बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

आज फिर जीने का मन करता है

आज फिर जीने का मन करता है 
आज की इस हवा को छुने का मन करता है 
कभी इस संघर्ष का अंत करने का मन करता है 
हर रोज़ एक नया सवेरा देखने का मन करता है 
कभी इस दो तिहाई मन को बाटने का मन करता है 
कभी इस नदियों की तरह छलकने का मन करता है ..................
कभी दुनिया का दर्द सहने का मन करता है 
कभी अकेले अकेले रोने का मन करता है >>>>>>>>
सपनो से अपने सपने चुराने का मन करता है 
कभी कभी इस दुनिया  को सपना बनाने  का मन करता है 
आज फिर वापिस लोटने का मन करता है >....................................
कभी उस धुप को पकड़ने का मन करता है 
कभी उस छाव को छुपाने का मन करता है 
फिर उस बचपन में जाने का मन करता है >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
फिर दोबारा माँ की लोरी सुन ने का मन करता है 
कभी बीते दिन को भूल जाने का मन करता है 
कभी कभी मर के भी जीने का मन करता है 
आज फिर जीने का मन करता है >>>>>>>>>>>>>>>>>>
दिनेश पारीक 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया जी , जीना ही सच्चाई है , मरने का सोचना ही क्यूँ

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  2. चंचल मन... पंछी की तरह उड़ता रहता है, वहाँ पहुँच जाता है...जहाँ अक्सर हम नहीं पहुँच पाते..!
    अच्छी रचना !
    ~सादर!

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  3. मन तो द्रुत गामी और चंचल है,उसे एक जगह बांध कर नहीं रख सकते .आपका मन बहुत अच्छा उड़ रहा है .बहुत सुन्दर.

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  4. फिर दोबारा माँ की लोरी सुन ने का मन करता है कभी बीते दिन को भूल जाने का मन करता है कभी कभी मर के भी जीने का मन करता है आज फिर जीने का मन करता है >>>>>>>>>>>>>>>>>>
    ......... बहुत सुंदर.......

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  5. बहुत सुंदर, सार्थक और आशावादी रचना | इंसान को हमेशा आशावान होना चाहिए |
    मेरी नई पोस्ट:-
    करुण पुकार

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  6. आइये मेरे नए ब्लाग पर...
    http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html

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  7. सुन्दर रचना... पढ़कर मन प्रसन्न हो गया...
    शुभकामनायें... कभी आना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

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  8. कुछ काम तो मन का कर ही सकते हैं .... सुंदर प्रस्तुति

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  9. फिर दोबारा माँ की लोरी सुन ने का मन करता है॥

    बहुत ही सुंदर, मेरी आँख नम हो गई जी..!

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