राजनीति के कुरुक्षेत्र में छिड़ गया युद्ध फिर आज
कभी बेबस कभी बेसहारा कभी मजबूर का मिल रहा ताज
प्यादा भी वहीँ रण भी वही सिर्फ बदला पक्ष और विपक्ष
जिनको बनकर स्तंभ चौथा करना था कार्य निष्पक्ष
कर लिया सौदा आज उसने संकट के इस क्षण में
कर लो तुम भी उनकी मृत्यु का सौदा आज उस रण में
मातृ भूमि क्षमा न करेगी तुम्हे इस कृत्य को
जब बांध के आँखों को तुम्हारी देगी सज़ा उसी कृत्य को
प्रजा राजा और रंक सभी खेल रहे खेल ऐसे
बेबस बेसहारा और मजबूर हो गया हर कोई जैसे
क्यों न दिखती तुमको एक बेबस तड़पते पिता की पुकार
जब वो आज रो रो कर दे रहा जीवन को धिक्कार
ASHISH C TRIPATHI