मंगलवार, 24 मई 2011

तेरे बिना ह्रर रंग फ़ीखा लगता हैं


तेरी यह मायूसी बन जाती है बेचैनी मेरी ज़िंदगी से तेरा खफा होना, लगे ज़िंदगी है ख़फा मेरी तेरी सासों से मैं खुद सास लेती हूँ चहरे पे उदासी तेरी, लगती है हार मुझे अपनी
मेरे लिए क्या चाँद क्या सूरज क्या तारे तू साथ हो तो सब लगते है अपने प्यारे पर तू रूठा है इस्कदर खुद से ही लगे तूफान आया हो मिटाने पहचान मेरी
तेरी हसी पे घायल हुए थे, निराली तेरी हर अदा तेरी मोहब्बत को आपना समझ जी रहे थे तू अब ना जा छोड़ के, ना हो मुझसे जुदा तेरे बिन हर रंग फीका लगता है आँखो को मेरी
रजनी

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

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  2. बेनामीजुलाई 07, 2011

    शुभकामनाएं

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  3. बेनामीअगस्त 06, 2011

    achha likha hai aapne....

    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  4. अच्छी रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  5. बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
    रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.

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  6. Pareek ji
    रक्षाबंधन और स्वाधीनता दिवस पर्वों की शुभकामनाओं के साथ आपकी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई

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  7. ना हो मुझसे जुदा तेरे बिन हर रंग फीका लगता है

    khubsurat ehsaah

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  8. तेरी यह मायूसी बन जाती है बेचैनी मेरी ज़िंदगी से तेरा खफा होना, लगे ज़िंदगी है ख़फा मेरी तेरी सासों से wah!!!!! kabhi mere blog par bhi aana ................

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