शनिवार, 24 मार्च 2012
बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन: खिला एक फूल फिर इन रेगिस्तान में. मुरझाने फिर चला दिल्ली की गलियों में. ग्रॅजुयेट की डिग्री हाथ में थामे निकल गया. इस उम्र मैं ही मैं , जि...
गुरुवार, 15 मार्च 2012
रविवार, 11 मार्च 2012
ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होती,
ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होती,
हर बात समझाने के लिए नही होती,
याद तो अक्सर आती है आप की,
लकिन हर याद जताने के लिए नही होती
महफिल न सही तन्हाई तो मिलती है,
मिलन न सही जुदाई तो मिलती है,
कौन कहता है मोहब्बत में कुछ नही मिलता,
वफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती है
कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है
प्यास भुजती नही बरसात गुज़र जाती है
अपनी यादों से कह दो कि यहाँ न आया करे
नींद आती नही और रात गुज़र जाती है
उमर की राह मे रस्ते बदल जाते हैं,
वक्त की आंधी में इन्सान बदल जाते हैं,
सोचते हैं तुम्हें इतना याद न करें,
लेकिन आंखें बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं
कभी कभी दिल उदास होता है
हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है
छलकती है मेरी भी आँखों से नमी
जब तुम्हारे दूर होने का एहसास होता है
हर बात समझाने के लिए नही होती,
याद तो अक्सर आती है आप की,
लकिन हर याद जताने के लिए नही होती
महफिल न सही तन्हाई तो मिलती है,
मिलन न सही जुदाई तो मिलती है,
कौन कहता है मोहब्बत में कुछ नही मिलता,
वफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती है
कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है
प्यास भुजती नही बरसात गुज़र जाती है
अपनी यादों से कह दो कि यहाँ न आया करे
नींद आती नही और रात गुज़र जाती है
उमर की राह मे रस्ते बदल जाते हैं,
वक्त की आंधी में इन्सान बदल जाते हैं,
सोचते हैं तुम्हें इतना याद न करें,
लेकिन आंखें बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं
कभी कभी दिल उदास होता है
हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है
छलकती है मेरी भी आँखों से नमी
जब तुम्हारे दूर होने का एहसास होता है
लेबल:
-ज़िंदगी का एक और रंग-
शनिवार, 10 मार्च 2012
आज फिर उदास है जिंदगी???
आज फिर उदास है जिंदगी???
आज फिर उदास है जिंदगी
ए जिंदगी तू क्या रंग लाएगी
समझ न पाया कोई
तू क्या मुझे समझ पाएगी
दर्द दिया है इस सिने में
क्यो तूने है मुझे रुलाया
इंतेज़्ज़र है जिसका मुझे
उनसे क्यो तूने मुझे न मिलाया
मिल भी गये गर कभी
तो क्या अंजाम देगी तू, ए जिंदगी
टूटे दिल को तूने मारना भी न सिखाया
आज फिर उदास है जिंदगी
ए जिंदगी तू क्या रंग लाएगी
समझ न पाया कोई
तू क्या मुझे समझ पाएगी
दर्द दिया है इस सिने में
क्यो तूने है मुझे रुलाया
इंतेज़्ज़र है जिसका मुझे
उनसे क्यो तूने मुझे न मिलाया
मिल भी गये गर कभी
तो क्या अंजाम देगी तू, ए जिंदगी
टूटे दिल को तूने मारना भी न सिखाया
लेबल:
-ज़िंदगी का एक और रंग-,
जिंदगी
रविवार, 4 मार्च 2012
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरी ब्रिज भूमि की होली
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरी ब्रिज भूमि की होली: जय श्री कृष्णा फिर से दो दिन बचे है होली के फिर वही जाना है श्री कृष्ण के दरबार मे मा को फिर फोन पे दीवाली पे आन...
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