रविवार, 20 नवंबर 2011

माँ कुछ दिन तू और न जाती,

माँ! कुछ दिन

माँ! कुछ दिन तू और न जाती,

मैं ही नहीं बहू भी कहती,

कहते सारे पोते नाती,

माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

रोज़ सबेरे मुझे जगाना,

बैठ पलंग पर भजन सुनाना,

राम कृष्ण के अनुपम किस्से,

तेरी दिनचर्या के हिस्से,

पूजा के तू कमल बनाती।

माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

हरिद्वार तुझको ले जाता,

गंगा जी में स्नान कराता,

माँ केला की जोत कराता,

धीरे-धीरे पाँव दबाता,

तू जब भी थक कर सो जाती।

माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

कमरे का वो सूना कोना,

चलना फिरना खाना सोना,

रोज़ सुबह ठाकुर नहलाना,

बच्चों का तुझको टहलाना,

जिसको तू देती थी रोटी,

गैया आकर रोज़ रंभाती।

माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

सुबह देर तक सोता रहता,

घुटता मन में रोता रहता,

बच्चे तेरी बातें करते,

तब आँखों से आँसू झरते,

माँ अब तू क्यों न सहलाती।

माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

अब जब से तू चली गई है,

मुरझा मन की कली गई है,

थी ममत्व की सुन्दर मूरत,

तेरी वो भोली-सी सूरत,

दृढ़ निश्चय औ' वज्र इरादे,

मन गुलाब की कोमल पाती।

माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

32 टिप्‍पणियां:

  1. Aankhe jhar jhar jharne lageen,aapkee ye rachana padhte hue!

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  2. हम तो यही कहेंगे माँ तुझे सलाम ..(.फॉण्ट थोड़ा बड़ा कर दीजिये )

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  3. बहुत सुंदर .....मन के संवेदनापूर्ण भाव

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  4. बहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना |

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  5. बहुत ही सुंदर रचना अच्छी प्रस्तुति ...!

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  6. माँ से जुडी ये भावपूर्ण रचना बहुत ही सुन्दर ..!
    हो सके तो कृपया टेक्स्ट का साइज़ बढ़ा ले पढने में
    आसानी होगी !
    आभार !

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  7. वाह ...कदम कदम पर माँ याद आती है ... बहुत ही भावपूर्ण रचना ...

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  8. बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी...शब्दों और भावों का बहुत सुंदर संयोजन...

    http://batenkuchhdilkee.blogspot.com/2011/11/blog-post.html

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  9. सुन्दर सी पर मार्मिक रचना..बधाई !!

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  10. सुन्दर प्रस्तुति |मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वगत है । कृपया निमंत्रण स्वीकार करें । धन्यवाद ।

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  11. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना!

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  12. aapne bahut hi sunder prastuti di . bhavo ka sunder chitran .badhai .

    dinesh ji namaskar ,is baar akshar bahut chote lage padhne mai ....unhen padhne mai thodi parashani hui , bade kare shabd .

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  13. माँ तो बस माँ ही होती है ,. आपकी कविता पढकर बचपन के गलियारों में खो गया .. माँ से बढ़कर कोई नहीं .. माँ को नमन ...

    बधाई !!
    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html

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  14. माँ याद आती है ||

    बधाई !!

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  15. ख़ूबसूरत प्रस्तुति

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  16. बेहतरीन पोस्ट के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  17. माँ थोड़ी दूर मेरे साथ चलो
    माँ
    थोड़ी दूर मेरे
    साथ चलो
    थोड़ी सी हिम्मत
    दे दो
    थोड़ा साहस
    बढ़ा दो
    थोड़ा सहारा दे दो
    चलने का तरीका
    सिखा दो
    ना थकने का
    रास्ता बता दो
    गड्डों से बचने की
    विधि समझा दो
    माँ थोड़ी दूर मेरे
    साथ चलो
    चलने का कारण
    समझा दो
    गिर कर फिर
    उठ सकूँ
    निरंतर चल सकूँ
    वो ढंग बता दो
    मुझे मंजिल का
    पता बता दो
    माँ थोड़ी दूर मेरे
    साथ चलो
    31-08-2011
    1422-144-08-11

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  18. बंधुवर आदरणीय दिनेश पारीक जी
    बहुत भावुक कर दिया दोस्त आपने !
    अभी कई बार आपकी इस भावपूर्ण रचना को पढ़ना है … … …

    माँ! कुछ दिन तू और न जाती,
    मैं ही नहीं बहू भी कहती,
    कहते सारे पोते नाती,
    माँ! कुछ दिन तू और न जाती।
    रोज़ सबेरे मुझे जगाना,
    बैठ पलंग पर भजन सुनाना,
    राम कृष्ण के अनुपम किस्से,
    तेरी दिनचर्या के हिस्से,
    पूजा के तू कमल बनाती।
    माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

    हरिद्वार तुझको ले जाता,
    गंगा जी में स्नान कराता,
    माँ केला की जोत कराता,
    धीरे-धीरे पाँव दबाता,
    तू जब भी थक कर सो जाती।
    माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

    कमरे का वो सूना कोना,
    चलना फिरना खाना सोना,
    रोज़ सुबह ठाकुर नहलाना,
    बच्चों का तुझको टहलाना,
    जिसको तू देती थी रोटी,
    गैया आकर रोज़ रंभाती।
    माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

    सुबह देर तक सोता रहता,
    घुटता मन में रोता रहता,
    बच्चे तेरी बातें करते,
    तब आँखों से आँसू झरते,
    माँ अब तू क्यों न सहलाती।
    माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

    अब जब से तू चली गई है,
    मुरझा मन की कली गई है,
    थी ममत्व की सुन्दर मूरत,
    तेरी वो भोली-सी सूरत,
    दृढ़ निश्चय औ' वज्र इरादे,
    मन गुलाब की कोमल पाती।
    माँ! कुछ दिन तू और न जाती

    रचनाकार -दिनेश पारीक


    इस रचना के लिए कुछ भी कहना कम ही होगा …

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  19. सुन्दर . ..
    मन को छू गया भीतर तक ..!!

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  20. Maa ko samarpit komal bhavnaon ki yah prastuti man mein utar gayee..
    Maa ka apne se door jana kitna saalta hai yah dard ek beti MAA ki bhumika mein aane ke baat bakhubi jaanti hai aur taumra yaad karti hai..

    जवाब देंहटाएं
  21. बच्चे तेरी बातें करते,

    तब आँखों से आँसू झरते,

    माँ अब तू क्यों न सहलाती।

    माँ! कुछ दिन तू और न जाती। Dil ko chhoonewali rachna.

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  22. आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  23. bahut hee sundar kavita padi man ko chhu gaee.vastav men maa bahut badi shakti hai jo bachchon ke liye takat hati hai uska janaa kahin gehre tak chhatpatahat ke beech chhod jati hai.ati sundar rachna ke liye badhai.

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