बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

क्यों पसरा है सन्नाटा

आया है माहौल चुनावी इस बार सन्नाटे में ...
द्वार द्वार न झंडे है न पोस्टर बैनर
न ही नेता दिखते शोर  मचाते न दिखते चमचे
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में और गलियों में
क्यों पकड़ा जाता बीच चौराहों पर कला धन सफ़ेद कपड़ो में
सभी पहने है सफ़ेद कपडे काले मन और तन पर
सभी मिताय्न्गे ब्रश्ताचार खा के कसम ये कहते  है 
इसने लुटा उसने लुटा इस बार लूटेंगे हम भी
इतनी बार बने हो वेबकुफ़ इस बार हमसे भी बन के देखो
नहीं है यू. पी. की सत्ता में सालो से 
अब चाहत है बनकर आने की युवराज  यू पी का
मिटा देंगे भुखमरी और गरीबी बेरोजगार  न होगा कोई 
कहते कहते गला दुःख गया है मेरा
अब तो सो जाओ जनता एक बार फिर से
सज धज कर आयेंगे इस बार लुटाने हम भी
क़तर देंगे माया रूपी जाल धन का ,मारंगे गुंडों  को घर पर
क्यों जग रही हो जनता भ्रष्टाचार के अन्धकार से
क्यों बर्बाद कर रहे हो करियर नेताओ   का
फरवरी की ठण्ड में और सो जाओ फिर देखो काम हमारा
नेता है हम भी बेरोजगारी मत बनाओ
तुम्हारी बेरोजगारी से ही तो रोजगार हमे है मिलता
क्यों पसरा है सन्नाटा बाजारों में
आशीष त्रिपाठी











2 टिप्‍पणियां:

  1. समसामायिक माहौल पर बढ़िया रचना...कवि को बधाई.

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  2. आजकल के हालात पर रचना अच्छी लगी मुबारक हो

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