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श्री पंकज त्रिवेदी जी ...
काफी समय से हमारा सम्पर्क नही रहा .. आपको जरुरी सुचना देनी थी । मेरी प्रिंट पत्रिका 'नव्या' का पंजीकरण प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है ! इस पत्रिका के सम्पूर्ण अधिकार मेरी संस्था ''अखिल हिंदी साहित्य सभा'' अहिसास के पास सुरक्षित है । १५ मार्च २००१३ को आपको बाकायदा लीगल नोटिस भेज दिया जाएगा । अब से 'नव्या' मासिक पत्रिका के रूप में पाठकों तक पहुंचेगी । आप से विनम्र निवेदन है की आप 'नव्या' का नाम उपयोग न करे । तथा 'नव्या के नाम से किसी प्रकार से कोई आर्थिक वेव्हार न करे । ICICI ब्यांक का अकाउंट तुरंत बंद करे । मै कल ही फेब पर ये नोटिस दल देती हूँ । ताकि लोगो को समय रहते सुचना मिल सके ।
धन्यवाद
भवदीय
शीला डोंगरे
काफी समय से हमारा सम्पर्क नही रहा .. आपको जरुरी सुचना देनी थी । मेरी प्रिंट पत्रिका 'नव्या' का पंजीकरण प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है ! इस पत्रिका के सम्पूर्ण अधिकार मेरी संस्था ''अखिल हिंदी साहित्य सभा'' अहिसास के पास सुरक्षित है । १५ मार्च २००१३ को आपको बाकायदा लीगल नोटिस भेज दिया जाएगा । अब से 'नव्या' मासिक पत्रिका के रूप में पाठकों तक पहुंचेगी । आप से विनम्र निवेदन है की आप 'नव्या' का नाम उपयोग न करे । तथा 'नव्या के नाम से किसी प्रकार से कोई आर्थिक वेव्हार न करे । ICICI ब्यांक का अकाउंट तुरंत बंद करे । मै कल ही फेब पर ये नोटिस दल देती हूँ । ताकि लोगो को समय रहते सुचना मिल सके ।
धन्यवाद
भवदीय
शीला डोंगरे
_________________________________________________
सम्माननीय साहित्यकार और पाठकगण,
आप सभी को मेरा नमस्कार |
‘नव्या’ मेरा सपना था और उसी सपने को साहित्य के माध्यम से साकार करना चाहता हूँ | आप सभी ने मुझे ‘नव्या’ के लिए कार्य करता हुआ हमेशा देखा है | आप सभी जानते होंगे कि कोई भी पत्रिका किसी अकेले से आगे बढ़ नहीं सकती | यही कारण मैंने कुछ लोगों को संपादन कार्य में सहयोग लेने के आशय से स्वीकृत किया था | जिसमें नासिक से शीला डोंगरे सह संपादक के रूप में अपनी मर्जी से जुडी थी | शुरू में संपादन में मेरे साथ कार्य करने के बाद विश्वास जीत लिया था |
आप सभीने देखा होगा कि एक वर्ष पूर्ण होते हमने ‘नव्या-प्रिंट’ के चार अंक प्रकाशित किये और उन सभी में सह संपादक के तौर पर शीला डोंगरे का नाम रहा है | मतलब यही कि हमारे मन में कहीं कोई खोट नहीं थी | मगर आज मुझे शीला डोंगरे का एक ईमेल मिला जिसने मुझे झकझोरकर रख दिया | मुश्किल वक्त तो हर किसी को आता है | मगर दोस्ती के नाम कंधे पे हाथ रखकर पीठ में वार करने वाले अपने ही होते हैं | अपने निहित स्वार्थ के लिए शीला डोंगरे ने मुझे जो ईमेल दिया है वो सादर आप सभी के सामने रखता हूँ | ‘नव्या’ के आर.एन.आई. नंबर की प्रक्रिया सरकारीकारण के हिसाब से चल रही है | गुजरात में विविध चुनाव और अन्य कारणों से विलम्ब जरूर हुआ |
अब आप सभी से एक ही बिनती है कि – मेरे दो ईमेल editornawya@gmail.com और nawya.magazine@gmail.com तथा मेरे मोबाईल नंबर : 09662514007 / 09409270663 के अलावा किसी भी ईमेल से या फोन से ‘नव्या’ के सन्दर्भ में आपसे कोई कुछ भी कहें या संपर्क करें तो उसके लिए मैं कसूरवार नहीं हूँ या न जिम्मेदारी होगी |
‘नव्या’ का प्रकाशन यहाँ सुरेन्द्रनगर (गुजरात) से ही होगा |
अब असलियत आप सभी के सामने है | मैं आर.एन.आई. नंबर पाने के लिए तेज़ गति से कोशिश करता हूँ | ‘नव्या’ जरूर चलेगी, आप भरोसा रखें | मगर अब हम सभी को पूरी सावधानी बरतनी होती | ‘नव्या’ की आबरू दाँव पर लगी है | ऐसे में मैं आप सभी का सहयोग चाहूँगा | कुछ लोग मुझे पहले और फिर ‘नव्या’ को जानते हैं और कुछ ‘नव्या’ के कारण मुझे | मैं अपने बारे में ज्यादा सफाई नहीं दूँगा और न इस वक्त उस मन:स्थिति में हूँ | मुझे ताज्जुब इस बात का है कि शीला डोंगरे ने कब और कैसे यह सब किया उसका उत्तर तो वोही दे सकती है | वो 'नव्या' की 'गुडविल' का इस्तेमाल करना चाहती है, अभी तो यही प्रतीत होता है |
मगर मेरे अंतर से जो शब्द निकल रहे हैं उस पर आपको भरोसा होगा यही मानकर मैं आगे बढ़ रहा हूँ | हारना मैंने नहीं सीखा | आप अगर 'नव्या' और मेरे साथ हैं तो खुलकर अपनी वाल पर भी इसके पुष्टि देकर अपनी राय खुलकर जरूर दीजिए | सबसे अहम बात - अगर आपके हाथ में 'नव्या' के नाम से कोई भी पत्रिका अन्य शहर से मिलती हैं और अगर उसके लिए पैसे देकर सदस्यता प्राप्त करते हैं तो वो खुद आपकी ही जिम्मेदारी होगी | व्यक्तिगत मेरा या 'नव्या' का इस से कोई संबंध नहीं हैं | आप सभी की प्रतिक्रिया-सलाह-सुझाव की अपेक्षा हैं |
आपका,
पंकज त्रिवेदी
परम मित्र दीनेश जी,
जवाब देंहटाएंसाहित्य के हित में आपने मेरी इस पोस्ट को आपके ब्लॉग पर साझा करते हुए एक उपकृत कार्य किया है.. मैं विनम्रता से आपका आभारी हूँ..
- पंकज त्रिवेदी
संपादक-नव्या
मुझे भी ख़ुशी होगी यदि मेरे पक्ष को भी एक बार पढ़ा जाए .. कमसे कम लोगो को आज तो पता चले की 'नव्या' शिला डोंगरे की भी थी ....
हटाएंहमें तो "नव्या" पर पंकज त्रिवेदी जी का ही सम्बंध ध्यान में आता है।
जवाब देंहटाएंश्री सुज्ञ जी,
हटाएंआपके इस विश्वास के लिए मैं आभारी हूँ. धन्यवाद
uffff.....har field mey dar kar rahna hoga...yahan bhi....its too bad
जवाब देंहटाएंरेवा जी,
हटाएंक्या करें... सत्य को उजागर होने में देर लगती है मगर जो होगा अच्छा होगा
धन्यवाद
मैं तो पहले ही नव्या के साथ हूँ |
जवाब देंहटाएंमित्र तुषार जी,
हटाएंआपकी बात से हमारा आत्मविश्वास बढ़ा है... धन्यवाद दोस्त !
हमने तो पंकज जी को ही नव्या के संपादक के रूप में जाना है।
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
हटाएंआप तो शुरू से हमारे साथ है, आपको याद होगा कि 'विश्वगाथा' ब्लॉग पत्रिका थी और फिर नव्या...
आपके भरोसे को हम तोडने नहीं देंगे.. आभार
जवाब देंहटाएंसफल वही है आजकल, वही हुआ सिरमौर।
जिसकी कथनी और है, जिसकी करनी और।।
aap jis tarah ka sahyog mangenge milega sadar..
जवाब देंहटाएंडॉ. आशुतोष जी,
हटाएंनमस्कार
आपने बहुत बड़ा संबल दे दिया हमें.. चाहूँगा कि आप सभी के साथ से मेरा हौसला बना रहें और ईश्वर सच्चाई का साथ दें...
मैं आपका हृदय से आभारी हूँ ...
इतना बड़ा विश्वासघात बड़े शर्म की बता है,आपके साथ हैं
जवाब देंहटाएंसम्माननीय अज़ीज़ साहब,
हटाएंआदाब... आपके आशीर्वाद हम पर बना रहें... हमें किसी के प्रति न रोष है न नफ़रत.. जो संवेदना और शब्दों का थैला लेकर निकाला हों, भला उसे क्या लालच होगा?
आपके आशीर्वाद से सब ठीक हो जाएगा... आभार
माननीय पंकज जी, यह निश्चित रूप से एक दुखद और शर्मनाक बात है...परन्तु पंकज जी, बन के रकीब बैठे हैं वो जो करीब थे...! परन्तु हमारे विचार से यह सत्य है कि आपको जानने वाले आपके साथ ही खड़े होंगे! आप एकदम निश्चिन्त रहें औए हौंसले से आगे बढ़ें! अनेकों शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसादर/सप्रेम,
सारिका मुकेश
सारिका जी,
हटाएंआपके शब्द ही नहीं, यह बहौत बड़ी ताकत है... आभारी हूँ मैं
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को हमने अपने ब्लॉग पर लिंकबद्ध किया है; यहाँ देखिए:
जवाब देंहटाएंhttp://sarikamukesh.blogspot.in/2013/03/blog-post_1790.html
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
आपके ब्लॉग पर लिखा है... धन्यवाद
हटाएंNavya ka matlab to ham sab Pankaj Trivedi hi samajhte hain...
जवाब देंहटाएंमित्रश्री मुकेश कुमार जी,
हटाएंआपके साथ-सहयोग के लिए तहे दिल से आभारी हूँ... भरोसा दिलाता हूँ कि आपकी श्रद्धा का खंडन नहीं होगा
इस तरह के साहित्यिक छल कपट से कौन कितने दिन जिंदा रह पाएगा?
जवाब देंहटाएंब्रिजेश जी ,
हटाएंआपने बिलकुल सही कहा... लगाव होना और लालच होना, कितना बड़ा फर्क है... है न?
आभारी हूँ मित्र..
श्रीराम जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार
जिसे साहित्य के प्रति सम्मान है और जो समझता है... उसे सब पता होता है
मगर दुनिया की सच्चाई कुछ ओर है.. निर्मल जल बहता है तो कूड़ा-करकट को घसीटकर किनारे फेंक देता है मगर जल तो शुद्ध ही होता है न?
ईश्वर करें अच्छा ही होगा... धन्यवाद
ब्लॉग बुलेटिन,
जवाब देंहटाएंमित्र, मैं आभारी हूँ कि आपने एक स्तुत्य प्रयास किया इस पोस्ट को जारी करके...
आपके साथ के लिए आभारी हूँ
इतना बड़ा विश्वासघात,क्या ऐसा भी हो सकता है,,,निदनीय ,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: होरी नही सुहाय,
कुछ तो मजबूरियां रही होगी ,, वरना यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता ....धीरेन्द्र सिहं भदोरिया जी ...
हटाएंसम्माननीय धीरेन्द्र सिंह जी,
हटाएंनमस्कार..
आपके लिखे यह सिर्फ शब्द नहीं है, दर्द की वो कसक है जो घाव भरने के बाद भी चुभती है... मैं आपका आभारी हूँ..
पंकज त्रिवेदी
पंकज त्रिवेदी जी तिरिया चरित्र कौन बूझ सका है .आप की मुहीम का हम समर्थन करते हैं .दिनेश पारीक जी का आभार व्यक्त करते हैं .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंसम्माननीय श्री वीरेंद्र कुमार शर्मा जी
हटाएंनमस्कार.
आप सभी का स्नेह-आशीर्वाद सिर्फ सत्य को साथ दें यही ईश्वर से प्रार्थना... मैं आपका ऋणी हूँ..
पंकज त्रिवेदी
पंकज त्रिवेदी जी तिरिया चरित्र कौन बूझ सका है .आप की मुहीम का हम समर्थन करते हैं .दिनेश पारीक जी का आभार व्यक्त करते हैं .
जवाब देंहटाएंनव्या को निर्भया नहीं बनने दिया जाएगा .
VIRENDR KUMAR SHRMA ji ..क्या आप तिरिया चरित्र का अर्थ समझायेंगे ...?
हटाएंसम्माननीय श्री वीरेंद्र कुमार शर्मा जी
हटाएंनमस्कार.
आप सभी का स्नेह-आशीर्वाद सिर्फ सत्य को साथ दें यही ईश्वर से प्रार्थना... मैं आपका ऋणी हूँ..
पंकज त्रिवेदी
सच की हमेशा जीत होती है ...
जवाब देंहटाएंसादर !
श्रीमान शिवनाथ जी,
हटाएंसहमत...
अरे पंकज जी ये सब क्या हो गया .....??
जवाब देंहटाएंआप निश्चिन्त रहे हम आपके साथ हैं .....
दिनेश जी का आभार जिन्होंने हमें यह सुचना दी .....!!
हरकीरत जी,
हटाएंनव्या को नज़र लग गई...
अफसोस ! साहित्य के साथ भी लोग इस कदर दुराचार करके अपना ईमान बेच देते हैं।
जवाब देंहटाएंSheela Dongre
जवाब देंहटाएंविशेष सुचना
'नव्या' के प्रकाशन का निर्णय नासिक के बैठक में ही लिया गया । हाँ ये सत्य है कि 'नव्या' से मै अपनी ख़ुशी से जुडी थी । बल्कि 'नव्या' की प्रिंट पत्रिका मेरा ही निर्णय था । मेरी विनम्रता यदि किसी को मेरी कमजोरी लगे, तो उसे कमजोरी और विनम्रता में अंतर बताना मेरा फर्ज था ।
मेरा और श्री पंकज त्रिवेदी जी का परिचय मात्र एक साल पुराना है । 'नव्या' से प्रारम्भ हुई और 'नव्या' पर ही ख़त्म हो गया। मैंने कभी भी किसी को अपनी फ्रेंड लिष्ट से नही निकाला और ना ही कभी जोड़ा । ये जोड़-तोड़ की आदत तो त्रिवेदीजी की है ... । प्रिंट पत्रिका निकलना असं नही होता बहुत आर्थिक बल की जरुरत होती है । जाहिर सी बात है पैसा घर से ही लगाने थे । पार्टनर होने के नाते हम दोनों ने ही ५०%, ५०% का जिम्मा उठाया । अगर हम पार्टनर है तो निर्णय भी हम दोनों के सहमती से होने चाहिए थे । लेकिन पिछले ६ महीने में सरे निर्णय त्रिवेदी जी के रहे । पूछने पर नव्या के हित में कह कर टला जाने लगा । धीरे धीरे नव्या से मुझे निकाले जाने की साजिश आकार लेने लगी । 'अहिसास' द्वारा लिए गए नासिक के किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम की खबर 'नव्या' इपत्रिका में नही प्रकाशित होती । पूछे जाने पर .. भूल गया जैसे जवाब मिलता । 'नव्या' के एनी संगीसथियों को भी इसी प्रकार से निकाला गया था । इसका सीधा सा यही मतलब निकलता है कि श्री पंकज त्रिवेदी 'नव्या' के नाम से केवल खुद को महिमामंडित कर रहे थे । बिना ये सोचे की उन्होंने जिनके कंधो पर अपना पैर धरा है उनपर बोझ पड़ रहा है । बिना किसी कागजी कार्यवाही के, बिना किसी पार्टनरशिप की डील किये केवल शाब्दिक विश्वास पर ये सब चलता रहा । लेकिन जब मेरा विश्वास डगमगाने लगा, मैंने लिखित पेपर बनाने की जिद की । पत्रिका को रजिस्टर करने की बात कही ... त्रिवेदी जी ने अपने नाम से रजिस्ट्रेशन फार्म भरा । ये जायज भी था .. और मुझे कोई आपति नहीं थी । सोच यही थी की पार्टनरशिप डील तो है । अब अगर मै किसी और नाम से पत्रिका का रजिस्ट्रेशन कराती तो क्या होता ...एक झूटे और मक्कार इंसान को फिर शय मिल जाती । इस लिए मैंने 'नव्या' का नाम ही सही समझा । त्रिवेदी जी की तिलमिलाहट तो बस इतनी है कि उनके पास कोई हक़ नहीं रहा 'नव्या' का । अब अगर वाकई 'नव्या' के हित की उन्हें इतनी ही चिंता है तो 'नव्या' का सह सम्पादक पद मै उन्हें दे सकती हूँ । अगर मई उनके नाम से रजिस्टर 'नव्या' में काम कर सकती थी । और उनकी सहसंपादक बन सकती थी तो ओ क्यों नहीं ?
अब रही गुडविल की बात, तो जहां साथ काम शुरू किया वाहा गुडविल अकेले त्रिवेदी जी का कैसे हो सकता है ? देश भर में कार्यक्रम तो 'अहिसास' की और से ही आयोजित हो रहे थे । तो गुडविल अकेली नव्या का कैसे हुआ ?
अब अगर आगे कोई व्याक्ति त्रिवेदी जी से गठबंधन करना चाहे तो पूरी तौर पर क़ानूनी कार्यवाही पूर्ण करे । क्यों की त्रिवेदी जी कहते कुछ है और करते कुछ है ॥
जन हित में जारी ..
सुचना ****सूचना **** सुचना
जवाब देंहटाएंसभी लेखक-लेखिकाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुचना सदबुद्धी यज्ञ
(माफ़ी चाहता हूँ समय की किल्लत की वजह से आपकी पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं दे सकता।)
मैं ज्यादा नहीं जानता नव्या के बारे में. जितना जानता हूँ उसमे त्रिवेदी जी को ही जानता हूँ. मुझे लगता है यह साहित्य की लड़ाई नहीं वरन अहम लड़ाई है. जब साहित्यिक लोग अपनी रचनाधर्मिता छोड़कर कानूनी दांवपेंचो में उलझ जायेंगे तो उनकी रचनात्मकता का प्रभावित होना अवश्यम्भावी है. मुझे नही मालूम कि जीत आप दोनो में से किसकी होगी , लेकिन इतना तय है कि हार नव्या की ही होगी. इसलिये मेरा अनुरोध है कि अपने अपने इगो को तिलांजलि देकर, एक दूसरे की शिकायतों एवं समस्यायों को समझ कर , मिल बैठकर, साहित्य हित में काम करें.
जवाब देंहटाएंनीरज 'नीर'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा):
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
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