अब शाहों का सिंहासन, जल्दी थर्राने वाला है,
मिजाजे आम हैं बिगड़ा, बवंडर आने वाला है।
बड़ी ही देर से सही, मगर आवाज तो आई,
यहाँ उजले लिबासों में छिपा हर हाथ काला है।
हया बेच कर खाई, अमीरों और वजीरों ने,
तमाशे हैं यहाँ सस्ते, मगर महगाँ निवाला है।
हमें ठंडा समझने की, तुमने कैसे की गुस्ताखी,
जवां हैं मुल्क हिन्दोस्तां, अभी तनमन में ज्वाला है।
जाओगे अब कहाँ बचकर, यहीं पर टेक लो माथा,
यहाँ आवाम मस्जिद हैं, यहाँ जनता शिवाला है
प्रतीक जी सुन्दर रचना निम्न पंक्ति गंभीर
जवाब देंहटाएंहै सच कहा आप ने श्वेत वसन में लिपटे लोग काल हैं हमारे समाज के लिए
बड़ी ही देर से सही, मगर आवाज तो आई,
यहाँ उजले लिबासों में छिपा हर हाथ काला है।
बेबाक रचना यों ही लिखते रहिये
शुक्ल ब्रमर ५