मर्ग नैनी
चन्दन के उपवन से लगती हो
इस बसंत ऋतू में महकती
खुशबू लगती हो
होश तो हम तब भी खो देतें हैं
जब तुम हमें ( तुम कैसे
हो भी कहे देती हो )
कजरारे नेन घनघोर काले
बाल
इतराना भी तो ऐसा की
बदल जाये सब की चाल
खुशबू भी ऐसी फूलो के
उपवन से आती हो
माघ बिहू में भी बसंत
ऋतू से लगती हो
देख तुम को नैनो ने कहा
इस दिल ने सुना
राह नई जीवन ने पाई
झरने सीखें, जिससे बहना
और एक सपना बूना
ऐसा ख्वाब सुनहरा देखा
दूभर हो जाये
तुम से दूर रहना
चन्दन बदन , मर्ग लोचन नैना
जब से मेरे दिल में आई
बन बैठी मेरी परछाई
हर उपवन में बैठी कमल सी
लगती हो
तुम मेरी नहीं फिर भी अपनी सी लगती
हो
भरोसा दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
तुम हमें खुदा से भी अजीज
लगती हो
बदल जाये सब की चाल
अच्छा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंजो अज़ीज़ होते हैं उनकी कसम क्यों खाएं ...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ...
बहुत उम्दा प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंbadhiya rachna ....
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से भरी रचना !
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
अच्छा है
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
recent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
बढ़िया सुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहर उपवन में बैठी कमल सी लगती हो
जवाब देंहटाएंतुम मेरी नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो------sunder bhaw badhai
किसी की चाहत सच में इनसान को कवि बना देती है ये मैं नही ख़ुद आपकी कविता कह रही है बहुत बढ़िया जज़्बात से भरी अभिव्यक्ति हेतु बहु बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंnice pyari lines...
जवाब देंहटाएंहर उपवन में बैठी कमल सी लगती हो
जवाब देंहटाएंतुम मेरी नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो
भरोसा दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
तुम हमें खुदा से भी अजीज लगती हो
सुन्दर पंक्तियाँ
सादर
सुन्दर कविता | सादर
जवाब देंहटाएंBahut Hi Sunder.....
जवाब देंहटाएंभरोसा दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
जवाब देंहटाएंतुम हमें खुदा से भी अजीज लगती हो
...वाह!...कित्तनी सुन्दर रचना!
भावपूर्ण सुन्दर रचना के लिए बधाई |मृग की जगह मग लिखा है ठीक कर लीजिएगा |
जवाब देंहटाएंआशा