शुक्रवार, 25 मई 2012

ये कैसा नींद में ही ख़याल आया है,

ये कैसा नींद में ही ख़याल आया है,
की जब मैं जगा हुआ होता हूँ
तो कविता दिल के अन्दर जाने कहाँ सोयी हुई होती है.
और जब मैं पूरी नींद में सोया और खोया हुआ होता हूँ
तो मेरे दिल के अन्दर की कविता अंगडाई लेकर जाग सी जाती है
मुझे नीद में ही एकदम जगा देती है
नींद में ही मैं उस कविता को संवारता और लिख देता हूँ
पर जब जाग जाता हूँ, तो रची हुई वो सुन्दर कविता,
जाने मन के किस कोने में छुप सो जाती है,
बहुत ढूँढने से भी नहीं मिलती,
और लिखने के लिए ठीक याद ही नहीं आती,
फिर भी उसे याद कर वैसा ही कुछ जैसा बने लिख दिया करता हूँ
जो उस असली कविता सी सुन्दर नहीं होती
कभी कभी तो वो कविता कुछ याद ही नहीं आती तो लिखूँगा क्या
जैसे आयी थी वैसे ही बेवजह ग़ुम हो जाती है
कृपया मुझ पर हंसिये मत, ये मज़ाक नही सच है
कविता की निंदिया की और उसके छुपने की बात है
नींद से उठकर अभी अभी लिखी हुई फरियाद है
इस मेरी पुरानी कविता का आज फिर ख़याल आया है
क्यूंकि अण्णा और बाबा रामदेव पर कविता अपनेआप बन कर आयी है
कल रात उसे सपने में लिख कर पूर्ण कर डाली है
पर आज लिखना चाहूँ तो नहीं मिल रही है, बड़ी निराशा है,
अब आशा से मैं यहाँ p4poetry पर उसे आपकी लिखावट में बाट तक रहा हूँ
किसी मेम्बर दोस्त के मन में भी उन जैसे भावों की जरूर वह उभरी है
जिसे यहाँ पढ़ मुझे असीम आनंद लेने की उत्कंठ अभिलाषा है

ये रचना दूसरी बार  पोस्ट की जा रही है  
पहले ये रचना १८/०३/२०१२ को पोस्ट की गई थी  मेरे इसी ब्लॉग पे  

बुधवार, 2 मई 2012

महक आती है बदन से पसीने की |


महक आती है बदन से पसीने की |
मुझे जरुरत  नहीं है  खुशबु  लगाने  की ||
मजदूर हूँ   यही  पहचान  है  मेरी
मुझे जरुरत  नहीं है कपड़े बदलने की ||
आराम से सोता हूँ गली या और फूटपातो पेर
मुझे जरुरत  नहीं है बोछोना  बिछाने की ||
सेर पेर छत्त नहीं खुला असमान है |
मुझे जरुरत  नहीं है दुखो से घबराने की ||
मद्धम मद्धम सी रोशनी है चाँद सितारों की
मुझे जरुरत  नहीं है चिराग जलने की ||
दिवालिया होकर बादशाह हो गया हूँ |
अब  जरुरत  नहीं है पैसा कमाने की ||
दिनेश पारीक