ये कैसा नींद में ही ख़याल आया है,
की जब मैं जगा हुआ होता हूँ
तो कविता दिल के अन्दर जाने कहाँ सोयी हुई होती है.
और जब मैं पूरी नींद में सोया और खोया हुआ होता हूँ
तो मेरे दिल के अन्दर की कविता अंगडाई लेकर जाग सी जाती है
मुझे नीद में ही एकदम जगा देती है
नींद में ही मैं उस कविता को संवारता और लिख देता हूँ
पर जब जाग जाता हूँ, तो रची हुई वो सुन्दर कविता,
जाने मन के किस कोने में छुप सो जाती है,
बहुत ढूँढने से भी नहीं मिलती,
और लिखने के लिए ठीक याद ही नहीं आती,
फिर भी उसे याद कर वैसा ही कुछ जैसा बने लिख दिया करता हूँ
जो उस असली कविता सी सुन्दर नहीं होती
कभी कभी तो वो कविता कुछ याद ही नहीं आती तो लिखूँगा क्या
जैसे आयी थी वैसे ही बेवजह ग़ुम हो जाती है
कृपया मुझ पर हंसिये मत, ये मज़ाक नही सच है
कविता की निंदिया की और उसके छुपने की बात है
नींद से उठकर अभी अभी लिखी हुई फरियाद है
इस मेरी पुरानी कविता का आज फिर ख़याल आया है
क्यूंकि अण्णा और बाबा रामदेव पर कविता अपनेआप बन कर आयी है
कल रात उसे सपने में लिख कर पूर्ण कर डाली है
पर आज लिखना चाहूँ तो नहीं मिल रही है, बड़ी निराशा है,
अब आशा से मैं यहाँ p4poetry पर उसे आपकी लिखावट में बाट तक रहा हूँ
किसी मेम्बर दोस्त के मन में भी उन जैसे भावों की जरूर वह उभरी है
जिसे यहाँ पढ़ मुझे असीम आनंद लेने की उत्कंठ अभिलाषा है
ये रचना दूसरी बार पोस्ट की जा रही है
पहले ये रचना १८/०३/२०१२ को पोस्ट की गई थी मेरे इसी ब्लॉग पे
की जब मैं जगा हुआ होता हूँ
तो कविता दिल के अन्दर जाने कहाँ सोयी हुई होती है.
और जब मैं पूरी नींद में सोया और खोया हुआ होता हूँ
तो मेरे दिल के अन्दर की कविता अंगडाई लेकर जाग सी जाती है
मुझे नीद में ही एकदम जगा देती है
नींद में ही मैं उस कविता को संवारता और लिख देता हूँ
पर जब जाग जाता हूँ, तो रची हुई वो सुन्दर कविता,
जाने मन के किस कोने में छुप सो जाती है,
बहुत ढूँढने से भी नहीं मिलती,
और लिखने के लिए ठीक याद ही नहीं आती,
फिर भी उसे याद कर वैसा ही कुछ जैसा बने लिख दिया करता हूँ
जो उस असली कविता सी सुन्दर नहीं होती
कभी कभी तो वो कविता कुछ याद ही नहीं आती तो लिखूँगा क्या
जैसे आयी थी वैसे ही बेवजह ग़ुम हो जाती है
कृपया मुझ पर हंसिये मत, ये मज़ाक नही सच है
कविता की निंदिया की और उसके छुपने की बात है
नींद से उठकर अभी अभी लिखी हुई फरियाद है
इस मेरी पुरानी कविता का आज फिर ख़याल आया है
क्यूंकि अण्णा और बाबा रामदेव पर कविता अपनेआप बन कर आयी है
कल रात उसे सपने में लिख कर पूर्ण कर डाली है
पर आज लिखना चाहूँ तो नहीं मिल रही है, बड़ी निराशा है,
अब आशा से मैं यहाँ p4poetry पर उसे आपकी लिखावट में बाट तक रहा हूँ
किसी मेम्बर दोस्त के मन में भी उन जैसे भावों की जरूर वह उभरी है
जिसे यहाँ पढ़ मुझे असीम आनंद लेने की उत्कंठ अभिलाषा है
ये रचना दूसरी बार पोस्ट की जा रही है
पहले ये रचना १८/०३/२०१२ को पोस्ट की गई थी मेरे इसी ब्लॉग पे
बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति । आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर पधार कर अपनी राय प्रदान करें.
Achhee rachna hai ... neend mein likhi rachna ...
जवाब देंहटाएंइसी लिए तो नींद में भी ख़याल आयें तो उठकर लिख डालिए वरना सुबह तक तो दुबक जायेगी किसी कोने में ढूंढे नहीं मिलेगी बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहर पल मन को पसंद आने वाले ख्याल..
जवाब देंहटाएंबहुत सच्ची रचना अक्सर ऐसा ही होता है । आपको खूबसूरत खयाल तब आते हैं जब आप सो रहे हों आस पास कलम कागज ना हो । बादमें याद करने पर भी ुतनी सुंदर रचना नही उतरती ।
जवाब देंहटाएंख्याल हैं तो सपने-हकीक़त कहीं भी शब्दों में बुन ही जाते हैं...
जवाब देंहटाएंऐसा अक्सर हम सब के साथ होता है ....कविता, भाव सब छिपते छिपाते रह जाते हैं...और हम कलम दांतों में दबाये रह जाते हैं
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