भ्रष्टाचारी बात कर रहे भ्रष्टाचार की
नित करते हम नये सवाल,नित ही पाते हैं जवाब
क्या खू़ब हो गर पूछें आज
है कौन बचा अपने में आप
शुरुवात कहीं से करनी है तो
पहले खु़द को ही झाँकें
उसे साफ़ करते ही,खुल जायेंगी सारी आँखें
हमें भी आता मज़ा बहुत है
करते काम वही सारे
होते हैं बदनाम जब नेता
हम हो जाते हैं बेचारे।
बुरा न बोलो,बुरा न देखो
न करो बुरे काम कभी
नित करते रहते हम ये सब
पर है ये हमें स्वीकार नहीं।
क्या खू़ब गज़ब की बातें होती
चर्चायें हर गलियों में
हम भी तो हैं शामिल होते,
उन्हीं जली मोमबत्तियों में
भ्रष्टाचारी बात कर रहे भ्रष्टाचार की…
बहुत सटीक!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut sateek sachchaai se bhari rachna.
जवाब देंहटाएंविचार जगाती रचना...बधाई
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