मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी!
मिट्टी का घर मिट्टी का मैं मिट्टी मैं मिल जाऊंगा
फिर भी नहीं मिटेगी ये मेरी ये तेरी मिट्टी
वो कुम्हार की थापी से
कितने रूपों मै मिली होगी कुटी -पिटी
हर बार अपना रंग बिखेर गई
फिर भी नहीं मिट्टी ये मेरी मिट्टी
गीली हो या सुखी कुछ भी मंड लो
कोर कागज सी कुछ भी लिख लो
कुछ इस तरह से है ये मेरी मिट्टी
मिट्टी का घर मिटटी का मैं मिट्टी की ये धरती
मिट्टी की गलिया , मिटटी के पेड मिट्टी मैं मिल जाते है
कुछ ऐसी इज्जत जो झट से मिट्टी मैं मिल जाये
मिट्टी के आदमी मिट्टी के बोल मिट्टी के खोल
मिट्टी 2 करता रहता है मिट्टी मैं मिल जाता है
मिट्टी की सोगंध मिट्टी मैं मिल जाती है
वो सूरज सब कुछ जला जाये , छलनी मैं भी आग लगा जाये
सूरज दमके तो ताप जाये एक बार मिट्टी भी तप जाये
दिन ढले तो वो भी डर जाये संध्या को वो भी थक जाये
बच्चो के खिलोने मिट्टी के ही बन जाये
समय गुजरे वो भी मिट्टी मैं मिलजाए
आंधी ए तो उड़ जाये बारिश ए तो घुल जाये
फसले कटती मिट्टी से वो उगती मिट्टी से
घर आये फिर हम उनको खाए
फिर भी वो मिल जाये मिट्टी
हजारो हाथो से कुटी -पीती ऐसी है ये मेरी मिट्टी
मिट्टी-मिट्टी पर मिटती है
मिट - मिट के सवरती हैं
मिट -मिट - के सवरती है मैं मिट्टी का तु मिट्टी का
घर मिट्टी का , खिलोने मिट्टी के ये भगवान मिट्टी के
वो भी मिट - मिट - के इस मिट्टी मैं मिटते हैं
ये मिट्टी के सपने मिट्टी पर सवारते हैं
मिटटी का चुला मिट्टी के बरतन मिट्टी मैं खाते हैं
फिर मिट्टी मैं ही मर जाते है
ये भी मिट्टी वो भी मिट्टी सारी दुनिया है मिट्टी
फिर भी तू क्यूँ बाटे इस मिट्टी को