रविवार, 12 अगस्त 2012

मंजिल हर रोज़ वो हमें बुला लेती है


 हर रोज़  कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते  है
हम वही पर  पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते   हैं
हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है
छलकती है मेरी भी आँखों से नमी
जब दिन और रात बदल कर सपनो की मंजिल बदल जाती है ||
कभी  कभी कहता है मन काश ये सपने न होते
काश ये दर्द अ शोकत न होती
मंजिल मिले या न मिले पर
हो न हो ये  सपनो की शोहबत न होती
आज फिर न जाऊ ये तो हर रोज कहता हूँ
पर हर रोज़ ऑंखें भीग कर मुकर जाती है ||
पोछने का सिलसिला तो भूल गया हूँ
पर ये हर रोज़ सिकुड़ जाती है ||
फासला तो हाथ दो हाथ का ही रहता है पर ?
हर रोज़ की तरह मंजिल भी हमें भूल जाती है
काश वो दो पल सकून के हमें भी दे देती
जब पास हम उनके होते
काश  देखने का नज़ारा हमें भी मिले
 जब पास होते
पर हर रोज़ वो पास आकर धुधली पड़ जाती है
हर रोज़  कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते  है ||
हम तो जाते भी नहीं पर
हर रोज़ वो हमें बुला लेती है  जाता हूँ पास तो
अपने आपको  मिटटी की तरह मिटा लेती है
 हर रोज़  कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते  है
हम वही पर  पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते   हैं





30 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ कारवां चलता रहे ये कश्तियाँ पतवार हों .
    हम रहें या न रहें ये भंवर न मझधार हो ..

    जवाब देंहटाएं
  2. जीवन की इस रीत को बाखूबी लिखा है ...
    बहुत खूब ...

    जवाब देंहटाएं
  3. और यूं ही चलती रहती है ज़िंदगी एक दरिया की तरह ... सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. जन्माष्टमी के मौके पर सबको शुभकामनाएं.

    आपका हार्दिक स्वागत है.

    जवाब देंहटाएं
  5. यही जीवन की रीत है..उम्दा!

    जवाब देंहटाएं
  6. हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं... waah

    जवाब देंहटाएं
  7. जिन्दगी का एक नजरिया.... मन के भावों को सुन्दर शब्द बध किया है बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  8. हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
    behad khubsurat andaj, sarthak pratuti

    जवाब देंहटाएं
  9. फासला तो हाथ दो हाथ का ही रहता है पर ?
    हर रोज़ की तरह मंजिल भी हमें भूल जाती है

    ...बहुत खूब! सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर.....
    कोमल एहसासों की प्यारी सी अभिव्यक्ति...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत गहरे भाव...
    हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
    शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  12. फासला तो हाथ दो हाथ का ही रहता है पर ?
    हर रोज़ की तरह मंजिल भी हमें भूल जाती है

    sundar avm prabhavshali rachana ke liye abhar.

    जवाब देंहटाएं
  13. "हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"

    ज़िंदगी में यह खोना-पाना ही ज़िंदगॊ को आशा की डोर से बाँधे रहता है!
    बहुत सुंदर रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  14. "हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"

    ज़िंदगी में यह खोना-पाना ही ज़िंदगॊ को आशा की डोर से बाँधे रहता है!
    बहुत सुंदर रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  15. "हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"

    ज़िंदगी में यह खोना-पाना ही ज़िंदगॊ को आशा की डोर से बाँधे रहता है!
    बहुत सुंदर रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  16. हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं
    बेहद सुन्दर पंक्तियाँ हेँ ..बस वर्त्निकी भूलें देख लें ..मन मोहने वाला ब्लॉग

    जवाब देंहटाएं
  17. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  18. जीवन का संपूर्ण दर्शन
    अच्छी रचना, बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत खूब लिखा है आपने। बधाई।

    ईद की दिली मुबारकबाद।
    ............
    हर अदा पर निसार हो जाएँ...

    जवाब देंहटाएं
  20. हर रोज़ कश्तिया डूबती है तो कभी सपने टूट जाते है
    हम वही पर पानी पे खड़े रहे जहाँ ये सपने छुट जाते हैं"
    behatreen!!

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  22. काश वो दो पल सकून के हमें भी दे देती.
    See
    http://praveenshah.blogspot.com/2012/08/blog-post_21.html

    जवाब देंहटाएं
  23. कुछ पुरानी कश्तियां डूबती हैं कुछ नई आ जाती हैं यही है जीवन ।

    जवाब देंहटाएं