मर्ग  नैनी
 चन्दन  के उपवन  से लगती हो
बदल  जाये  सब की चाल 
बदल जाये सब की चाल
 
 
 
अच्छा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंजो अज़ीज़ होते हैं उनकी कसम क्यों खाएं ...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ...
बहुत उम्दा प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंbadhiya rachna ....
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से भरी रचना !
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
अच्छा है
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
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बढ़िया सुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहर उपवन में बैठी कमल सी लगती हो
जवाब देंहटाएंतुम मेरी नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो------sunder bhaw badhai
किसी की चाहत सच में इनसान को कवि बना देती है ये मैं नही ख़ुद आपकी कविता कह रही है बहुत बढ़िया जज़्बात से भरी अभिव्यक्ति हेतु बहु बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंnice pyari lines...
जवाब देंहटाएंहर उपवन में बैठी कमल सी लगती हो
जवाब देंहटाएंतुम मेरी नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो
भरोसा दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
तुम हमें खुदा से भी अजीज लगती हो
सुन्दर पंक्तियाँ
सादर
सुन्दर कविता | सादर
जवाब देंहटाएंBahut Hi Sunder.....
जवाब देंहटाएंभरोसा दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
जवाब देंहटाएंतुम हमें खुदा से भी अजीज लगती हो
...वाह!...कित्तनी सुन्दर रचना!
भावपूर्ण सुन्दर रचना के लिए बधाई |मृग की जगह मग लिखा है ठीक कर लीजिएगा |
जवाब देंहटाएंआशा