गई तुम्हारी
अब मुझ पर तुम्हारा कोई भी वार
काम नहीं करेगा
मैं तुम को पहचान गई हूँ
..........सावधान .....
बाजी आज मेरे हाथ है षड़यंन्त्र की तो तुम कोशिश
कभी कभी मत करना
मेरी आँखों में अँगार है
और……तुम्हारा रोम-रोम
मेरा कर्जदार है
वो तो मनोरोगी था , वो उस को उसकी यादस्थ भी ठीक नहीं है अगर ऐसा था तो उस ने अपने घर मैं फांसी क्यूँ नहीं लगाई
उस ने मेरी इज्जत तार - तार कैसे कर दी उस को तो ये दुनिया क्या या याद ही नहीं है
खूब पहचानती हूँ मैं तुम को
और तुम्हारे इस समाज
और इस समाज के थेकेदारों को
जिस के नाम पर तुम लोग
मेरी इज्जत तार- तार करते हो
और फिर बोलते हो की वो तो मनोरोगी था
मैंने ही उस को भड़काया था
हाँ भड़काया तो मैंने ही था
तुम को जब तुम को पैदा करने की सोची
9 महीनो तक संताप सहती रही पर
तुम जैसे सामाजक पैदा हुवे
हाँ भड़काया तो मैंने ही था अपनी आत्मा को
की तुम से निश्चल प्रेम किया
तुम को अपनी आत्मा सोप दी
तुम जानते हो इस संसार में
तुम कैसे जीवित हो
इस वक्स्थल से तुम को सीच -सीच कर पला है
मैने ही अपने
विभिन्न रूपों में तु्म्हें उबारा है
माँ, भगिनी, प्रेयसी और बेटी बनकर
तुम्हें संबल दिया मैं ही तुम
को पिता बनने का दर्जा दिया है
आज तुम मुझे नहीं नोंचते तुम
अपनी माँ माँ, भगिनी, प्रेयसी बेटी के साथ बलात्कार करते हो जिस योनि को तुम आज लहुलुहान करते हो उस योनि ने तुम को इस संसार दिया है जिन छातियों को तुम लहुलुहान करते हो उन
वात्सल्य से मैंने तुम्हारे लहू को सींचता है
जिस खून की तुम गर्मी मुझे दिखाते हो
वो खून तो मेरा ही है
तुम तो जन्म लेते ही मेरे पर अश्रित थे
हर भय ,डर से मैं ही तुम को उभारा है
और आज भी तुम मेरी ही चोखट
के भिखारी हो और सदा रहोगे
इसी लिए तो अब तुम हीन भावना के
शिकार हो गए हो
कितनी दयनीय दशा हो गई तुम्हारी
अब मुझ पर तुम्हारा कोई भी वार
काम नहीं करेगा
मैं तुम को पहचान गई हूँ
..........सावधान .....
बाजी आज मेरे हाथ है षड़यंन्त्र की तो तुम कोशिश
कभी कभी मत करना
मेरी आँखों में अँगार है
और……तुम्हारा रोम-रोम
मेरा कर्जदार है
वो तो मनोरोगी था , वो उस को उसकी यादस्थ भी ठीक नहीं है अगर ऐसा था तो उस ने अपने घर मैं फांसी क्यूँ नहीं लगाई
उस ने मेरी इज्जत तार - तार कैसे कर दी उस को तो ये दुनिया क्या या याद ही नहीं है
"वो तो मनोरोगी था, वो उस को उसकी यादस्थ भी ठीक नहीं है अगर ऐसा था तो उस ने अपने घर मैं फांसी क्यूँ नहीं लगाई उस ने मेरी इज्जत तार - तार कैसे कर दी" जायज प्रश्न?
जवाब देंहटाएंमानवीय संबेदनाओं को समेटे मार्मिक प्रस्तुति
उस की बीवी मर गई थी वो बहुत हतास था
हटाएंवो तो मनोरोगी था उस की यादास्त ठीक नहीं थी
क्या ये कारण काफी है एक बलात्कारी को बचाने
और एक बलात्कारी से सहानुभूति रखने के लिए
देश का लचर-पचर कानून, ऐसा इसलिये हो रहा है।
जवाब देंहटाएंउस की बीवी मर गई थी वो बहुत हतास था
हटाएंवो तो मनोरोगी था उस की यादास्त ठीक नहीं थी
क्या ये कारण काफी है एक बलात्कारी को बचाने
और एक बलात्कारी से सहानुभूति रखने के लिए
ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है
जवाब देंहटाएंकभी दूर तो कभी क़रीब होते है
देश का लचर-पचर कानून, ऐसा इसलिये हो रहा है।
कानून को दोष कब तक देने हम सब का दाईत्व
हटाएंपूरा हो जाता है
हर शब्द में दर्द है
जवाब देंहटाएंमेरी आँखों में अँगार है
जवाब देंहटाएंऔर……तुम्हारा रोम-रोम
मेरा कर्जदार है
वो तो मनोरोगी था , वो उस को उसकी यादस्थ भी ठीक नहीं है अगर ऐसा था तो उस ने अपने घर मैं फांसी क्यूँ नहीं लगाई
उस ने मेरी इज्जत तार - तार कैसे कर दी उस को तो फांसी होनी ही चाहिए .............
sahi kaha apne
हटाएंpar hota kah hai
wo sab log next 6 month after wase hi ghoomte dikhai dete hain
हृदय विदारक..दर्द से भरी हुई रचना।।।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी ... आक्रोश भरा है इस इस रचना में जो वाजिब है ...
जवाब देंहटाएंekdum sahi kaha aapne ...dil ko chhu gayi apki Rachna..
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