मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

तुम बोना कांटे

तुम बोना कांटे
तुम बोना कॉंटे;
क्योंकि फूल न पास तुम्हारे।
बो सकते हो
वही सिर्फ जो
उगता दिल में;
चरण पादुका
ही बन सकते
तुम महफिल में।
न देव शीश पर चढ़ते कॉंटे
सॉंझ सकारे ।
हॅंसी किसी की
अरे पल भर भी
सह न पाते;
और बिलखता देख किसी को
तुम मुस्काते ।
जो डूबते
उनको देखा
बैठ किनारे।
जीवन देकर भी है हमने
जीवन पाया;
अपने दम से
रोता मुखडा
भी मुस्काया।
र्सौ सौ उपवन
खिले हैं मन में;
तभी हमारे।

13 टिप्‍पणियां:

  1. These are impressive articles. Keep up the noble be successful.

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  2. सुंदर भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ...
    बहुत बधाई ...
    मेरे ब्लॉग पर आने और अपने सुंदर विचार रखने के लिए बहुत शुक्रिया ...

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  3. सच्चाई को बयाँ करती हुई रचना बधाई

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  4. प्रिय दिनेश जी बहुत प्यारी पंक्ति उत्तम सन्देश
    भ्रमर ५
    जीवन देकर भी है हमने
    जीवन पाया;
    अपने दम से
    रोता मुखडा
    भी मुस्काया।
    र्सौ सौ उपवन
    खिले हैं मन में;
    तभी हमारे।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण रचना,बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत रचना...बधाई.

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