तुम बोना कांटे
तुम बोना कॉंटे;
क्योंकि फूल न पास तुम्हारे।
बो सकते हो
वही सिर्फ जो
उगता दिल में;
चरण पादुका
ही बन सकते
तुम महफिल में।
न देव शीश पर चढ़ते कॉंटे
सॉंझ सकारे ।
हॅंसी किसी की
अरे पल भर भी
सह न पाते;
और बिलखता देख किसी को
तुम मुस्काते ।
जो डूबते
उनको देखा
बैठ किनारे।
जीवन देकर भी है हमने
जीवन पाया;
अपने दम से
रोता मुखडा
भी मुस्काया।
र्सौ सौ उपवन
खिले हैं मन में;
तभी हमारे।
तुम बोना कॉंटे;
क्योंकि फूल न पास तुम्हारे।
बो सकते हो
वही सिर्फ जो
उगता दिल में;
चरण पादुका
ही बन सकते
तुम महफिल में।
न देव शीश पर चढ़ते कॉंटे
सॉंझ सकारे ।
हॅंसी किसी की
अरे पल भर भी
सह न पाते;
और बिलखता देख किसी को
तुम मुस्काते ।
जो डूबते
उनको देखा
बैठ किनारे।
जीवन देकर भी है हमने
जीवन पाया;
अपने दम से
रोता मुखडा
भी मुस्काया।
र्सौ सौ उपवन
खिले हैं मन में;
तभी हमारे।
एकदम सही!
जवाब देंहटाएंThese are impressive articles. Keep up the noble be successful.
जवाब देंहटाएंIndia is a land of many festivals, known global for its traditions, rituals, fairs and festivals. A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!.
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सुंदर भावों की सुंदर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई ...
मेरे ब्लॉग पर आने और अपने सुंदर विचार रखने के लिए बहुत शुक्रिया ...
bahut khoobsurat ahsas bhaiya...aabhar
जवाब देंहटाएंkitne gahre bhaw
जवाब देंहटाएंfinest words... great...
जवाब देंहटाएंसच्चाई को बयाँ करती हुई रचना बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंBahut achhi kavita. saral evm subodh.
जवाब देंहटाएंसटीक कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंप्रिय दिनेश जी बहुत प्यारी पंक्ति उत्तम सन्देश
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
जीवन देकर भी है हमने
जीवन पाया;
अपने दम से
रोता मुखडा
भी मुस्काया।
र्सौ सौ उपवन
खिले हैं मन में;
तभी हमारे।
बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण रचना,बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना...बधाई.
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