मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: जब इस्लाम मूर्ति पूजा के विरुद्ध है तो मुसलमान काब...
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: जब इस्लाम मूर्ति पूजा के विरुद्ध है तो मुसलमान काब...: काबा मतलब किबला होता है जिसका मतलब है- वह दिशा जिधर मुखातिब होकर मुसलमान नमाज़ पढने के लिए खडे होते है, वह काबा की पूजा नही करते. मुसलमान कि...
दो जन्म
हाँ , आज हुआ है मेरा
जन्म ,
एक शानदार हस्पताल में ....
कमरे में टीवी है ...
बाथरूम है ...फ़ोन है ....
तीन वक्त का खाना
आता है .....
जब मेरा जन्म हुआ
तो मेरे पास ...
डाक्टरों और नर्सों
का झुरमट ....
मेरी माँ मुझे देखकर
अपनी पीड़ा को
कम करने की कोशिश
कर रही है .....
हर तरफ ख़ुशी बिखर
गयी है मेरे आने से ....
दुनिया की हर अख़बार में ,
टीवी पे , फेसबुक पे ,
ट्विटर पे ......हर जगह
पे घोषणा हो रही है
हमारे आने की .....
मेरे पिता जी व्यस्त है
लोगों के मिलने में ...
फोन सुनने में ...
उनकी ख़ुशी का
कोई ठिकाना नहीं ...
चारों तरफ बस ख़ुशी ही ख़ुशी
हाँ मेरा भी जन्म हुआ
है आज ....
एक सडक के किनारे
गरीब की झोंपड़ी में .....
उस झोंपड़ी में ....
बस एक दिया है ...
जो न मात्र रौशनी दे रहा है .....
मेरी माँ पीड़ा से अभी भी
कराह रही थी .....
कोई डाक्टर या नर्स नहीं
आई थी ...
पास वाली झोंपड़ी से
ही एक औरत ने
आकर मेरे पैदा
होने में सहायता की .....
मेरे पिता जी उस वक्त
भी मजदूरी कर के घर
आए ......
कैसा है मेरा आना
कोई भी खुश नहीं हो रहा
सिवाए मेरी माँ के .....
मेरे पिता जी अब
यह सोच रहे है कि
पहले दो लोगों का
ही मुश्किल से चलता है ...
अब तीन तीन लोगों का ....
कैसे चलेगा ......
हाँ अगर किसी को
दरअसल ख़ुशी
हुई होगी तो मेरे
पिता जी के मालिक
को ....
जिसको लगा कि
उसका एक और
मजदूर बढ़ गया है ....
इन दोनों ही जन्मों
में जमीन आसमान
का फर्क है .....
हाँ अगर कुछ समान्य
है तो दोनों माताओं का
इस क्रिया से गुजरना
पर फिर भी हम कैसे
कह देते हैं ,
सभी मानुष एक से है
जभ भी सोचता हूँ ..
विचलित हो जाता हूँ ...
पर इसका जवाब मेरे
पास तो नहीं है .
जन्म ,
एक शानदार हस्पताल में ....
कमरे में टीवी है ...
बाथरूम है ...फ़ोन है ....
तीन वक्त का खाना
आता है .....
जब मेरा जन्म हुआ
तो मेरे पास ...
डाक्टरों और नर्सों
का झुरमट ....
मेरी माँ मुझे देखकर
अपनी पीड़ा को
कम करने की कोशिश
कर रही है .....
हर तरफ ख़ुशी बिखर
गयी है मेरे आने से ....
दुनिया की हर अख़बार में ,
टीवी पे , फेसबुक पे ,
ट्विटर पे ......हर जगह
पे घोषणा हो रही है
हमारे आने की .....
मेरे पिता जी व्यस्त है
लोगों के मिलने में ...
फोन सुनने में ...
उनकी ख़ुशी का
कोई ठिकाना नहीं ...
चारों तरफ बस ख़ुशी ही ख़ुशी
हाँ मेरा भी जन्म हुआ
है आज ....
एक सडक के किनारे
गरीब की झोंपड़ी में .....
उस झोंपड़ी में ....
बस एक दिया है ...
जो न मात्र रौशनी दे रहा है .....
मेरी माँ पीड़ा से अभी भी
कराह रही थी .....
कोई डाक्टर या नर्स नहीं
आई थी ...
पास वाली झोंपड़ी से
ही एक औरत ने
आकर मेरे पैदा
होने में सहायता की .....
मेरे पिता जी उस वक्त
भी मजदूरी कर के घर
आए ......
कैसा है मेरा आना
कोई भी खुश नहीं हो रहा
सिवाए मेरी माँ के .....
मेरे पिता जी अब
यह सोच रहे है कि
पहले दो लोगों का
ही मुश्किल से चलता है ...
अब तीन तीन लोगों का ....
कैसे चलेगा ......
हाँ अगर किसी को
दरअसल ख़ुशी
हुई होगी तो मेरे
पिता जी के मालिक
को ....
जिसको लगा कि
उसका एक और
मजदूर बढ़ गया है ....
इन दोनों ही जन्मों
में जमीन आसमान
का फर्क है .....
हाँ अगर कुछ समान्य
है तो दोनों माताओं का
इस क्रिया से गुजरना
पर फिर भी हम कैसे
कह देते हैं ,
सभी मानुष एक से है
जभ भी सोचता हूँ ..
विचलित हो जाता हूँ ...
पर इसका जवाब मेरे
पास तो नहीं है .
लेबल:
-ज़िंदगी का एक और रंग-,
दो जन्म
बुधवार, 22 फ़रवरी 2012
क्यों पसरा है सन्नाटा
आया है माहौल चुनावी इस बार सन्नाटे में ...
द्वार द्वार न झंडे है न पोस्टर बैनर
न ही नेता दिखते शोर मचाते न दिखते चमचे
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियों में
क्यों पकड़ा जाता बीच चौराहों पर कला धन सफ़ेद कपड़ो में
सभी पहने है सफ़ेद कपडे काले मन और तन पर
सभी मिताय्न्गे ब्रश्ताचार खा के कसम ये कहते है
इसने लुटा उसने लुटा इस बार लूटेंगे हम भी
इतनी बार बने हो वेबकुफ़ इस बार हमसे भी बन के देखो
नहीं है यू. पी. की सत्ता में सालो से
अब चाहत है बनकर आने की युवराज यू पी का
मिटा देंगे भुखमरी और गरीबी बेरोजगार न होगा कोई
कहते कहते गला दुःख गया है मेरा
अब तो सो जाओ जनता एक बार फिर से
सज धज कर आयेंगे इस बार लुटाने हम भी
क़तर देंगे माया रूपी जाल धन का ,मारंगे गुंडों को घर पर
क्यों जग रही हो जनता भ्रष्टाचार के अन्धकार से
क्यों बर्बाद कर रहे हो करियर नेताओ का
फरवरी की ठण्ड में और सो जाओ फिर देखो काम हमारा
नेता है हम भी बेरोजगारी मत बनाओ
तुम्हारी बेरोजगारी से ही तो रोजगार हमे है मिलता
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में
आशीष त्रिपाठी
द्वार द्वार न झंडे है न पोस्टर बैनर
न ही नेता दिखते शोर मचाते न दिखते चमचे
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियों में
क्यों पकड़ा जाता बीच चौराहों पर कला धन सफ़ेद कपड़ो में
सभी पहने है सफ़ेद कपडे काले मन और तन पर
सभी मिताय्न्गे ब्रश्ताचार खा के कसम ये कहते है
इसने लुटा उसने लुटा इस बार लूटेंगे हम भी
इतनी बार बने हो वेबकुफ़ इस बार हमसे भी बन के देखो
नहीं है यू. पी. की सत्ता में सालो से
अब चाहत है बनकर आने की युवराज यू पी का
मिटा देंगे भुखमरी और गरीबी बेरोजगार न होगा कोई
कहते कहते गला दुःख गया है मेरा
अब तो सो जाओ जनता एक बार फिर से
सज धज कर आयेंगे इस बार लुटाने हम भी
क़तर देंगे माया रूपी जाल धन का ,मारंगे गुंडों को घर पर
क्यों जग रही हो जनता भ्रष्टाचार के अन्धकार से
क्यों बर्बाद कर रहे हो करियर नेताओ का
फरवरी की ठण्ड में और सो जाओ फिर देखो काम हमारा
नेता है हम भी बेरोजगारी मत बनाओ
तुम्हारी बेरोजगारी से ही तो रोजगार हमे है मिलता
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में
आशीष त्रिपाठी
लेबल:
-ज़िंदगी का एक और रंग-
शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012
बोलो खरीदोगे ?
बोलो खरीदोगे ?
यहाँ जिंदगी बिकती है बिकती है मौत यहाँ
यहाँ लाश बिकती है बिकता है जिश्म यहाँ
यहाँ भक्त बिकते
है बिकते है भगवान यहाँ
बोलो खरीदोगे ?
यहाँ डाक्टर बिकते है बिकते है ईमान यहाँ
बिकते है नेता यहाँ बिकती है जुबान यहाँ
बिकते है अपराध यहाँ बेचती है पुलिस यहाँ
बोलो खरीदोगे ?
बिकती है इज्ज़त यहाँ बिकती है शर्म ओ हया
बिकती है बेटी यहाँ बिकती है बहने यहाँ
बिकती है ममता यहाँ बेचती है माँ यहाँ
बोलो खरीदोगे ?
बिक रहा है ईमान यहाँ बेच रहे ईमानदारी यहाँ
बिक रहा गुनाह यहाँ बेच रहे गुनहगार यहाँ
बिक रहा देश यहाँ बिक रहे देशवाशी यहाँ
बोलो खरीदोगे ?
आशीष त्रिपाठी
रविवार, 12 फ़रवरी 2012
ये उनका शहर है!
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कम्पनी के कारखाने से एक हानिकारक गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अंधापन के शिकार हुए. भोपाल गैस काण्ड विश्व इतिहास का ऐसा नासूर है जो हर दिसम्बर मे बहुत बुरी टीस देता है. हालाँकि, इस घटना से पीड़ित लोगो की संख्या लाखो मे है और वहाँ जन्म लेने वाले बच्चे अब भी अपंग पैदा होते है. मुझे ये नहीं जानना की किसकी गलती है है…..मुझे बस 26 सालो के दर्द की दवा और उन करोडो आंसुओ को पोछने वाले हाथ चाहिए जिनसे सत्ता और पैसे की गंध ना आये.
जब भोपाल गैस काण्ड के दोषियों की बात होती है तो ऐसा लगता है हर चीज़ उन्होंने खरीद ली है…शायद ये शहर भी! ये ग़ज़ल भोपाल गैस त्रासदी पर लिखी है.
ये उनका शहर है!
कातिल आँधियों मे किसका ये असर है?
दिखता क्यों नहीं है हवा मे जो ज़हर है?
चीखें सूखती सी कहाँ मेरा बशर है?
ये उनका शहर है….
धुँधला आसमां क्यों शाम-ओ-सहर है?
आदमखोर जैसा लगता क्यों सफ़र है?
ढलता क्यों नहीं है ये कैसा पहर है?
ये उनका शहर है….
जानें लीलती है ख़ूनी जो नहर है.
माझी क्यों ना समझे कश्ती पर लहर है?
हुआ एक जैसा सबका क्यों हषर है?
ये उनका शहर है…
रोके क्यों ना रुकता…हर दम ये कहर है?
है सबके जो ऊपर..कहाँ उसकी मेहर है?
जानी तेरी रहमत किस्मत जो सिफर है!
ये उनका शहर है….
इंसानों को तोले दौलत का ग़दर है!
नज़र जाए जहाँ तक मौत का मंज़र है!
उजड़ी बस्तियों मे मेरा घर किधर है?
ये उनका शहर
जब भोपाल गैस काण्ड के दोषियों की बात होती है तो ऐसा लगता है हर चीज़ उन्होंने खरीद ली है…शायद ये शहर भी! ये ग़ज़ल भोपाल गैस त्रासदी पर लिखी है.
ये उनका शहर है!
कातिल आँधियों मे किसका ये असर है?
दिखता क्यों नहीं है हवा मे जो ज़हर है?
चीखें सूखती सी कहाँ मेरा बशर है?
ये उनका शहर है….
धुँधला आसमां क्यों शाम-ओ-सहर है?
आदमखोर जैसा लगता क्यों सफ़र है?
ढलता क्यों नहीं है ये कैसा पहर है?
ये उनका शहर है….
जानें लीलती है ख़ूनी जो नहर है.
माझी क्यों ना समझे कश्ती पर लहर है?
हुआ एक जैसा सबका क्यों हषर है?
ये उनका शहर है…
रोके क्यों ना रुकता…हर दम ये कहर है?
है सबके जो ऊपर..कहाँ उसकी मेहर है?
जानी तेरी रहमत किस्मत जो सिफर है!
ये उनका शहर है….
इंसानों को तोले दौलत का ग़दर है!
नज़र जाए जहाँ तक मौत का मंज़र है!
उजड़ी बस्तियों मे मेरा घर किधर है?
ये उनका शहर
लेबल:
कविता
शनिवार, 11 फ़रवरी 2012
अगर तुम होती ...
अगर तुम होती ...
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता माँ.....
आज मैं दूर हु अपनी माँ से मैं मजबूर हु, अपने आप से
कभी थक कर आता था घर ..माँ का आंचल पता था भर
थकावट दूर होती थी मिलो की ..एक नई सुबह होती थी उम्मीदों की ...
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ...
जब भूखा होता था तो खिलाती थी खाना
आज अपनी ही बनी जली रोटी हु खाता
जब करता था शैतानी तो देती थी सजा
आज मेरे पास है पैसा मस्ती और मज़ा
पर नहीं है तो वो प्यारी माँ और उसकी सजा
जब चलते चलते गिरता था जमीन पर जब सोते सोते रोता था रातो में
तब एक माँ ही थी जो उठती सहलाती थी और दवा लगाती थी
आज रोते रोते सोता हु माँ की यादो में
और गिर गिर कर चलता हु बिन माँ के सहारे से
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ....
पैसो का मोल समझाती थी माँ संस्कारो की दौलत देती थी माँ
आज पैसा भी है मेरे पास संस्कारो की दौलत भी है मेरे पास
अगर नहीं है कुछ तो वो प्यारी माँ मेरे पास
वो माँ का गलतियों पर डाटना और अछाइयो पर गुडडन कहना
लेकिन अब कोई बेटा अपनी माँ को न अलविदा कहना
क्योकि आज परदेश में आकर ...अकेले में अपने आप से हु पूछता
की बिन माँ के बेटा कैसा होता है
अगर माँ होती तो ऐसा होता है
अगर माँ होती तो वैसा होता है ....
आशीष त्रिपाठी के द्वारा
अगर तुम होती तो वैसा होता माँ.....
आज मैं दूर हु अपनी माँ से मैं मजबूर हु, अपने आप से
कभी थक कर आता था घर ..माँ का आंचल पता था भर
थकावट दूर होती थी मिलो की ..एक नई सुबह होती थी उम्मीदों की ...
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ...
जब भूखा होता था तो खिलाती थी खाना
आज अपनी ही बनी जली रोटी हु खाता
जब करता था शैतानी तो देती थी सजा
आज मेरे पास है पैसा मस्ती और मज़ा
पर नहीं है तो वो प्यारी माँ और उसकी सजा
जब चलते चलते गिरता था जमीन पर जब सोते सोते रोता था रातो में
तब एक माँ ही थी जो उठती सहलाती थी और दवा लगाती थी
आज रोते रोते सोता हु माँ की यादो में
और गिर गिर कर चलता हु बिन माँ के सहारे से
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ....
पैसो का मोल समझाती थी माँ संस्कारो की दौलत देती थी माँ
आज पैसा भी है मेरे पास संस्कारो की दौलत भी है मेरे पास
अगर नहीं है कुछ तो वो प्यारी माँ मेरे पास
वो माँ का गलतियों पर डाटना और अछाइयो पर गुडडन कहना
लेकिन अब कोई बेटा अपनी माँ को न अलविदा कहना
क्योकि आज परदेश में आकर ...अकेले में अपने आप से हु पूछता
की बिन माँ के बेटा कैसा होता है
अगर माँ होती तो ऐसा होता है
अगर माँ होती तो वैसा होता है ....
आशीष त्रिपाठी के द्वारा
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