शनिवार, 18 मई 2013

मुसाफिर हैं हम



मुसाफिर  हैं हम  मुसाफिर  हो तुम भी 
कही न कही  फिर किसी मोड़  पर मुलाकात होगी 
बे नाम  मुसफ़िर हूँ  बे- नाम सफर  है मेरा 
फिर न जाने  किस रोज़  मिलने  की शोगात होगी 
किस दिन कहा  निकल  जाऊं  कह नहीं सकता 
जिस दिन तुम कहो मुझे मिलने को 
क्या पता उस दिन में कही मिल  नहीं सकता 
बे-नाम  मेरी जिंदगी  बे-नाम ठिकाना है 
किस दर पर में रुक जाऊं कुछ कह नहीं सकता 
बस तेरी एक मुलाकात  भी मेरी जिंदगी  की शोगत  होगी 
कसम  है मेरी  मोहबत  की फिर ना  कहूँगा 
की आप  से एक और  मुलाकात होगी 
तिनके की तरह  बह  जाऊंगा  आपकी यादों में 
समदर में  मिल जाऊँगा यादों  के किनारे  लग जाऊँगा 
मिल जायेगीं ताबीर  मेरे  ख्वाबों  की एक दिन 
ये ख्वाब  कब बिखर  जाये कुछ कह नहीं सकता 
कब  दिन निकले  कब श्याम  होगी 
कब तुम से में मिलु कब जिन्दगी आपके  नाम होगी 
दिनेश पारीक 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और सटीक प्रस्तुति.

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  2. बेनामीजून 04, 2013

    मुसाफिर हैं हम मुसाफिर हो तुम भी
    कही न कही फिर किसी मोड़ पर मुलाकात होगी..

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  3. बेनामीजून 23, 2013

    सुन्दर रचना के लिए बधाई
    http://ektakidiary.blogspot.in/

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