तुम्हें जब भी मिलें फुरसतें , मेरे दिल से ये बोझ उत्तार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ , मुझे एक शाम तो उधार दो
इस दुनिया का रंग उतार दो अपने प्रेम रंग चढ़ा दो
ये बेरंगी हो गई है मेरी दुनिया अपना रंग मुझे उधार दो
मुझे अपने रूप की धुप दो जो चमक सके मेरी दुनिया
मुझे अपने रंग में रंग दो मेरे सारे जंग उतर दो
तुम बिन जिया नहीं जाता एक तो जीने का मक़ाम दो
हर शाम मुझे काटती है मुझे मौत तो आसान दो
मेरी ऑंखें बोझिल हो गई हैं ये बोझ तो उतार दो
तुम बिन पतझड़ जैसा जीवन अपना दिल का बसंत सुमार दो
तुम से डोरी से डोरी बंधी रहे मुझे ऐसा कोई नकाब दो
बारिश आयी चली गई पतझड़ जैसा ना तुम ख्वाब दो
बहुत दिनों से बे -करार हूँ जीने की एक वजह उधार दो
दिनेश पारीक