शनिवार, 11 मई 2013

ये जो जिंदगी की किताब


ये जो  जिंदगी की किताब है ये किताब भी कोई किताब है
कही अंधेरों का ख्वाब है तो कही रोशनी  का हिजाब है ।।
कही उठते धुवें का जवाब है कही बुझते चिराग का हिसाब है 
कही सितारों का चिराग है कही पर रौशनी का नकाब है ।।
कही छावं कही धुप है कही औरों का ही रूप है 
कही कागज के फूल है तो कही इन फूलों में भी खोफ है ।।
कही पर चैन लेती है ये ख़ुशी कही पर मेहरबान होता है ये नसीब
कही खुशियों  में भी गम कही दूर  रह कर भी होता है करीब ।।
कहीं बरकतों के हैं बारिशें कहीं तिश्नगी  बेहिसाब है ।।
कही होटों पर आंसू हैं तो कही आँखों में खिजाब 
कही बेटी पर जुल्म हिसाब  तो कही नारी है बरकत की किताब ।।
कही दोलत का नकाब तो कही गरीबी है बेसुमार 
कही इंसान का नारी पर अत्यचार पर अत्यचार ।।
कही नारी है माँ का अवतार  कही बहु का परोपकार 
कही ये बंद किताब तो कही ये खुली  किताब  ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
ये जो जिंदगी की किताब है ये किताब भी कोई किताब है।।।।।।
दिनेश पारीक 


2 टिप्‍पणियां:

  1. sunder prastuti. jeevan ke rang anek hain.

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  2. जीवन की इसी किताब में जाने कितने रुप छुपे हैं ये हर नए पन्ने के साथ सामने आते हैं.....

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