रविवार, 14 अप्रैल 2013

मेरी मांग



 कुछ देखा और कुछ मन  को  भा गया
उपर वाले  को  फिर से मेरी इस मांग  पर गुस्सा  आ गया 
फिर भी चुप  था  में  जो  मेरी  मांग  ठुकरा  गया 
मैंने  माँगा  जो   उसने कहा वो  गुस्से  में  आ  गया
मेरे चाँद  की रोटी  फिर  से कोई खा  गया 
 सपना था मेरा  बहुत पुराना  मुझे भी गुस्सा  आ  गया
नील  आसमान  पर मैं  भी राहू  की तरह  छा  गया 
मेरा सपना  बेचैन  था बेचैन थी ये हवाएँ 
मेरी हर  उमंग  बेचैन  थी  मेरा  हर  सपना  छला  गया 
मेरी हर  उमंग  को  मेरी  आदत  कहा  गया 
 दिन  में  सोने  अँधेरी  रात  को भी दिन  कहा  गया 
अदालत  लगी इस असमान पर  फिर मुझे बंदी  बनाया  गया 
आसमान  के सितारों  को गवाह  बनाया  गया 
मुझे  मेरे  सपने  देखने  के जुर्म  में  पागल  बनाया  गया 
हर  सपना  टुटा मेरा  अब  क  से  कबूतर  बनाया  गया 
मुझे अब विद्यालय  जाने  का  फसला  सुनाया  गया 


35 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान भाग दौड में मै का फंसा जाने का एहसास कविता से होता है। आज सपने देखना भी जुर्म माना जाता है वास्तव की कडवाहट को बताता है। साथ ही 'क' से कबूतर बनाए जाने की अभिव्यक्ति आजादी छिनने जैसा है। वैसे कबूतर पंछी है और पंछी आजाद होते हैं पर पिजडे का कबूतर तो बंदीवान ही होता है।

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  2. इतना सब हो गया
    ऊपर वाला पागल तो नहीं हो गया
    शुभकामनायें ....

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  3. किसी बात में ऊपर वाले को दोष देना ठीक नहीं ... पर इतना कुछ हो तो मन भी क्या करे ...

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  4. मुझे मेरे सपने देखने के जुर्म में पागल बनाया गया
    हर सपना टुटा मेरा अब क से कबूतर बनाया गया
    मुझे अब विद्यालय जाने का फसला सुनाया गया


    गहन भाव लिय....... बेहद सशक्‍त रचना मन को छूती हुई !

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  5. मन में एक अजीब अहसास करती बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति.

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  6. इतना सब हो गया और आप अब बता रहे है? :)
    ठीक है.... :)

    शानदार अभिव्यक्ति!!

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  7. मुझे मेरे सपने देखने के जुर्म में पागल बनाया गया ..waah bahut badhiya ...sapne dekhte rahiye ..jo sapne dekhte hain unke sapne jarur poore hote hain .....

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  8. जब सपने छले जाते हैं तो ऐसे ही गुस्सा आता है....
    कितने बदनसीब होते हैं वो सपने... :(
    ~God Bless!!!

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  9. मित्र --- आपका गुस्सा जायज है -
    लेकिन आपने ये गुस्सा बहुत ख़ूबसूरती से बयान किया है .
    जिसके लिए आप बढाए के पात्र हैं - शुभकामनाये

    मुकेश इलाहाबादी

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  10. मुझे मेरे सपने देखने के जुर्म में पागल बनाया गया
    गहन भाव...

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  11. वाह ! सपने देखना भी जुर्म है जहाँ उस दुनिया से कौन दिल लगाये..

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  12. जो भुगत रहा है उसके आँख के आंसूं सूख गये हैं
    बहुत सशक्त रचना
    सार्थक------उत्कृष्ट प्रस्तुति
    शुभकामनायें

    मेरा नया गीत पढ़ें

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  13. बहुत उम्दा .सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  14. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मासूम सपनो की तरह विद्यालय जाने का फेंसला भले के लिए सुनाया गया बहुत बहुत बधाई

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  15. बड़ी मार्मिक ...खैर ... हर किसी का कोई न कोई सपना तो होता ही है और उसमे अनेकों रुकावटें आती हैं।

    ब्लॉग पर मेरी मेरी पहली पोस्ट : : माँ
    (आपकी सहायता की महती आवश्यकता है .. अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।)

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  16. मुझे मेरे सपने देखने के जुर्म में पागल बनाया गया..............

    बहुत गहन..

    अनु

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  17. बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......

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  18. गरीब के लिए
    इतना सस्ता डॉकटर
    गरीब के लिए महँगा है
    इतनी बेकार जगह
    गरीब के लिए सही है
    टपकती हुई छत
    गरीब के लिए ठीक है
    हरा गन्दा पानी
    गरीब के लिए शुद्ध है
    बेमतलब अधुरी पढ़ाई
    गरीब के लिए पूरी है
    दुसरो के हँसी का पात्र बनना
    गरीब का मनोरंजन है
    फेसबुक , गूगल रोज कि आदत
    गरीब के लिए पहेली है

    पैर में नहीं कुछ
    निकतला रोज टूटी मड़ई से
    छुता रोज पैर
    भगवान के

    लेकिन भगवान भी तो
    तब ही सुनेंगे न जब
    उन्हें मिलेगी फुर्सत
    पैसे वालो से

    क्यों आयंगे भगवान
    गरीबो के पास जब
    उन्हें मिल जाता है सब कुछ
    अमीरो के पास

    क्यों नहीं सुनी जा रही
    दिनेश पारीक कि
    मांग क्योंकि
    नहीं है गरीबो के पास
    चढ़ाने को ज्यादा रुपये ,मिठाई
    नहीं है उनके पास घी के दिए

    नहीं मिलता कुछ बिना दिए
    भगवान के दहलीज पर भी
    विश्वास कुमार (प्रेम)
    मो: 9557447043
    (बहुत खूब मन खुस हो गया और उसी का नतीज़ा आपके सामने ,,,, धन्यावाद)

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