हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है
छलकती है मेरी भी आँखों से नमी
जब दिन और रात बदल कर सपनो की मंजिल बदल जाती है ||
कभी कभी कहता है मन काश ये सपने न होते
काश ये दर्द अ शोकत न होती
मंजिल मिले या न मिले पर
हो न हो ये सपनो की शोहबत न होती
आज फिर न जाऊ ये तो हर रोज कहता हूँ
पर हर रोज़ ऑंखें भीग कर मुकर जाती है ||
पोछने का सिलसिला तो भूल गया हूँ
पर ये हर रोज़ सिकुड़ जाती है ||
फासला तो हाथ दो हाथ का ही रहता है पर ?
हर रोज़ की तरह मंजिल भी हमें भूल जाती है
काश वो दो पल सकून के हमें भी दे देती
जब पास हम उनके होते
काश देखने का नज़ारा हमें भी मिले
जब पास होते
पर हर रोज़ वो पास आकर धुधली पड़ जाती है
हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है ||
हम तो जाते भी नहीं पर
हर रोज़ वो हमें बुला लेती है जाता हूँ पास तो
अपने आपको मिटटी की तरह मिटा लेती है
हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
यूँ कारवां चलता रहे ये कश्तियाँ पतवार हों .
जवाब देंहटाएंहम रहें या न रहें ये भंवर न मझधार हो ..
जीवन की इस रीत को बाखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
बढ़िया
जवाब देंहटाएंऔर यूं ही चलती रहती है ज़िंदगी एक दरिया की तरह ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी के मौके पर सबको शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक स्वागत है.
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंयही जीवन की रीत है..उम्दा!
जवाब देंहटाएंहर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
जवाब देंहटाएंहम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं... waah
जिन्दगी का एक नजरिया.... मन के भावों को सुन्दर शब्द बध किया है बहुत खूब
जवाब देंहटाएंहर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
जवाब देंहटाएंहम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
behad khubsurat andaj, sarthak pratuti
फासला तो हाथ दो हाथ का ही रहता है पर ?
जवाब देंहटाएंहर रोज़ की तरह मंजिल भी हमें भूल जाती है
...बहुत खूब! सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति..
Kya baat hai.
जवाब देंहटाएं............
कितनी बदल रही है हिन्दी !
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंकोमल एहसासों की प्यारी सी अभिव्यक्ति...
अनु
wah ! bhai bahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव...
जवाब देंहटाएंहर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
शुभकामनाएँ.
dil ko chhoo lene bhav...
जवाब देंहटाएंफासला तो हाथ दो हाथ का ही रहता है पर ?
जवाब देंहटाएंहर रोज़ की तरह मंजिल भी हमें भूल जाती है
sundar avm prabhavshali rachana ke liye abhar.
"हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
जवाब देंहटाएंहम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"
ज़िंदगी में यह खोना-पाना ही ज़िंदगॊ को आशा की डोर से बाँधे रहता है!
बहुत सुंदर रचना है।
"हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
जवाब देंहटाएंहम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"
ज़िंदगी में यह खोना-पाना ही ज़िंदगॊ को आशा की डोर से बाँधे रहता है!
बहुत सुंदर रचना है।
"हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
जवाब देंहटाएंहम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"
ज़िंदगी में यह खोना-पाना ही ज़िंदगॊ को आशा की डोर से बाँधे रहता है!
बहुत सुंदर रचना है।
हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
जवाब देंहटाएंहम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
बेहद सुन्दर पंक्तियाँ हेँ ..बस वर्त्निकी भूलें देख लें ..मन मोहने वाला ब्लॉग
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंजीवन का संपूर्ण दर्शन
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, बहुत सुंदर
बहुत खूब लिखा है आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएंईद की दिली मुबारकबाद।
............
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
जवाब देंहटाएंहम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"
behatreen!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
जवाब देंहटाएंbhavpoorn kavita... bahut sundar...
जवाब देंहटाएंकाश वो दो पल सकून के हमें भी दे देती.
जवाब देंहटाएंSee
http://praveenshah.blogspot.com/2012/08/blog-post_21.html
कुछ पुरानी कश्तियां डूबती हैं कुछ नई आ जाती हैं यही है जीवन ।
जवाब देंहटाएंachchhi abhivyakti!
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