गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

खुशबू

मर्ग  नैनी  चन्दन  के उपवन  से लगती हो
 इस बसंत  ऋतू  में  महकती  खुशबू  लगती हो
होश  तो हम तब भी खो देतें  हैं
जब तुम हमें  ( तुम  कैसे  हो भी कहे  देती हो )
कजरारे  नेन  घनघोर  काले बाल
इतराना  भी तो ऐसा  की
बदल  जाये  सब की चाल
खुशबू  भी ऐसी  फूलो  के उपवन से आती  हो
माघ  बिहू  में  भी बसंत  ऋतू  से लगती हो
देख तुम को  नैनो  ने कहा  
इस  दिल ने सुना 
राह नई जीवन ने पाई
 झरने सीखेंजिससे बहना
और  एक  सपना  बूना 
ऐसा  ख्वाब  सुनहरा  देखा
 दूभर  हो जाये  तुम से दूर रहना
चन्दन  बदन , मर्ग  लोचन  नैना
जब से मेरे  दिल में  आई
बन  बैठी  मेरी परछाई
हर  उपवन  में  बैठी कमल सी लगती हो
तुम मेरी  नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो
भरोसा  दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
तुम हमें खुदा  से भी अजीज  लगती हो 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

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  2. जो अज़ीज़ होते हैं उनकी कसम क्यों खाएं ...
    बहुत उम्दा ...

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  3. बहुत उम्दा प्रस्तुति,आभार.

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  4. कोमल भावों से भरी रचना !
    ~सादर!!!

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  5. हर उपवन में बैठी कमल सी लगती हो
    तुम मेरी नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो------sunder bhaw badhai

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  6. किसी की चाहत सच में इनसान को कवि बना देती है ये मैं नही ख़ुद आपकी कविता कह रही है बहुत बढ़िया जज़्बात से भरी अभिव्यक्ति हेतु बहु बहुत बधाई

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  7. हर उपवन में बैठी कमल सी लगती हो
    तुम मेरी नहीं फिर भी अपनी सी लगती हो
    भरोसा दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
    तुम हमें खुदा से भी अजीज लगती हो
    सुन्दर पंक्तियाँ
    सादर

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  8. भरोसा दिलाऊ कैसे कसम भी तो खाये कैसे
    तुम हमें खुदा से भी अजीज लगती हो
    ...वाह!...कित्तनी सुन्दर रचना!

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  9. भावपूर्ण सुन्दर रचना के लिए बधाई |मृग की जगह मग लिखा है ठीक कर लीजिएगा |
    आशा

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