शनिवार, 29 दिसंबर 2012

मत कहो कि हार गई


मत कहो कि हार गई .....कितनों का ज़मीर जिंदा कर गई !!!
सलाम है उसे 
बहुत शर्म की बात हैं  हमें   चल्लू   भर  पानी  मैं  डूब   मरना  चाहिए ,उस से भी शर्म  की बात इन नेताओ  की बयानबाजी  हैं अब भी चुप  रहना है तो  घर से  मत निकलना    मत कहना की  किसी ने आपको कुछ कहा है 
कुछ गलत हरकत की है  आपके साथ  आप इस लायक ही हो  तब तो एक तो 39 साल  से बम्बई  के अस्पताल  मैं गम सुम पड़ी है  और एक दामिनी  आज माँ  को गोद मैं  समां गई  और कल  किसी और की बहु बेटी 
समां  जाएगी   आप  एक ही काम  कर सकते  हो  हाथ  मैं मोमबती  लेकर मरने वाली बेटी बहु  के लिए दुआ  और अत्मा  की  के लिए  प्राथना अब बस भी करो और घर से निकल  के इस  सरकार  के कपडे खोल  दो  अपना दुर्गा रूप दिखा दो  कहने को तुम दुर्गा नहीं हो  हम देखना चाहते हैं इस दुर्गा रूप  को इस इन्टरनेट की और फसबूकिया  दुनिया से बहार निकल  के कुछ बोलो 
ये   नेता  और उनके सु पुत्र  बयानबाजी  करते हैं  क्या हम लोग मर गए हैं क्या नेता  किसी दूसरी फेक्टरी  मैं   बनते  हैं क्या  वो भी हम  लोगो ने बनाये हैं वो बोल सकते हैं खुले  आम तो हम लोग चुप  क्यूँ है 
सिर्फ  क्या हम लोग 2 दिन  हल ही कर सकते हैं  क्यूँ नहीं हम लोगो ने  उस  दामिनी  को  हिंद्स्तान से  बाहर  इलाज़  के लिए भेजा आज  उस  दामिनी की  राख  आ रही हैं  उस राख  का तिलक  करके  कसम खाओ  की अब और नहीं 
 दामिनी सिर्फ दो स्थति में ही बच सकती थी- अगर डॉक्टर भगवान होते या हमारे नेता इंसान होते!!  वो दोनों  ही इस हिन्दुस्तान  मैं नहीं हैं  तो हमारी  दुआ  भी कहा काम  करती 
अब भी तो हम सब  के मुह  से ये निकला ता है की प्रयास और प्रयास 
और इस सरकार  को ही देख लो की इस साल  इस ने क्या  है  बलात्कार पीड़ितों  के लिए 
बलात्कार पीड़ितों को इंसाफ और मदद दिलाने के लिए यूं तो सरकार और कानून दोनों ही नये नयी स्कीम और योजनाएं शुरू कर देते हैं. लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि ये सिर्फ योजनाओं के नाम पर एक भद्दा मजाक ही साबित होती हैं जो बलात्कार पीड़ित के दर्द को और बढ़ा देती है.
अपराध या ज्यादती के शिकार पीड़ितों को मुआवजे के लिए सरकार ने लीगल सर्विस अथॉरिटी तो बना दी. लेकिन इस साल सिर्फ चार पीड़ितों को 12 लाख का मुआवजा मिल सका जबकि इस साल रेप के 635 मामले दर्ज हुए. लीगल सर्विस अथॉरिटी रेप, तेज़ाब, अपहरण और बाल उत्पीड़न के शिकारों के लिए बनाई गई. सरकार ने इस स्कीम के लिए 15 करोड़ की राशि भी तय कर दी. लेकिन ये रकम पीड़ितों तक नहीं पहुंच पा रही.अध्यक्ष, दिल्ली महिला आयोग की अध्‍यक्ष बरखा सिंह ने कहा, 'पहले ज्यादा अच्छी व्यव्स्था थी. उसको अपने इलाज के लिए कुछ पैसे की व्यवस्था हो जाती थी.'
जाहिर है पीड़ितों को मुआवजा मिलना और मुश्किल हो गया है. ऐसे पीड़ितों को इलाज और कानूनी लड़ाई का खर्चा भी खुद ही उठाना पड़ रहा है.


19 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. ये तो अपने सही कहा ये आशु भी सिर्फ दिखावे के हैं
      मन करता है चिलाऊ इतना ज़ोर से की देश जाग जाये
      यार फिर चिलाके मेरा दम निकल जाये
      अब बंद भी करो ये श्रधांजलि देना तेरे रिश्ता भी क्या था उस के साथ
      वो मरी नहीं हम ने उस को मार दी श्रधांजलि दे दे कर और मोमबतिया जला जला के

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  2. निःशब्द , स्तब्ध , निर्विकार, गमगीन,
    अफ़सोस , संवेदना, आंसू, नाराज़गी और
    शमिन्दगी .......कुछ भाव और भी है ...ये सुबह
    नहीं हो सकती....ये मानव इतिहास के पतन
    की रात शुरू हो रही है ....
    करोडो दुआए उसने नहीं सुनी ..शायद पीडिता ने
    ही माँगा हो स्वर्ग ...हाइस नरक के बेहतर
    ही था...
    बस ! दुआ
    करो की उसकी आत्मा को शांति मिले ...
    2012 इससे बुरा कुछ नहीं दे सकता था ......ये
    दुनिया ख़त्म 21 तारीख को नहीं हुई ..पर
    हा अब ऐसे संकेत जरुरमिल गए है ..की अब ख़त्म
    होने में देर नहीं ....:(
    दिल्ली गैँगरेप पीङीता दमिनी को हमारी तरफ से
    सच्ची SARDHANJALI
    भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करेँ।

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  3. जो बात आपने कही है वे सब नेतायों के लिए "छोटी छोटी बातें बड़े शहरों में हुआ करती है" कह कर भूल जायेंगे :हम सलाम करते हैं निर्भय को -
    मेरी पोस्ट :निर्भय को श्रद्धांजलि

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  4. jane kyu kuchh karna nhi chahti hai sarkare ....
    तेरी बेबसी का, दिल को मलाल बहुत है दामिनी
    शर्म आती है अब तो, खुद को इंसान कहने पर।
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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  5. कोई शब्द नहीं है ...कहने को

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  6. आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्सट पर आप आमंत्रित हैं। धन्यवाद।

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  7. राजनीति करने वालों को छोड़ के आज सभी शर्मिंदा हैं ...

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  8. सोचनीय स्थिति बरकरार रही आई है इसीलिए यह दिन देखना पड़ा है .गमजदा लोगों में सरकारी तमाशबीन भी चले आ रहें हैं कुछ शातिर भी कोहनी मार सम्प्रदाय के महिलाओं को धकिया रहें हैं


    भीड़ में अनजान बने .यही मानसिकता बदलनी चाहिए .क्या हो सकता है ऐसे संवेदन हीन समाज में सिवाय सामूहिक पिटाई के और यही वक्त है वह होनी चाहिए .

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  9. सचमुच शर्म की बात है

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  10. निशब्द हूँ...क्या कहूँ?

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  11. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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  12. सुंदर प्रस्तुति
    नववर्ष की हार्दिक बधाई।।।

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  13. नूतन वर्षाभिनंदन मंगलकामनाओं के साथ.

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  14. दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए,
    मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
    ज्यों कहीं फिसल गए।
    कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
    कुछ आकुल,विकल गए।
    दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए।।
    शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
    इस उम्मीद और आशा के साथ कि

    ऐसा होवे नए साल में,
    मिले न काला कहीं दाल में,
    जंगलराज ख़त्म हो जाए,
    गद्हे न घूमें शेर खाल में।

    दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
    प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
    बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
    ऐसा होवे नए साल में।

    Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.

    May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!

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  15. आपकी भावनाओं को सलाम है दिनेश जी ....
    वक़्त चिल्लाने का ही है ......!!

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  16. पता नहीं ये नेता किस मिटटी के बने होते हैं ,इनके उपर कोइ भी दवा कारगर नहीं होती,हमारी चीख का कोए असर इनपर नहीं होगा ,

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  17. jindgi aisa lagata hai hr roj har rhi hai .......bhagwan jane kya kya din dekhega ye sanskaron ka desh

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  18. बहुत सुन्दर लेख... हवाओं के रुख संग हम उड़ते चले है तिनको की तरह ... कि आओ अब मिल कर हम इस रुख को बदल दें ... नूतन

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