शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

विचार


आज सुबह उठ कर  चाय भी नहीं पी और सोचने बैठ गया
रात कुछ सोच कर सोया था की कल कुछ नया करुगा 
पर आज फिर मैं अपने मन को ही कचोटने बैठ गया 
सोच था कुछ नया कर गुजरुगा 
पर मैं अपने आप को ही खाने बैठ गया 
कल का हिसाब लगाना था पर ?
मैं हर साल का हिसाब लगाने बैठ गया 
हिसाब लगाने के चक्कर मैं सारा दिन निकल गया 
देखना था मुझे सुबह सूरज 
और अब डूबता सूरज को देखते .....................
लिखना था कुछ और 
लिखता चला गया कुछ और 
दिनेश पारीक 

1 टिप्पणी:

  1. बेनामीनवंबर 16, 2012

    ऐसा ही होता है और जीवन यूँ ही निकल जाता है

    जवाब देंहटाएं