इस वैरागी प्रेम ने इतना दर्द दिया है की
सोते जागते इस दर्द को ही सहना पड़ता है
जब भी सोता हूँ तो नींद नहीं आती है
और आ भी जाये कभी आंखे बंद हो भी जाये कभी तो
ये प्रेम विरह नहीं सोने देता ।। हे मुरली मोहन वो मुरली मुझे देदो
जिसे में बजाऊ और ना मैं सोऊ न रात भर उसे सोने दूं
और इस प्रेम पीड़ा में जितना आनंद आये
उतना आनंद तो कही ना आये
बस ये पीड़ा तभी ख़त्म होगी जब
जब प्रेम पूर्ण संजोग हो जाये
और इसी में पूर्ण प्रेम हो जाये
मुझे कोई दूसरा प्रेम योग नहीं समझना
और न ही इस प्रेम की पीड़ा से मुक्ति
क्यों लोग कहते हैं इस प्रेम में प्रेम विरह है
विरह कहा है दो शरीरो में हो सकता है
दो प्रेमी के आत्मोऔ में कहा विरह है
वो तो प्रतेक पल एक दुसरे के साथ ही रहते हैं
इस वैरागी मन को त्याग कर
वो ही सचा प्रेम है
प्रेम विरह ही प्रेम है
मन बैरागी है नहीं, उड़ता पंख पसार।
जवाब देंहटाएंयदि चाहे बैराग को, मन को लेना मार।।
--
आपकी पोस्ट का लिंक आज के चर्चा मंच पर भी है।
sundar prem virah abhivyakti ,
हटाएंसुंदर प्रेमातिरेक
जवाब देंहटाएंभाषा सरल,सहज यह कविता,
जवाब देंहटाएंभावाव्यक्ति है अति सुन्दर।
सुंदर अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
रागी है यह मन मिरा, तिरा बिना पतवार |
जवाब देंहटाएंइत-उत भटके सिरफिरा, देता बुद्धि नकार |
देता बुद्धि नकार, स्वार्थी सोलह आने |
करे झूठ स्वीकार, बनाए बड़े बहाने |
विरह-अग्नि दहकाय, लगन प्रियतम से लागी |
सकल देह जलजाय, अजब प्रेमी वैरागी ||
बहुत बढ़िया -
हटाएंप्रेरित करती प्रस्तुति
तेरी मुरली चैन से, रोते हैं इत नैन ।
विरह अग्नि रह रह हरे, *हहर हिया हत चैन ।
*हहर हिया हत चैन, निकसते बैन अटपटे ।
बीते ना यह रैन, जरा सी आहट खटके ।
दे मुरली तू भेज, सेज पर सोये मेरी ।
सकूँ तड़पते देख, याद में रविकर तेरी ॥
*थर्राहट
दिनेश पारीक has left a new comment on your post "मिल रहा मौका जरा बाजा बजा दो-":
हटाएंबहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुति
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंआत्माओं का मिलन कोई रोक नहीं सकता ... यही सच्चा प्रेम है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
sunder rchna...kamlesh
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंप्रेमपूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसच है प्रेम की अनुभूति तो विरह में ही है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना | बधाई
जवाब देंहटाएंविरह और मिलन पर सटीक लिखा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंदो प्रेमी के आत्मोऔ में कहा विरह है
जवाब देंहटाएंयही तो प्रेम की पूर्णता है
शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंकृपया इस जानकारी को भी पढ़े :- इंटरनेट सर्फ़िंग के कुछ टिप्स।
bahot sundar!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंदो प्रेमी के आत्मोऔ में कहा विरह है
वो तो प्रतेक पल एक दुसरे के साथ ही रहते हैं
...बस यही आपकी कविता का सार है ..यही सच है !
sahi kaha bhai.....bahut sundar likha hai
जवाब देंहटाएंआप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
जवाब देंहटाएंआप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
बढ़िया अभिव्यक्ति है दिनेश जी !
जवाब देंहटाएंक्यों लोग कहते हैं इस प्रेम में प्रेम विरह है ...सुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंवेदना में जन्म करुणा मे मिला आवास ,
जवाब देंहटाएंजीवन विरह का जलजात!
सुंदर अभिव्यक्ति..दिनेश जी !
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
recent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
बहुत सुन्दर प्रेममयी रचना..
जवाब देंहटाएंइस वैरागी मन को त्याग कर
जवाब देंहटाएंवो ही सचा प्रेम है
प्रेम विरह ही प्रेम है
khoob...
prempurm kawita
भावपूर्ण और यथार्थ को व्यक्त कराती हुई रचना !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर भावाव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंKAVYA SUDHA (काव्य सुधा)