शनिवार, 22 मई 2010

विंडो खुली है और हवा आती नहीं है
कम्प्यूटर की दुनिया मुझे भाती नहीं है

ये ओ-के, ये कैंसल, ये कैसे हैं डायलाग
कहने की छूट जिसमें मुझे दी जाती नहीं है

जला के बचाने की ये उलट-विद्या है कैसी
पी-सी में बर्नर की बात समझ आती नहीं है

ये इंटर, ये इस्केप, ये कीज़ हैं जितनी
कभी भी कोई ताला खोल पाती नहीं हैं

माउस जहाँ है वहाँ निस्संदेह गंदगी भी होगी
लाख लगा लूँ फ़िल्टर, गंदी मेल जाती नहीं है

उनको मिले कम्प्यूटर जिन्हें हैं कम्प्यूटर की तलाश
मुझको तो इसकी संगत रास आती नहीं है

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