तुम ने लेली मुझ से विदा पर तुम ?
तुम चले तो जाओगे पर
तुम रह भी जाओगे थोड़े से
रह जाता है बारिश होने के बाद
हवा में नमी
आने के बाद अश्रु आँखों में नमी
जैसे रह जाता है अँधेरे में
भी उजाले का अहसास
रह जाएँगी वो संजोई यादें
रह जाएँगी वो चांदनी रातें
रह जाएँगी वो अन छुये पल
जो तुम ने मेरे साथ बिताये थे ॥
जैसे रह जाता है गाय के थन में
निकल ने का बाद दूध
रह जाता है भोर में चाँद की
चांदनी का उजाला
तुम भी रह जाओगे थोड़े से
जैसे रह जाता है
वो पुराने खंडहर में
निशानियों का उजास
रह जाता है जैसे प्रीतम मिलने
के बाद भी बिछड़ने का गम
रह जाता है बारिश होने के बाद
हवा में नमी
आने के बाद अश्रु आँखों में नमी
जैसे रह जाता है अँधेरे में
भी उजाले का अहसास
तुम्हारे पास होने का अहसास
तुम तो चले जाओगे
और थोडा सा येही रह जाओगे
दिनेश पारीक
क्रमश
दूर होते हुए भी पास होने का एहसास रह जाता है ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी यह कविता पढ़कर मुझे श्री अशोक वाजपेयी जी की कविता "विदा" याद आ गई, वो भी कुछ इसी तरह है, मैं उनकी कविता को यहाँ नीचे दे रहा हूँ उसका भी आनन्द उठाएं:
जवाब देंहटाएंतुम चले जाओगे
पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है
पहली बारिश के बाद
हवा में धरती की सोंधी-सी गंध
भोर के उजास में
थोड़ा-सा चंद्रमा
खंडहर हो रहे मंदिर में
अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार।
तुम चले जाओगे
पर थोड़ी-सी हँसी
आँखों की थोड़ी-सी चमक
हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी
यहीं रह जाएँगे
प्रेम के इस सुनसान में।
तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति,
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास।
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे।
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sukriya mukesh ji
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
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