बुधवार, 4 अप्रैल 2012

प्रेम कविताएँ


हाँ पापा, मैंने प्यार किया था
उसी लड़के से
जिसे आपने मेरे लिए ढूँढा था।

उसी लड़के से
जो बेटा था आपके ही मित्र का।
हाँ पापा, मैंने प्यार किया था बस उसी से।

फिर क्या हुआ?
क्यों नहीं बन सकी मैं उसकी और वो मेरा?

मैंने तो एक अच्छी बेटी का
निभाया था ना फर्ज?
जो तस्वीर लाकर रख दी सामने
उसी को जड़ लिया था अपने दिल की फ्रेम में।

फिर क्यों हुआ ऐसा कि
नहीं हुआ उसे मुझसे प्यार?

क्या साँवली लड़कियाँ
नहीं ब्याही जाती इस देश में?

क्यों लिखते हैं कवि झूठी कविताएँ?
अगर होता जो मुझमें सलोनापन तो
क्या यूँ ठूकरा दी जाती
बिना किसी अपराध के?

पापा, आपको नहीं पता
कितना कुछ टूटा था उस दिन
जब सुना था मैंने आपको यह कहते हुए
'बस, थोड़ा सा रंग ही दबा हुआ है मेरी बेटी का
बाकि तो कुछ कमी नहीं।

उफ, मैं क्यों कर बैठी उस शो-केस में रखे
गोरे पुतले से प्यार?

मुझे देख लेना था
अपने साँवले रंग को एक बार।

सारी प्रतिभा, सारी सुघड़ताएँ
बस एक ही लम्हे में सिकुड़ सी गई थी।
और फैल गया था उस दिन
सारे घर में मेरा साँवला रंग।

कोई नहीं जानता पापा
माँ भी नहीं।
हाँ, मैंने प्यार किया था
उसी लड़के से
जिसे ढूँढा था आपने मेरे लिए।

32 टिप्‍पणियां:

  1. पाँच लाख प्रतिवर्ष है, पाँच फूट दस इंच ।

    शक्लो-सूरत क्या कहें, दोष रहित खूब टंच ।

    दोष रहित खूब टंच, गुणागर बधू चाहिए ।

    गौर-वर्ण, ग्रेजुएट, नौकरी तभी आइये ।

    झेलू मैं भी दंश, टी सी एस में बिटिया ।

    किन्तु साँवला रंग, खड़ी कर देता खटिया ।।

    दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
    dineshkidillagi.blogspot.com

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  2. मार्मिक ... सच है की ऐसे भेद कई बार जाने अनजाने में खुद अपनों से ही हो जाते हैं ...

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  3. ऐसा ही होता है ...........

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  4. मार्मिक रचना के साथ ही एक मार्मिक सच्चाई... पर गर्व है, कि आज परिस्तिथियाँ बदल रही हैं. स्त्री पढ़ी लिखी है.. साथ ही पुरुषों कि सोच भी नयी है.. :)
    --सुनहरी यादें--

    ---------------------------------

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  5. Bahuto ko apne se jod pane ki kshamta hai aapki in laino me ...behad sunder ... chupa dard kahi foot pada hai shabdo me kavita ke madhyam se .... :))))))

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  6. सार्थक सृजन, आभार.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें

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  7. एकदम सही कहा है....कई लोग होते है जो रंग रूप देखते है..गुण नहीं...
    बेहतरीन रचना......

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  8. मर्मस्पर्शी रचना ....
    बहुत सुंदर ...

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  9. सारी प्रतिभा, सारी सुघड़ताएँ
    बस एक ही लम्हे में सिकुड़ सी गई थी।
    और फैल गया था उस दिन
    सारे घर में मेरा साँवला रंग।

    दिनेश प्रतीक जी मन को छू जाते हैं ऐसे दृश्य ..चिंता का विषय है ...सुन्दर रचना ..काश लोग बनायें समाज को आँखें खोलें
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  10. एक अन्छुए विषय को आपने कविता का विषय बनाया है। इस बेहतरीन विचारोत्तेजक कविता के लिए बधाई।

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  11. marnik rachna ... sab bahari sundarta ki taraf bhaagte hain ... ander ki khoobsurati koi nahi dekhta ...

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  12. क्यों लिखते हैं कवि झूठी कविताएँ?

    आपने तो सारे कवियों को धर्मसंकट में डाल दिया ....अब तो आप ही बताओ क्यूँ लिखते है ...मुझे तो गाना याद आ रहा है ............कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की ,बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी .........

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  13. LOL kavivar aapne tippani ko dhyan se nahi padha shayad ? aapki kavita ki hi ek line hai ye hume pasand aayi isliye likh di tippani mein ......ye aapki rachna ki tariif mein hai shabd anytha naa le .

    क्यों लिखते हैं कवि झूठी कविताएँ?
    अगर होता जो मुझमें सलोनापन तो
    क्या यूँ ठूकरा दी जाती
    बिना किसी अपराध के?

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  14. उफ़ , बहुत मार्मिक और विचलित करती रचना.
    बहुत कुछ सोचने पे मजूर करती हुई प्रस्तुती .

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  15. कल 10/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  16. जो सांवले रंग की कशिश को नहीं महसूसते .....तरस आता है उनपर......मर्मस्पर्शी रचना

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  17. मार्मिक रचना के साथ ही एक मार्मिक सच्चाई

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  18. बहुत ही गहन एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

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  19. एक अव्यक्त तकलीफ को आपने अच्छे से व्यक्त किया है -

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  20. पिता के मन की पीर अधिक गहन है या पुत्री के मन की - समझना कठिन है :सुन्दर कविता हेतु बधाई !

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  21. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
    हार्दिक शुभकामनायें !

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  22. आपने बुलाया हम चले आए.
    प्रेम की कहानी विचित्र है.
    सुंदर कविता.

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