गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

दूल्हा

एक अदद ईनसान जो है बड़ा ही खुश
चमक चाँदनी से भूल गया सारे दुःख
चारों ओर बज रहे हैं बड़े गाजे बाजे
साज धज कर के वो घोड़ी पे साजे

नाच-गा रहे है चारों और सारे लोग
तन्मय लीन हो के बड़े ही आत्म विभोर
छूट रहे है पटाखे – बंट रही है मिठाईयाँ
खुशी से गले पड़ रहे है हो रही है बधाइयाँ


में ने देखा फिर हुआ जरा सा सोच
जरा रुका फिर एक को लिया मैं ने रोक
हे महानुभाव ये क्या हो रहा है
किस खुशी में ये मोहल्ला जाग रहा है

पहले वो हंसा फिर जोर से रोया
अपने अंश्रुओं से मेरा कंधा भिगोया
पहले तोला सोचा फिर बोला हो के गंभीर
हे सज्जन ये शादी कर रहा है महावीर

सुर है सरगम है लय है तराना है
एक महा देवी के चरणों में इसे चढ़ाना है
ता उम्र ये अब उस गुड़िया का खिलौना है
जितना होना खुश होले फिर ता उम्र तो रोना है

ये खुशी-खुशी से खुदकुशी करने जा रहा है
आखिरी बार ये हंस-हंस के नाच, गा रहा है
कसाई बड़े में ये बकरा कटने जा रहा है
महा काली को बलि के लिए भा रहा है

हे महाबाहु ये तो बेचारा दूल्हा है
जो दुल्हन के लिए सजाया जा रहा है
स्वतंत्र जीवन से गुलामी में प्रवेश को तत्पर
एक ओर मर्द शादी के हवन में आहुति बन रहा है
क्रमश: जारी है
इस रचना के लेखक  मेरे बड़े भाई  संजय कुमार पारीक हैं 



6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर प्रणाम!
    सच को अभिव्यक्त करती रचना निश्चित ही सराहनीय है....
    तडपना क्यूँ है काम दिल का, मचलना क्यूँ है अंजाम दिल का हरे हैं ज़ख्म अब भी सीने में, मेरे महबूब को दिखलाओ ज़रा.. खूबसूरत..मोहब्बत अब अंजाम लाने लगी है..सर्दियों में भी गर्मी दिल को जलाने लगी है...बहुत खूब ..आप को खूबसूरत तोहफा मिले और सीनेकी जलन छू मन्त्र हो जाए .. सुन्दर रचना , बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई .

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  2. धन्यवाद ये जारी रहेगा समपूर्ण होने तक

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  3. बहुत सुन्दर प्रयास
    बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई .
    मेरी नई पोस्ट "पर्यावरण-एक वसीयत " हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों में.

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