अगर तुम होती ...
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता माँ.....
आज मैं दूर हु अपनी माँ से मैं मजबूर हु, अपने आप से
कभी थक कर आता था घर ..माँ का आंचल पता था भर
थकावट दूर होती थी मिलो की ..एक नई सुबह होती थी उम्मीदों की ...
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ...
जब भूखा होता था तो खिलाती थी खाना
आज अपनी ही बनी जली रोटी हु खाता
जब करता था शैतानी तो देती थी सजा
आज मेरे पास है पैसा मस्ती और मज़ा
पर नहीं है तो वो प्यारी माँ और उसकी सजा
जब चलते चलते गिरता था जमीन पर जब सोते सोते रोता था रातो में
तब एक माँ ही थी जो उठती सहलाती थी और दवा लगाती थी
आज रोते रोते सोता हु माँ की यादो में
और गिर गिर कर चलता हु बिन माँ के सहारे से
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ....
पैसो का मोल समझाती थी माँ संस्कारो की दौलत देती थी माँ
आज पैसा भी है मेरे पास संस्कारो की दौलत भी है मेरे पास
अगर नहीं है कुछ तो वो प्यारी माँ मेरे पास
वो माँ का गलतियों पर डाटना और अछाइयो पर गुडडन कहना
लेकिन अब कोई बेटा अपनी माँ को न अलविदा कहना
क्योकि आज परदेश में आकर ...अकेले में अपने आप से हु पूछता
की बिन माँ के बेटा कैसा होता है
अगर माँ होती तो ऐसा होता है
अगर माँ होती तो वैसा होता है ....
आशीष त्रिपाठी के द्वारा
अगर तुम होती तो वैसा होता माँ.....
आज मैं दूर हु अपनी माँ से मैं मजबूर हु, अपने आप से
कभी थक कर आता था घर ..माँ का आंचल पता था भर
थकावट दूर होती थी मिलो की ..एक नई सुबह होती थी उम्मीदों की ...
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ...
जब भूखा होता था तो खिलाती थी खाना
आज अपनी ही बनी जली रोटी हु खाता
जब करता था शैतानी तो देती थी सजा
आज मेरे पास है पैसा मस्ती और मज़ा
पर नहीं है तो वो प्यारी माँ और उसकी सजा
जब चलते चलते गिरता था जमीन पर जब सोते सोते रोता था रातो में
तब एक माँ ही थी जो उठती सहलाती थी और दवा लगाती थी
आज रोते रोते सोता हु माँ की यादो में
और गिर गिर कर चलता हु बिन माँ के सहारे से
अगर तुम होती तो ऐसा होता
अगर तुम होती तो वैसा होता , माँ....
पैसो का मोल समझाती थी माँ संस्कारो की दौलत देती थी माँ
आज पैसा भी है मेरे पास संस्कारो की दौलत भी है मेरे पास
अगर नहीं है कुछ तो वो प्यारी माँ मेरे पास
वो माँ का गलतियों पर डाटना और अछाइयो पर गुडडन कहना
लेकिन अब कोई बेटा अपनी माँ को न अलविदा कहना
क्योकि आज परदेश में आकर ...अकेले में अपने आप से हु पूछता
की बिन माँ के बेटा कैसा होता है
अगर माँ होती तो ऐसा होता है
अगर माँ होती तो वैसा होता है ....
आशीष त्रिपाठी के द्वारा
bahut hi sundar
जवाब देंहटाएंdhanyawad
aap ka shukriya dinesh ji
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाए बहुत सुंदर लगी
जवाब देंहटाएंआप मेरे दूसरे ब्लॉग पर भी अपनी प्रतिक्रिया देवे
हतत्प://वानगायडिनेश.ब्लॉगस्पोट.इन/
http://vangaydinesh.blogspot.in/
बहुत ही भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति .....
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