गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

राष्ट्र हित में आप भी जुड़िये इस मुहीम से

राष्ट्र हित में आप भी जुड़िये इस मुहीम से -


सन 1945 मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तथाकथित हवाई दुर्घटना या उनके जापानी सरकार के सहयोग से 1945 के बाद सोवियत रूस मे शरण लेने या बाद मे भारत मे उनके होने के बारे मे हमेशा ही सरकार की ओर से गोलमोल जवाब दिया गया है उन से जुड़ी हुई हर जानकारी को "राष्ट्र हित" का हवाला देते हुये हमेशा ही दबाया गया है ... 'मिशन नेताजी' और इस से जुड़े हुये मशहूर पत्रकार श्री अनुज धर ने काफी बार सरकार से अनुरोध किया है कि तथ्यो को सार्वजनिक किया जाये ताकि भारत की जनता भी अपने महान नेता के बारे मे जान सके पर हर बार उन को निराशा ही हाथ आई !

मेरा आप से एक अनुरोध है कि इस मुहिम का हिस्सा जरूर बनें ... भारत के नागरिक के रूप मे अपने देश के इतिहास को जानने का हक़ आपका भी है ... जानिए कैसे और क्यूँ एक महान नेता को चुपचाप गुमनामी के अंधेरे मे चला जाना पड़ा... जानिए कौन कौन था इस साजिश के पीछे ... ऐसे कौन से कारण थे जो इतनी बड़ी साजिश रची गई न केवल नेता जी के खिलाफ बल्कि भारत की जनता के भी खिलाफ ... ऐसे कौन कौन से "राष्ट्र हित" है जिन के कारण हम अपने नेता जी के बारे मे सच नहीं जान पाये आज तक ... जब कि सरकार को सत्य मालूम है ... क्यूँ तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जाता ... जानिए आखिर क्या है सत्य .... अब जब अदालत ने भी एक समय सीमा देते हुये यह आदेश दिया है कि एक कमेटी द्वारा जल्द से जल्द इस की जांच करवा रिपोर्ट दी जाये तो अब देर किस लिए हो रही है ??? 

आप सब मित्रो से अनुरोध है कि यहाँ नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ और इस मुहिम का हिस्सा बने और अपने मित्रो से भी अनुरोध करें कि वो भी इस जन चेतना का हिस्सा बने !


Set up a multi-disciplinary inquiry to crack Bhagwanji/Netaji mystery



 यहाँ ऊपर दिये गए लिंक मे उल्लेख किए गए पेटीशन का हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है :- 

सेवा में,
अखिलेश यादव, 
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार 
लखनऊ 

प्रिय अखिलेश यादव जी,

इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, आप भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री इस स्थिति में हैं कि देश के सबसे पुराने और सबसे लंबे समय तक चल रहे राजनीतिक विवाद को व्यवस्थित करने की पहल कर सकें| इसलिए देश के युवा अब बहुत आशा से आपकी तरफ देखते हैं कि आप माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के हाल ही के निर्देश के दृश्य में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाग्य की इस बड़ी पहेली को सुलझाने में आगे बढ़ेंगे|
जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में | 1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उस संत के सामान को सुरक्षित रखने का अंतरिम आदेश दिया।

भगवनजी, जो अब गुमनामी बाबा के नाम से बेहतर जाने जाते है, एक पूर्ण वैरागी थे, जो नीमसार, अयोध्या, बस्ती और फैजाबाद में किराए के आवास पर रहते थे। वह दिन के उजाले में कभी एक कदम भी बाहर नहीं रखते थे,और अंदर भी अपने चयनित अनुयायियों के छोड़कर किसी को भी अपना चेहरा नहीं दिखाते थे। प्रारंभिक वर्षों में अधिक बोलते नहीं थे परन्तु उनकी गहरी आवाज और फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदुस्तानी ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे वह बचना चाहते थे। जिन लोगों ने उन्हें देखा उनका कहना है कि भगवनजी बुजुर्ग नेताजी की तरह लगते थे। वह अपने जर्मनी, जापान, लंदन में और यहां तक कि साइबेरियाई कैंप में अपने बिताए समय की बात करते थे जहां वे एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की एक मनगढ़ंत कहानी "के बाद पहुँचे थे"। भगवनजी से मिलने वाले नियमित आगंतुकों में पूर्व क्रांतिकारी, प्रमुख नेता और आईएनए गुप्त सेवा कर्मी भी शामिल थे।

2005 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थापित जस्टिस एम.के. मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट में पता चला कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में नहीं हुई थी। सूचनाओं के मुताबिक वास्तव में उनके लापता होने के समय में वे सोवियत रूस की ओर बढ़ रहे थे।

31 जनवरी, 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ललिता बोस और उस घर के मालिक जहां भगवनजी फैजाबाद में रुके थे, की संयुक्त याचिका के बाद अपनी सरकार को भगवनजी की पहचान के लिए एक पैनल की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देशन दिया।

जैसा कि यह पूरा मुद्दा राजनैतिक है और राज्य की गोपनीयता के दायरे में है, हम नहीं जानते कि गोपनीयता के प्रति जागरूक अधिकारियों द्वारा अदालत के फैसले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए किस तरह आपको सूचित किया जाएगा। इस मामले में आपके समक्ष निर्णय किये जाने के लिए निम्नलिखित मोर्चों पर सवाल उठाया जा सकता है:

1. फैजाबाद डीएम कार्यालय में उपलब्ध 1985 पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार भगवनजी नेताजी प्रतीत नहीं होते।

2. मुखर्जी आयोग की खोज के मुताबिक भगवनजी नेताजी नहीं थे।

3. भगवनजी के दातों का डीएनए नेताजी के परिवार के सदस्यों से प्राप्त डीएनए के साथ मेल नहीं खाता।

वास्तव मे, फैजाबाद एसएसपी पुलिस ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला था, कि “जांच के बाद यह नहीं पता चला कि मृतक व्यक्ति कौन थे" जिसका सीधा अर्थ निकलता है कि पुलिस को भगवनजी की पहचान के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला।

हम इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकला है कि "किसी भी ठोस सबूत के अभाव में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भगवनजी नेताजी थे"। दूसरे शब्दों में, आयोग ने स्वीकार किया कि नेताजी को भगवनजी से जोड़ने के सबूत थे, लेकिन ठोस नहीं थे।

आयोग को ठोस सबूत न मिलने का कारण यह है कि फैजाबाद से पाए गए भगवनजी के तथाकथित सात दातों का डी एन ए, नेताजी के परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों के साथ मैच नहीं करता था। यह परिक्षण केन्द्रीय सरकार प्रयोगशालाओं में किए गए और आयोग की रिपोर्ट में केन्द्र सरकार के बारे मे अच्छा नहीं लिखा गया। बल्कि, यह माना जाता है कि इस मामले में एक फोरेंसिक धोखाधडी हुई थी।
महोदय, आपको एक उदाहरण देना चाहेंगे कि बंगाली अखबार "आनंदबाजार पत्रिका" ने दिसंबर 2003 में एक रिपोर्ट प्रकाशित कि कि भगवनजी ग्रहण दांत पर डीएनए परीक्षण नकारात्मक था। बाद में, "आनंदबाजार पत्रिका", जो शुरू से ताइवान एयर क्रेश थिओरी का पक्षधर रहा है, ने भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष स्वीकार किया कि यह खबर एक "स्कूप" के आधार पर की गयी थी। लेकिन समस्या यह है कि दिसंबर 2003 में डीएनए परीक्षण भी ठीक से शुरू नहीं किया गया था। अन्य कारकों को ध्यान में ले कर यह एक आसानी से परिणाम निकलता है कि यह "स्कूप" पूर्वनिर्धारित था।

जाहिर है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश, एम.के. मुखर्जी ऐसी चालों के बारे में जानते थे और यही कारण है कि 2010 में सरकार के विशेषज्ञों द्वारा आयोजित डी एन ए और लिखावट के परिक्षण के निष्कर्षों की अनदेखी करके,उन्होंने एक बयान दिया था कि उन्हें "शत प्रतिशत यकीन है" कि भगवनजी वास्तव में नेताजी थे।यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि सर्वोच्च हस्तलेख विशेषज्ञ श्री बी लाल कपूर ने साबित किया था कि भगवनजी की अंग्रेजी और बंगला लिखावट नेताजी की लिखावट से मेल खाती है।

भगवनजी कहा करते थे की कुछ साल एक साइबेरियाई केंप में बिताने के बाद 1949 में उन्होंने सोवियत रूस छोड़ दिया और उसके बाद गुप्त ऑपरेशनो में लगी हुई विश्व शक्तियों का मुकाबला करने में लगे रहे। उन्हें डर था कि यदि वह खुले में आयेंगे तो विश्व शक्तियां उनके पीछे पड़ जायेंगीं और भारतीय लोगो पर इसके दुष्प्रभाव पड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि “मेरा बाहर आना भारत के हित में नहीं है”। उनकी धारणा थी कि भारतीय नेतृत्व के सहापराध के साथ उन्हें युद्ध अपराधी घोषित किया गया था और मित्र शक्तियां उन्हें उनकी 1949 की गतिविधियों के कारण अपना सबसे बड़ा शत्रु समझती थी।

भगवनजी ने यह भी दावा किया था कि जिस दिन 1947 में सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा, उस दिन भारतीय जान जायेंगे कि उन्हें गुमनाम/छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा।

खासा दिलचस्प है कि , दिसम्बर 2012 में विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय, लंदन, ने हम में से एक को बताया कि वह सत्ता हस्तांतरण के विषय में एक फ़ाइल रोके हुए है जो "धारा 27 (1) (क) सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (अंतरराष्ट्रीय संबंधों) के तहत संवेदनशील बनी हुई है और इसका प्रकाशन संबंधित देशों के साथ हमारे संबंधों में समझौता कर सकता है" ।

महोदय, इस सारे विवरण का उद्देश्य सिर्फ इस मामले की संवेदनशीलता को आपके प्रकाश में लाना है। यह बात वैसी नहीं है जैसी कि पहली नजर में लगती है। इस याचिका के हस्ताक्षरकर्ता चाहते है कि सच्चाई को बाहर आना चाहिए। हमें पता होना चाहिए कि भगवनजी कौन थे। वह नेताजी थे या कोई "ठग" जैसा कि कुछ लोगों ने आरोप लगाया है? क्या वह वास्तव में 1955 में भारत आने से पहले रूस और चीन में थे, या नेताजी को रूस में ही मार दिया गया था जैसा कि बहुत लोगों का कहना है।

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति वीरेन्द्र कुमार दीक्षित, भगवनजी के तथ्यों के विषय में एक पूरी तरह से जांच के सुझाव से काफी प्रभावित है। इसलिए हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रशासन को अदालत के निर्णय का पालन करने हेतू आदेश दें। आपकी सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों की एक टीम को मिलाकर एक समिति की नियुक्ति करे जो गुमनामी बाबा उर्फ भगवनजी की पहचान के सम्बन्ध में जांच करे।

यह भी अनुरोध है कि आपकी सरकार द्वारा संस्थापित जांच -

1. बहु - अनुशासनात्मक होनी चाहिए, जिससे इसे देश के किसी भी कोने से किसी भी व्यक्ति को शपथ लेकर सूचना देने को वाध्य करने का अधिकार हो । और यह और किसी भी राज्य या केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से सरकारी रिकॉर्ड की मांग कर सके।

2. सेवानिवृत्त पुलिस, आईबी, रॉ और राज्य खुफिया अधिकारी इसके सदस्य हो। सभी सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों, विशेष रूप से उन लोगों को, जो खुफिया विभाग से सम्बंधित है,उत्तर प्रदेश सरकार को गोपनीयता की शपथ से छूट दे ताकि वे स्वतंत्र रूप से सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों के लिए अपदस्थ हो सकें।

3. इसके सदस्यों में नागरिक समाज के प्रतिनिधि और प्रख्यात पत्रकार हो ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया जा सके। ये जांच 6 महीने में खत्म की जानी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा आयोजित नेताजी और भगवनजी के बारे में सभी गुप्त रिकॉर्ड मंगवाए जाने पर विचार करें। खुफिया एजेंसियों के रिकॉर्ड को भी शामिल करना चाहिए। उत्तर प्रदेश कार्यालयों में खुफिया ब्यूरो के पूर्ण रिकॉर्ड मंगावाये जाने चाहिए और किसी भी परिस्थिति में आईबी स्थानीय कार्यालयों को कागज का एक भी टुकड़ा नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

5.सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भगवनजी की लिखावट और अन्य फोरेंसिक सामग्री को किसी प्रतिष्ठित अमेरिकन या ब्रिटिश प्रयोगशाला में भेजा जाये.

हमें पूरी उम्मीद है कि आप, मुख्यमंत्री और युवा नेता के तौर पर दुनिया भर में हम नेताजी के प्रसंशकों की इस इच्छा को अवश्य पूरा करेंगे |

सादर
आपका भवदीय
अनुज धर
लेखक "India's biggest cover-up"

चन्द्रचूर घोष
प्रमुख - www.subhaschandrabose.org और नेताजी के ऊपर आने वाली एक पुस्तक के लेखक


Thanks & Regards

Dinesh pareek 

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

ये कैसी मोहब्बत है


इस रह-ऐ उल्फत के मुसाफिर  के साथ  तूने क्या किया 
कभी अपना  लिया कभी ठुकरा दिया 
मेरी मोहब्बत  मिटटी का महल तो नहीं 
कभी बना दिया तो कभी उसी मिटटी  में  मिला दिया 
तुम ने मेरे साथ वो खुशियों की बारिश जिया हैं 
कभी तुमने सरबत तो कभी शोक ऐ - जज्बात  बना दिया 
में कोई कठपुतली  तो नहीं हूँ ऐ  मेरे  मेहरबां 
जब तुमने पहना दिया  चाहा  तो उतार  दिया 
तुम  ने मेरे साथ बेस -कीमती जिंदगी जिया है 
कभी दुनिया को  बता दिया कभी कभी तुमने छुपा  लिया
में  वो कुम्हार की मिटटी  नहीं जो 
पहले  बना दिया  फिर आग  में झोंक  दिया  
आजकल लोगों का ये ही फलसफा है मेरे खुदा 
कभी हमें याद  कर लिया तो कभी हमें भुला दिया
में  कोई चलती  राहा  नहीं ( में कोई रास्ता नहीं )
तुमने  कभी ये पकड़  लिया  कभी वो छोड़  दिया  
तुम ने मेरे साथ जिदगी का वो किताब -ऐ मोहब्बत जिया 
कभी तुमने लिख लिया कभी मिटा दिया 
दिनेश पारीक ( तन्हां मेरा मन )

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

खुशबू

मर्ग  नैनी  चन्दन  के उपवन  से लगती हो
 इस बसंत  ऋतू  में  महकती  खुशबू  लगती हो
होश  तो हम तब भी खो देतें  हैं
जब तुम हमें  ( तुम  कैसे  हो भी कहे  देती हो )
कजरारे  नेन  घनघोर  काले बाल
इतराना  भी तो ऐसा  की
बदल  जाये  सब की चाल
खुशबू  भी ऐसी  फूलो  के उपवन से आती  हो
माघ  बिहू  में  भी बसंत  ऋतू  से लगती हो
देख तुम को  नैनो  ने कहा  
इस  दिल ने सुना 
राह नई जीवन ने पाई
 झरने सीखेंजिससे बहना
और  एक  सपना  बूना 
ऐसा  ख्वाब  सुनहरा  देखा
 दूभर  हो जाये  तुम से दूर रहना
चन्दन  बदन , मर्ग  लोचन  नैना
जब से मेरे  दिल में  आई
बन  बैठी  मेरी परछाई
हर  उपवन  में  बैठी कमल सी लगती हो
तुम मेरी  नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो
भरोसा  दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
तुम हमें खुदा  से भी अजीज  लगती हो 

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

प्रेम विरह


इस  वैरागी  प्रेम  ने  इतना दर्द  दिया है की 
सोते  जागते  इस दर्द  को ही सहना  पड़ता है 
जब भी सोता हूँ  तो नींद  नहीं आती  है 
और आ  भी जाये कभी आंखे बंद हो भी जाये कभी  तो 
 ये  प्रेम विरह  नहीं सोने  देता  ।। हे  मुरली  मोहन  वो मुरली  मुझे  देदो 
जिसे  में  बजाऊ  और  ना  मैं  सोऊ  न  रात  भर  उसे  सोने दूं 
और इस  प्रेम  पीड़ा  में जितना  आनंद  आये  
उतना  आनंद  तो  कही ना   आये 
बस ये पीड़ा  तभी ख़त्म  होगी जब 
जब  प्रेम   पूर्ण  संजोग  हो जाये 
और इसी  में  पूर्ण  प्रेम  हो जाये 
मुझे  कोई दूसरा  प्रेम  योग  नहीं  समझना 
और न ही इस  प्रेम  की पीड़ा  से मुक्ति 
क्यों  लोग कहते हैं  इस प्रेम  में  प्रेम विरह  है 
विरह  कहा है  दो शरीरो  में हो सकता है 
दो प्रेमी  के  आत्मोऔ  में  कहा विरह  है 
वो तो प्रतेक पल  एक दुसरे  के साथ ही रहते हैं 
इस वैरागी  मन को त्याग  कर 
वो ही सचा  प्रेम है 
प्रेम विरह  ही प्रेम  है 
 

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

फरियाद


वो कोनसा दिन था  की आप  जिस दिन हम आपको याद  नहीं करते हैं 
फर्क इतना सा  है हम भूलने की कोशिश करते हैं 
और  हमारे नैन  फरियाद करते हैं 
उनका  क्या हाल  होगा , ये ही  गम सताता  हैं
नींद  भी नहीं आती  , और सवेरा  निकल  जाता है 
हर  तरफ  उजाला है ,  दिल  मैं एक अँधेरा  हैं ।
सामने  वो कब आयेगा  वो ही बस एक सवेरा  है ।।
इतने  जख्म  हैं दिल पर ,  मेरे फिर भी  गम नहीं है 
मौत  के  डर से भूल जाये , तुम्हे  एसे  हम नहीं हैं
हमें  मोहब्बत  भी तुम से  और नफ़रत  भी है   
आप से मिलने  की दिल; से उस से जायदा  हसरत भी है ।।
दिनेश  पारीक 

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

ये मेरी वफ़ा


ऐ  तू वफ़ा रुसवा नहीं करना
सुनो ऐसा नहीं करना
मैं पहले ही बहुत  अकेला हूँ 
मुझे और तन्हा  नहीं करना
लोग कहते हैं हाथो  की 
लकीरे  अधूरी  होती हैं 
पर तुम  उस पर  अमल  मत करना 
जुदाई भी अगर आये
दिल छोटा नहीं करना
बहु मश्रुफ हो जाना
मुझे सोचा नहीं करना
भरोसा भी जरुरी है
मगर सबका नहीं करना
मुकद्दर फिर मुकद्दर है
कभी दावा नहीं करना
जो लिखा है जरुर होगा
कभी शिकवा नहीं करना
मेरी गुजारिश तुमसे है
मुझे आधा नहीं करना
हकीकत है मिलन  अपना
इसे सपना नहीं करना
हमे तुम याद रहते हो
हमे भूला नहीं करना