सोमवार, 4 जून 2012

शहर का दस्तूर हो गया

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया

जो ख़ुशक़िस्मत हैं, बादल-बिजलियों पर शेर कहते हैं
लुटे आंगन में मौसम की तबाही, कौन पढ़ता है
कुछ लुटी अस्मत कुछ लूटे तारे इस तरह का ये शहर हो गया 

कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
जहाँ दिन के उजालों का खुला व्यापार चलता हो
वहा उनको देखने को भी मैं मजबूर हो गया 

महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया

सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया

कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया

इस कविता की कुछ पंक्तिया  बशीर जी की कविता से ली गई है 
इस कविता को दोबार  पोस्ट किया गया है 
दिनेश पारीक 



27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा शायरी है. लिखते रहिये.

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  2. बशीर बद्र मेरे मन पसंद शायर हैं ..बहुत खूब लिखा हैं आपने भी ..बधाई !

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  3. जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
    बहुत बढिया ।

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  4. महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
    लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

    बहुत सुंदर .....

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  5. बहुत अच्छा लिखा है दोस्त। शुभकामनाएँ...!

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  6. बहुत बढ़िया ग़ज़ल कहते हैं आप .अंदाज़े बयान और अलफ़ाज़ अर्थ में आप बशीर बद्र साहब के पायेदानों पर ही हैं ऊपर की और जा रही है सीढ़ी .देखते देखते शहर माल हो गए ,

    कुछ लोग बेहद मालामाल हो गए .

    झोपण सब बे हाल हो गए .........

    पूरी करो ग़ज़ल का मीटर देकर...शुक्रिया ,आवा जाही रहेगी अब तो ...

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  7. .देखते देखते शहर माल हो गए ,

    कुछ लोग बेहद मालामाल हो गए .

    झोपण सब बे हाल हो गए .........
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल हर मायने में भाव अर्थ और व्यंजना में ..

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  8. महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
    लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया

    बहुत अच्छा शेर।
    सुंदर रचना।

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  9. बहुत ही सुन्दर रचना

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  10. बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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  11. अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गयाजिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया

    बहुत खूब।

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  12. marm ko chhoote hue sundar bhaav ...
    shubhkamnayen ...

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  13. तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
    आईना बात करने पे मज़बूर हो गया....bahut khoob...

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  14. आप की यह प्रस्‍तुति बहुत ही अच्‍छी लगी ... बशीर जी को पढ़ना हमेशा सुखद रहता है ... आभार

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  15. कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
    दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
    जहाँ दिन के उजालों का खुला व्यापार चलता हो
    वहा उनको देखने को भी मैं मजबूर हो गया
    बारहा पढने लायक ग़ज़ल ,दोश्तो को सुनाने लायक गुनगुनाने लायक ग़ज़ल .

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  16. बेहतरीन रचना....
    सुन्दर प्रस्तुति...

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  17. बहुत सुन्दर बहुत अच्छा लिखते है आप
    मेरी तरफ से बधाई सवीकार कीजिये

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  18. बहुत सुन्दर बहुत अच्छा लिखते है आप
    मेरी तरफ से बधाई सवीकार कीजिये

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  19. चोखी कविता लिखी भायला, राम राम

    मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में

    जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।

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