न कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
सब कुछ पास था उस के | मुझे देने के लिए वो गरीब था |
उस ने बहुत धन दोलत दिया दुनिया को पर में तो एक गरीब था |
जो भी मिला उसी से मिला | ये मेरा ही नशीब था
मेरा जनम हुआ ये भी उस के लिए बड़ा अजीब था |
कोई हंशा, कोई रोया मेरे घर का ये माहोल था
उस वक़्त माँ का दर्द में न समझ पाया था
पर मुझे पता है माँ के में कितना करीब था
जन्म की रात काली थी | चाँद भी न आया था
दिन में बदलो ने डाला डेरा ये मेरा नशीब था
दादा जी कहते है वो साल पड़ा बड़ा अकाल था |
सब कुछ कला था सिर्फ वो ही मेरा गुनगार था
ये कैसा मेरा नशीब था | ????????
बचपन बिता जवानी आई , घर छोड़ा ये कितना अजीब था
आज तो माँ की ममता के लिए जीता हूँ | हर रोज़ गम पिता हूँ
पांच भाई बहनों में बटी माँ की ममता ये भी मेरा ही नशीब था
गाव छोड़ के आया लेकिन यहाँ भी जीना मुहाल था ................
आज आज माँ के साथ मंदिर गया
मंदिर में किसी ने पूछा तेरा चेहरा इतना उदास क्यों है| ?????
बरसती आखों में प्यास क्यों है और तुम मंदिर में क्यों हूँ
जिनकी नजरो में तू कुछ भी नहीं वो तेरे लिए आज इतना खास क्यों है ||?
मैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था
न कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
दिनेश पारीक
सब कुछ पास था उस के | मुझे देने के लिए वो गरीब था |
उस ने बहुत धन दोलत दिया दुनिया को पर में तो एक गरीब था |
जो भी मिला उसी से मिला | ये मेरा ही नशीब था
मेरा जनम हुआ ये भी उस के लिए बड़ा अजीब था |
कोई हंशा, कोई रोया मेरे घर का ये माहोल था
उस वक़्त माँ का दर्द में न समझ पाया था
पर मुझे पता है माँ के में कितना करीब था
जन्म की रात काली थी | चाँद भी न आया था
दिन में बदलो ने डाला डेरा ये मेरा नशीब था
दादा जी कहते है वो साल पड़ा बड़ा अकाल था |
सब कुछ कला था सिर्फ वो ही मेरा गुनगार था
ये कैसा मेरा नशीब था | ????????
बचपन बिता जवानी आई , घर छोड़ा ये कितना अजीब था
आज तो माँ की ममता के लिए जीता हूँ | हर रोज़ गम पिता हूँ
पांच भाई बहनों में बटी माँ की ममता ये भी मेरा ही नशीब था
गाव छोड़ के आया लेकिन यहाँ भी जीना मुहाल था ................
आज आज माँ के साथ मंदिर गया
मंदिर में किसी ने पूछा तेरा चेहरा इतना उदास क्यों है| ?????
बरसती आखों में प्यास क्यों है और तुम मंदिर में क्यों हूँ
जिनकी नजरो में तू कुछ भी नहीं वो तेरे लिए आज इतना खास क्यों है ||?
मैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था
न कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
दिनेश पारीक
मेरा जनम हुआ ये भी उस के लिए बड़ा अजीब था |
जवाब देंहटाएंकोई हंशा, कोई रोया मेरे घर का ये माहोल था
उस वक़्त माँ का दर्द में न समझ पाया था
पर मुझे पता है माँ के में कितना करीब था
behtreen peshkash .bahut umda bhav ........
naseeb naseeb ki baat:)
जवाब देंहटाएंbehtareen!
वाह भाई नामराशि-
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
बहुत बहुत बधाई ||
bahut khoobasoorat pravishti.
जवाब देंहटाएंआप दुनिया में आ गए बड़ी बात है
जवाब देंहटाएंक्यों आए यहां पर , यह सोचना भी अहम है।
See
http://allindiabloggersassociation.blogspot.in/2012/04/blog-post_05.html
वो जानता बाई उसे क्या देना है और वो जो भी देता है भरपूर देता है ... बेहतरीन रचना ...
जवाब देंहटाएंमैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था
जवाब देंहटाएंन कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
ati sundar...
आज आज माँ के साथ मंदिर गया
जवाब देंहटाएंमंदिर में किसी ने पूछा तेरा चेहरा इतना उदास क्यों है
बरसती आखों में प्यास क्यों है और तुम मंदिर में क्यों हूँ
....बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है !
और हर शब्द में बहुत ही गहराई है !
कविता में मन के उद्गार बहुत ही संजीदगी से व्यक्त हुए हैं।
जवाब देंहटाएंकुछेक अशुद्धियां हैं, दूर कर दें।
bahut badiya likha hai ji
जवाब देंहटाएंमैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था
जवाब देंहटाएंन कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
अद्भुत भाव. खूबसूरत प्रस्तुति. बधाई
मनोव्यथा और हालात की प्रस्तुति बहुत ही बढ़िया है!...आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमनोव्यथा को अच्छे भाव एवं शब्दों में पिरोया है
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण.....
मन की व्यथा मुखर हो उठी है...
जवाब देंहटाएंन कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
जवाब देंहटाएंexcellent
बहुत संजादा कविता है. रकीबों से आँख मिलाना ज़िंदगी सिखा देती है. उत्साह से कार्य बनता है.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
''न कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नसीब था,
जवाब देंहटाएंसब कुछ पास था उस के मुझे देने के लिए वो गरीब था|''
बहुत संज़ीदा रचना, मन को उद्वेलित करती हुई, बधाई.
हिंदी टाइपिंग में कई सारे विकल्प होते हैं, सही विकल्प का चुनाव करेंगे तो शुद्ध शब्द लिखे जायेंगे.
मैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था
जवाब देंहटाएंन कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नशीब था
....बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...
आज आज माँ के साथ मंदिर गया
जवाब देंहटाएंमंदिर में किसी ने पूछा तेरा चेहरा इतना उदास क्यों है| ?????
बरसती आँखों में प्यास क्यों है और तुम मंदिर में क्यों हो
जिनकी नजरो में तू कुछ भी नहीं वो तेरे लिए आज इतना खास क्यों है ||?
मैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था
न कमी थी कोई जहान में कमजोर मेरा ही नसीब था
प्रतीक जी धन्यवाद .....
आइये साहित्य को उच्च दिशा दें ..अपने खून पसीने से सींचे ...
सुन्दर रचना
आभार
भ्रमर ५
नसीब अपना अपना...
जवाब देंहटाएंआशीष
--
द नेम इज़ शंख, ढ़पोरशंख !!!
takdeer banane vale tune kami na ki..kisko kya mila ye mukkdar ki baat hai...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति... अच्छी रचना... बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंकृपया वर्तनी शुद्ध करें ,शुद्ध रूप -नसीब ,हंसा ,बादलों आदि लिखें .रचना अच्छी है आपकी ,बधाई .कृपया यहाँ भी भाईजान -शनिवार, 28 अप्रैल 2012
जवाब देंहटाएंईश्वर खो गया है...!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअरुन (arunsblog.in)
सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमैं सिर्फ Digg पर अपने ब्लॉग के रूप में चिह्नित किताब और ठोकर. मैं आपकी टिप्पणियों को पढ़ने का आनंद लें.
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग पोस्ट एक और लेख के लेखक के रूप में प्रस्तुत एक ही प्रदान करता है, लेकिन मैं बहुत अपने दूर बेहतर पसंद है.
जवाब देंहटाएंआप वहाँ कुछ अच्छे अंक बनाया है. मैं इस विषय पर एक खोज किया और पाया कि ज्यादातर लोगों सहमत होंगे.
जवाब देंहटाएं