मुसाफिर हैं हम मुसाफिर हो तुम भी
कही न कही फिर किसी मोड़ पर मुलाकात होगी
बे नाम मुसफ़िर हूँ बे- नाम सफर है मेरा
फिर न जाने किस रोज़ मिलने की शोगात होगी
किस दिन कहा निकल जाऊं कह नहीं सकता
जिस दिन तुम कहो मुझे मिलने को
क्या पता उस दिन में कही मिल नहीं सकता
बे-नाम मेरी जिंदगी बे-नाम ठिकाना है
किस दर पर में रुक जाऊं कुछ कह नहीं सकता
बस तेरी एक मुलाकात भी मेरी जिंदगी की शोगत होगी
कसम है मेरी मोहबत की फिर ना कहूँगा
की आप से एक और मुलाकात होगी
तिनके की तरह बह जाऊंगा आपकी यादों में
समदर में मिल जाऊँगा यादों के किनारे लग जाऊँगा
मिल जायेगीं ताबीर मेरे ख्वाबों की एक दिन
ये ख्वाब कब बिखर जाये कुछ कह नहीं सकता
कब दिन निकले कब श्याम होगी
कब तुम से में मिलु कब जिन्दगी आपके नाम होगी
दिनेश पारीक
हम्म!
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमुसाफिर हैं हम मुसाफिर हो तुम भी
जवाब देंहटाएंकही न कही फिर किसी मोड़ पर मुलाकात होगी..
बहुत खुब...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंhttp://ektakidiary.blogspot.in/