गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

इतनी बड़ी धरती हमारी और छोटे से हम

earth

इतनी बड़ी धरती हमारी
और छोटे से हम

मानव, मींन. पशु, और पतिंगे
लाखो जीवों का यह घर;
धरती पर, धरती के नीचे,
कुछ रहते धरती की उपर,
सब मे जीवन, सब है बराबर,
नही है कोई कम|
इतने बड़ी धरती हमारी
और छोटे से हम|

रंग-बिरंगे, पर, पकांगे,
माघ, गगन पंछी मंडराते;
दाने दो ही चुगते लकिन
मीठे, लंबे गीत सुनते;
डगमग चलते, नाचा करते
खुश रहते हेर दम|
इतनी बड़ी धरती हुमारी
और छोटे से हम|

कई, घास, पौधे नन्हे,
जीवन रक्षक वृक्ष हुमारे;
रोटी. दल, सब्ज़ी, फल
आनोंदो के श्रोत हुमारे;
जब तक भूमि हरी रहेगी
स्वस्थ रहेंगे हम|
इतने बरी धरती हुमारी
और छोटे से हम|


1 टिप्पणी:

  1. आप मेरे ब्लॉग पर आए बहुत अच्छा लगा |मुझे आपके लेखन में कुछ विशेष लगा |अपने मन की बात लिखने में कोई बुराई नहीं है |पर विषय चुनते समय अवश्य सावधान रहना चाहिए |कहीं बिना बात बहस का विषय ना बन जाए |इस रचना के लिए बधाई |
    आशा

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