रविवार, 25 दिसंबर 2011

प्रिय तुम


प्रिय तुम मेरे संग एक क्षण बाँट लो

वो क्षण आधा मेरा होगा

और आधा तुम्हारी गठरी में

नटखट बन जो खेलेगा मुझ संग

तुम्हारे स्पर्श का गंध लिये


प्रिय तुम ऐसा एक स्वप्न हार लो

बता जाये बात तुम्हारे मन की जो

मेरे पास आकर चुपके से

जब तुम सोते होगे भोले बन

सपना खेलता होगा मेरे नयनों में


प्रिय तुम वो रंग आज ला दो

जिसे तोडा था उस दिन तुमने

और मुझे दिखाये थे छल से

बादलों के झुरमुट के पीछे

छ: रंग झलकते इन्द्रधनुष के


प्रिय तुम वो बूंद रख लो सम्हाल कर

मेरे नयनों के भ्रम में जिस ने

बसाया था डेरा तुम्हारी आंखों में

उस खारे बूंद में ढूंढ लेना

कुछ चंचल सुंदर क्षण स्मृतियों के


प्रिय तुम...
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