बुधवार, 2 मई 2012

महक आती है बदन से पसीने की |


महक आती है बदन से पसीने की |
मुझे जरुरत  नहीं है  खुशबु  लगाने  की ||
मजदूर हूँ   यही  पहचान  है  मेरी
मुझे जरुरत  नहीं है कपड़े बदलने की ||
आराम से सोता हूँ गली या और फूटपातो पेर
मुझे जरुरत  नहीं है बोछोना  बिछाने की ||
सेर पेर छत्त नहीं खुला असमान है |
मुझे जरुरत  नहीं है दुखो से घबराने की ||
मद्धम मद्धम सी रोशनी है चाँद सितारों की
मुझे जरुरत  नहीं है चिराग जलने की ||
दिवालिया होकर बादशाह हो गया हूँ |
अब  जरुरत  नहीं है पैसा कमाने की ||
दिनेश पारीक

15 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया |
    आभार भाई जी ||

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  2. आराम से सोता हूँ गली या और फूटपातो पेर
    मुझे जरुरत नहीं है बोछोना बिछाने की ||


    kya bat hai...

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  3. मुझे जरुरत नहीं है दुखो से घबराने की ||
    मद्धम मद्धम सी रोशनी है चाँद सितारों की
    मुझे जरुरत नहीं है चिराग जलने की ||
    दिवालिया होकर बादशाह हो गया हूँ |
    अब जरुरत नहीं है पैसा कमाने की ||


    कविता में भावों का समावेश अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  4. आराम से सोता हूँ गली या और फूटपातो पेर
    मुझे जरुरत नहीं है बोछोना बिछाने की ||
    सेर पेर छत्त नहीं खुला असमान है |भाई साहब बहुत अव्वल रचना है अशुद्धियों को ठीक कर लें -पेर का पर कर लें .,बोछौना का बिछौना ,सेर पेर को सिर पर कर लें ,दीप जलाने की कर लें .रचना का सौन्दर्य बढ़ जाएगा .वैसे तो मजदूर तो होता ही अनगढ़ है सो ये भी ठेक है .फिर भी ....कृपया यहाँ भी पधारें -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_7883.html./http://veerubhai1947.blogspot.in/
    शनिवार, 5 मई 2012
    चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग - १

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  5. बहुत ही सुंदर भाव...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...

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  6. सेर पेर छत्त नहीं खुला असमान है |
    मुझे जरुरत नहीं है दुखो से घबराने की ||
    HAPPY FAMILY DAY.

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  7. jisme swabhimaan ho use kisi cheej ki jaroorat nahi unka parishram hi unka swaabhimaan hai ...aapne bahut sundar rachna likhi hai.

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. मद्धम मद्धम सी रोशनी है चाँद सितारों की
    मुझे जरुरत नहीं है चिराग जलने की ||waah.....bahut acchi prastuti....

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  10. सच में है वो जीवट का धनी जो दुख को पीकर हंसता है
    टूटी आशाओं के मलबे में जिसका सपना बसता है

    सुन्दर प्रस्तुति..
    मैंने भी अभी अभी ब्लोग लिखना शुरु किया है
    कभी पधारें ....स्वागत है

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  11. बहुत ही प्रभावी रचना .... आभार

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  12. दिवालिया होकर बादशाह हो गया हूँ |
    अब जरुरत नहीं है पैसा कमाने की ||
    नजर जब खुद से मिलाना आ गया मुझे
    अब जरुरत नहीं है किसी से नजर चुराने की.
    क्या बात है जी ,सुन्दर गीत .......

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