मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

प्रेम विरह


इस  वैरागी  प्रेम  ने  इतना दर्द  दिया है की 
सोते  जागते  इस दर्द  को ही सहना  पड़ता है 
जब भी सोता हूँ  तो नींद  नहीं आती  है 
और आ  भी जाये कभी आंखे बंद हो भी जाये कभी  तो 
 ये  प्रेम विरह  नहीं सोने  देता  ।। हे  मुरली  मोहन  वो मुरली  मुझे  देदो 
जिसे  में  बजाऊ  और  ना  मैं  सोऊ  न  रात  भर  उसे  सोने दूं 
और इस  प्रेम  पीड़ा  में जितना  आनंद  आये  
उतना  आनंद  तो  कही ना   आये 
बस ये पीड़ा  तभी ख़त्म  होगी जब 
जब  प्रेम   पूर्ण  संजोग  हो जाये 
और इसी  में  पूर्ण  प्रेम  हो जाये 
मुझे  कोई दूसरा  प्रेम  योग  नहीं  समझना 
और न ही इस  प्रेम  की पीड़ा  से मुक्ति 
क्यों  लोग कहते हैं  इस प्रेम  में  प्रेम विरह  है 
विरह  कहा है  दो शरीरो  में हो सकता है 
दो प्रेमी  के  आत्मोऔ  में  कहा विरह  है 
वो तो प्रतेक पल  एक दुसरे  के साथ ही रहते हैं 
इस वैरागी  मन को त्याग  कर 
वो ही सचा  प्रेम है 
प्रेम विरह  ही प्रेम  है 
 

49 टिप्‍पणियां:

  1. मन बैरागी है नहीं, उड़ता पंख पसार।
    यदि चाहे बैराग को, मन को लेना मार।।
    --
    आपकी पोस्ट का लिंक आज के चर्चा मंच पर भी है।

    जवाब देंहटाएं
  2. भाषा सरल,सहज यह कविता,
    भावाव्यक्ति है अति सुन्दर।

    सुंदर अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  3. रागी है यह मन मिरा, तिरा बिना पतवार |
    इत-उत भटके सिरफिरा, देता बुद्धि नकार |
    देता बुद्धि नकार, स्वार्थी सोलह आने |
    करे झूठ स्वीकार, बनाए बड़े बहाने |
    विरह-अग्नि दहकाय, लगन प्रियतम से लागी |
    सकल देह जलजाय, अजब प्रेमी वैरागी ||

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बढ़िया -

      प्रेरित करती प्रस्तुति



      तेरी मुरली चैन से, रोते हैं इत नैन ।

      विरह अग्नि रह रह हरे, *हहर हिया हत चैन ।

      *हहर हिया हत चैन, निकसते बैन अटपटे ।

      बीते ना यह रैन, जरा सी आहट खटके ।

      दे मुरली तू भेज, सेज पर सोये मेरी ।

      सकूँ तड़पते देख, याद में रविकर तेरी ॥

      *थर्राहट

      हटाएं
    2. दिनेश पारीक has left a new comment on your post "मिल रहा मौका जरा बाजा बजा दो-":

      बहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुति
      मेरी नई रचना
      खुशबू
      प्रेमविरह

      हटाएं
  4. आत्माओं का मिलन कोई रोक नहीं सकता ... यही सच्चा प्रेम है ...

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रेमपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  6. सच है प्रेम की अनुभूति तो विरह में ही है!

    जवाब देंहटाएं
  7. विरह और मिलन पर सटीक लिखा है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुन्दर रचना,आभार.

    जवाब देंहटाएं
  9. दो प्रेमी के आत्मोऔ में कहा विरह है

    यही तो प्रेम की पूर्णता है

    जवाब देंहटाएं
  10. शानदार रचना।

    कृपया इस जानकारी को भी पढ़े :- इंटरनेट सर्फ़िंग के कुछ टिप्स।

    जवाब देंहटाएं

  11. दो प्रेमी के आत्मोऔ में कहा विरह है
    वो तो प्रतेक पल एक दुसरे के साथ ही रहते हैं
    ...बस यही आपकी कविता का सार है ..यही सच है !

    जवाब देंहटाएं
  12. आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
    आप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
    भूलना मत

    htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
    इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।

    सूचनार्थ।

    जवाब देंहटाएं
  13. बढ़िया अभिव्यक्ति है दिनेश जी !

    जवाब देंहटाएं
  14. क्यों लोग कहते हैं इस प्रेम में प्रेम विरह है ...सुंदर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  15. वेदना में जन्म करुणा मे मिला आवास ,
    जीवन विरह का जलजात!

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुन्दर प्रेममयी रचना..

    जवाब देंहटाएं
  17. इस वैरागी मन को त्याग कर
    वो ही सचा प्रेम है
    प्रेम विरह ही प्रेम है
    khoob...
    prempurm kawita

    जवाब देंहटाएं
  18. भावपूर्ण और यथार्थ को व्यक्त कराती हुई रचना !

    जवाब देंहटाएं