तुम मुझे कहते हो अब की मुझे मोहब्बत से डर लगता है
डरते तो तुम हो और मेरी इबादत पे शक क्यों होता है
मैंने तो उन दिनों ही सारी जिंदगी जी ली थी
अब तो मरने का भी गम नहीं है मुझे को
काश वो दिन कुछ और लम्बे हो जाते
शादी और सगाई के बीच के वो दिन
कुछ और उधार मै ही मिल जाते
जब देखा था तुम को मैंने | एक टक देखती रह गई थी
कभी इतना अपने आप से गुम न हुई थी
बस पहली बार में ही प्यार कर बैठी
बात तो उस वक़्त नहीं हो पाई थी तुम से | पर ?
तुम्हारी आँखों से ही हर सवाल का जवाब मिल ही गया था
वो केसा अद्भुत प्यार और इबादत थी
हर वक़्त तुम ही तुम दिखाई देते थे
हर रोज़ आदत बदलती जा रही थी
वो इंतजार वो लम्हा जाने कब आयेगा
इस इंतजार में वो राते भी लम्बी हो जाती थी
बस गुम सूम रहना और तुम्हारे सपनो में खो जाना
तुम भी अब कितने बदल गए हो ?
मैंने तो सपनो में ऐसा न देखा था
इंतजार तो में अब भी करती हूं तुम्हारा
पहले तुम से मिलने का और अब तुम्हारे घर आने का
तुम पास तो आके देखो में तो वही तुम्हारी खुशबू हूं
पहले में तुम्हारा अपने घर में इंतजार करती थी
अब तुम्हारे घर में इंतजार करती हूं
में तो अब भी वही खुशबू हूं , तुम बस अपने प्यार से मुझे सींच के देखो
एक बार मुझे छु के देखो अब भी वही गहराई है मेरी इबादत में
अब तो मैंने वो सब नाज नखरे छोड़ दिए हैं
अब तुम्हारे नाज नखरे उठाने का मन करता है
तुम मेरे पास आके तो देखो अब भी वो ही ऑंखें है
जो तुम्हे कभी सकून देती थी
तुम पास होकर भी नहीं हो
तो ये ऑंखें मुझे सिर्फ गमो का पानी देती हैं
कितनी बार समझती हूं पर ये तुम्हे ही प्यार करती है
मुझे इंकार कर देती हैं
दिनेश पारीक