वो मेरी परछाई, वो मेरा साया
कुछ इस कदर से चाहते है की
मुझे भी जलन होती है
कभी अपनी परछाई से तो कभी अपने साये से
न उन्हें कभी गम होता है ना इनका प्यार कम होता है
हर पल एक साथ चलते हैं
एक दुसरे का हाथ पकड़ के
एक दुसरे की राह पकडके
ना कभी भूला था रास्ता
हर वक्त मेरे साथ होते हैं
कभी मेरे साथ कोई सिकवा ना गिला
ना इने रत का अँधेरा डरता हैं ना दिन के उजाले से ये डर के
भागते है
बस दिन के उजाले मैं ये मेरी परछाई मेरे अंधार से बहार आकार
मेरी तरह इस कडकती धुप में चलती रहती है
तन्हा मैं हूं, तन्हा राहें भी | साथ तन्हाइयों से रहा मेरा.
खोई हूं इस कद्र जमाने में | पूछता हूँ मेरे साये से पता मेरा.
कल रात सोचा था रोशनी का इंतज़ार करेंगे,
छिटक कर दूर हर बुरे ख्वाब को,
महबूब यार का फिर एहतराम करेंगे.
मगर ये क्या हुआ कि,
आज फिर सूरज रूठ गया,
अपनी रोशनी को समेट,
आज मेरे साये को भी जुदा कर गया.
छिटक कर दूर हर बुरे ख्वाब को,
महबूब यार का फिर एहतराम करेंगे.
मगर ये क्या हुआ कि,
आज फिर सूरज रूठ गया,
अपनी रोशनी को समेट,
आज मेरे साये को भी जुदा कर गया.
dinesh jee bahut badhiya hai
जवाब देंहटाएंमगर ये क्या हुआ कि,
जवाब देंहटाएंआज फिर सूरज रूठ गया,
अपनी रोशनी को समेट,
आज मेरे साये को भी जुदा कर गया.
बेहतरीन अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट 'बहती गंगा' पर आपका इंतजार रहेगा।
बेहतरीन अभिव्यक्ति
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