सोमवार, 14 मार्च 2011

आज कल के प्रेमियों को


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दूरियां होने से यादे धुंधली हो जाती लेकिन  कुछ यादें ऐसी होती है जो जिंदगी भर आप के साथ रहती है | यादे खट्टी  मीठी सी उन्ही  यादो के झरोखों से आप सब के लिए एक कविता लायी हूँ | जो कि मेरी नहीं अश्वनी दादा कि है उनकी ही इजाजत से आप सब के सामने रख रही हूँ |
काश कभी ऐसा हो जाए ,
दुनिया में बस हम और तुम हो ,
सारा जग खो जाए ,
काश कभी ऐसा हो जाए ,,
जब जब मै तुझे याद करूं ,
तेरी जुदाई में आहें भरूं ,
तूँ मेरी बाहों में आ जाए ,
काश कभी ऐसा हो जाए ,,
सारा दिन तेरी याद में गुजरे ,
रात में ख़्वाबों में आकर ,
प्यार के मीठे गीत सुनाये,
काश कभी ऐसा हो जाए ,,
ना हो दुनिया दीन का बंधन,
ना कोई दूजा ना कोई दुश्मन ,
हम एक दूजे की बाहों में ,
दुनिया से रुखसत हो जाएँ ,
काश अगर ऐसा हो जाए ,,..
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मंगलवार, 8 मार्च 2011

हस्तरेखा बताए क्यों टूटते हैं दिल (The palm reveals why hearts break)

दिल का मामला बड़ा ही नाजुक होता है जरा सी आंच लगी नहीं कि यह तार तार होकर बिखर जाता है और जुदा हो जाते हैं दो दिल। दिल टूट जाने के बाद आप किसी को भी दोष दें लेकिन हस्त रेखा विज्ञान कहता है अगर ऐसा होता है तो यह आपकी हाथ की रेखाओ में लिखा है। तो देखिये क्या कहती है आपकी प्रेम रेखा! 
जीवन में प्रेम को जो स्थान प्राप्त है उसे हस्त रेखा विज्ञान भी सम्मान देता है। युगों से कितने प्रेमी आये और चले गये मगर प्रेम जिन्दा है और प्रेमी प्रेम के गीत गुनगुनाते जा रहे हैं। प्रेम का यह भी शाश्वत सच है कि "यह किसी किसी को पूरी तरह अपनाता है, अक्सर तो यह एक लौ दिखाकर सब कुछ जला देता है"।

आपने देखा होगा कि प्रेमी एक दूसरे की खातिर अपना सब कुछ लूटा देने को तैयार रहते हैं परंतु वक्त कुछ ऐसा खेल खेल जाता है कि प्रेमियों को एक दूसरे से जुदा होकर विरह की आग में जलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सामुद्रिक ज्योतिष के विद्वान कहते हैं कि हमारी हथेली में कुछ ऐसी रेखाएं हैं जो किसी को महबूब से मिलाती है तो fकसी को जीवन भर का दर्द दे जाती है (Palmists say some lines in our palm are responsible for match & separation in love)।

हस्त रेखा विज्ञान के जानकार कहते हैं। अगर हथेली में हृदय रेखा को कोई अन्य रेखा काटती हो तो प्रेमियों का मिलना मुश्किल होता है (If the line of heart is cut or crossed by any line it is a sign of separation)। हृदय रेखा लहरदार या जंजीर के समान दिखाई देती हो तब भी प्रेम में जुदाई का ग़म उठाना पड़ता है।

हस्तरेखीय ज्योतिष के अनुसार अगर शुक्र पर्वत अधिक उठा हुआ हो, उस पर तिल का निशान हो या द्वीप हो तो प्रेमियो के बीच में परिवार की मान्यताएं और अन्य कारण बाधक बनते हैं जिससे प्रेमियो के मिलन में बाधा आती है (As per palmistry, if Mount of Venus is prominent or mole or an island is located on this mount, there are obstacles from the family)। अगर आपकी हथेली में हृदय रेखा पर द्वीप का निशान हो, जीवन रेखा को कई मोटी मोटी रेखा काट रही हो अथवा चन्द्र पर्वत अत्यधिक विकसित हो तो आपकी शादी उससे नहीं हो पाती है जिनके साथ आप जीवन बिताना चाहते हैं यानी यह रेखा इस बात संकेत देती है कि आपको मनपसंद जीवन साथी नहीं मिलने वाला है।

हथेली दिखने में काली है और सख्त भी तो प्रेमी प्रेमिका में प्रेम पूर्ण सम्बन्ध नहीं रहता क्योंकि उनके विचारों में सामंजस्य नहीं रहता फलत: प्रेमी प्रमिका स्वयं ही एक दूसरे से सम्बन्ध तोड़ सकते हैं। गुरू की उंगली छोटी हो एवं मस्तिष्क रेखा का अंत चन्द्र पर्वत पर हो अथवा भाग्य रेखा एवं हृदय रेखा मोटी है तो परिवार के लोगों द्वारा प्रेमी प्रेमिका के बीच ग़लत फ़हमी पैदा होने से प्रेम के नाजुक सम्बन्ध में बिखराव आ जाता है।

अगर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रेम की डोर टूटने वाली है तो देखिये कहीं आपकी हथेली में मंगल पर्वत और बुध के स्थान पर रेखाओं का जाल तो नहीं है अथवा भाग्य रेखा टूटी हुई या मोटी पतली तो नहीं है। अगर रेखाएं इन स्थितियों में हैं तो प्रेम के पंक्षी एक घोंसले में निवास नहीं करते यानी दोनो को बिछड़ना पड़ता है।

हस्त रेखीय ज्योतिष के अनुसार अगर आपके बीच बात बात में तू-तू मैं -मैं होती है और स्थिति यहां तक पहुच गयी है कि आप एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं तो इसका कारण यह हो सकता है कि आपकी हथेली में मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत की ओर हो अथवा भाग्य रेखा व हृदय रेखा सामान्य से अधिक मोटी हो। इसके अलावा इस स्थिति का कारण यह भी हो सकता है कि भाग्य रेखा कहीं मोटी कहीं पतली हो या बृहस्पति की उंगली सामान्य से छोटी हो।

हस्त रेखा ज्योतिष में जब हथेली में ऐसी रेखा देखी जाती है तो प्यार के रिश्तों में बिखराव का अनुमान लगाया जाता है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि प्रेमियो को रेखाओं के कारण जुदाई का ग़म उठाना ही पड़े क्योंकि अगर मर्ज है तो इसका ईलाज भी मौजूद है। आप आपके रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं अथवा आपका प्रेमी आपको छोड़कर जा रहा है तो किसी अच्छे ज्योतिषाचार्य से सम्पर्क कीजिए। आप अपने प्रेम रूपी पौधे को हरा भरा रखने के लिए सच्चे मन से मां पार्वती और भगवान शंकर की सुबह शाम पूजा करें व उन्हें दीप दान दें। इनके आशीर्वाद से सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती है और जैसे शिव पार्वती के बीच प्रेम है वैसे ही आपका प्रेम गहरा होता है।

कवी का पत्र प्रेमिका को Kavi ka patra premika ko

आगे देखिये  प्रेमिका का उतर 

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIVqZ9GzDDAkg8fj1R8dO1b8FDc2c-5CYyihRy4zi86ghyl_YizR_Dyv_Nr_ZvyQ-Iu50tiSmun7WH6vLywOsEuEqmaTyFfH0GYoFAGwUuDS7KtaDUdJDUQ3F0yD3ictyfr9xa_jbXUGE/s1600/Abol+Prem_MAJ.jpg

ब्लॉगमंच: "कुछ झलकियाँ"

ब्लॉगमंच: "कुछ झलकियाँ"

-ज़िंदगी का एक और रंग-


तेरी यह मायूसी बन जाती है बेचैनी मेरी
ज़िंदगी से तेरा खफा होना, लगे ज़िंदगी है ख़फा मेरी
तेरी सासों से मैं खुद सास लेती हूँ
चहरे पे उदासी तेरी, लगती है हार मुझे अपनी
मेरे लिए क्या चाँद क्या सूरज क्या तारे
तू साथ हो तो सब लगते है अपने प्यारे
पर तू रूठा है इस्कदर खुद से ही
लगे तूफान आया हो मिटाने पहचान मेरी
तेरी हसी पे घायल हुए थे, निराली तेरी हर अदा
तेरी मोहब्बत को आपना समझ जी रहे थे
तू अब ना जा छोड़ के, ना हो मुझसे जुदा
तेरे बिन हर रंग फीका लगता है आँखो को मेरी

मंगलवार, 1 मार्च 2011

क्या गांधी छोटी-छोटी लड़कियों के साथ सोते थे?(कनिष्क कश्यप की बक-बक)

wendy donigar sucks क्या गांधी छोटी छोटी लड़कियों के साथ सोते थे?(कनिष्क कश्यप की बक बक)जी हाँ, मात्र यहीँ नहीँ और कई बातेँ को सुनकर आपको भी आपको आश्चर्य होगा , मसलन

  • क्या झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों का साथ देती थीं?
  • क्या स्वामी विवेकानंद ने लोगों को गोमांस खाने को कहा था?
  • क्या लक्ष्मण की सीता के प्रति कामभावना थी?
  • स्वामी विवेकानन्द ने गोमांस खाने की वकालत की थी.

wendy donigar क्या गांधी छोटी छोटी लड़कियों के साथ सोते थे?(कनिष्क कश्यप की बक बक) क्या गांधी छोटी छोटी लड़कियों के साथ सोते थे?(कनिष्क कश्यप की बक बक) यह खबर नवभारत टाइम्स मेँ छपी. इससे पहले की हम कोई वैचारिक समर का आगाज़ करेँ आईये पहले खबर पर नज़र डालेँ . भारत के इतिहास से जुड़े ये अजीब-ओ-गरीब दावे अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी की प्रफेसर वेंडी डोनिगर ने अपनी किताब ’द हिंदू- ऐन ऑल्टरनेटिव हिस्ट्री’ में किए हैं। इस किताब को लेकर भारत और अमेरिका में खासा विरोध हो रहा है। इसी विरोध के चलते किताब को अमेरिका में मिलनेवाला एक पुरस्कार भी रोक दिया गया। मंगलवार को शिक्षा बचाओ आंदोलन नामक एक संगठन ने दिल्ली समेत देश के कई भागों में इस किताब के खिलाफ प्रदर्शन किया और इस पर दुनियाभर में बैन लगाए जाने की मांग की। अमेरिकी दूतावास के सामने प्रदर्शन के बाद संगठन के संयोजक दीनानाथ बत्रा ने कहा कि इस किताब की लेखिका ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर भारतीय इतिहास को पेश किया है, जो सरासर गलत है। इस किताब कोपेंगुइन बुक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने छापा है। संगठन इस पब्लिशिंग हाउस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने पर भी विचार कर रहा है। संगठन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अगर इस किताब पर महीने भर के भीतर बैन नहीं लगाया गया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। सामाजिक संगठनों ने एक अमरीकी प्रोफेसर की हिन्दू धर्म, भारतीय संस्कृति और महापुरूषों को अपमानित करने वाली पुस्तक द हिन्दू एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री पर पूरे विश्व में प्रतिबंध लगाने की मांग की है . शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के नेतृत्व में इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कार्यकर्ताओं ने आज यहां अमरीकी दूतावास के सामने प्रदर्शन किया और गिरफ्तारी दी। प्रदर्शनकारियों ने भारत में अमरीका के राजदूत को ज्ञापन भी दिया। समिति के राष्ट्रीय संयोजक दीनानाथ बत्ना ने आरोप लगाया है कि पुस्तक की लेखिका शिकागो विश्वविद्यालय की प्रो. वेंडी डोनिगर ने भारत के इतिहास और हिन्दुओं के बारे में घृणा भरी मानसिकता से निराधार तथा अस्पष्ट वर्णन किया है। उन्होंने दावा किया है कि पुस्तक में भगवान श्रीकृष्ण, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में आधारहीन और आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं। उन्होंने कहा है कि इस पुस्तक के खिलाफ भारत और अमरीका में आंदोलन जारी हैं तथा इन्हीं आंदोलनों के चलते वेंडी डोनिगर को अमरीका का राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार देने पर रोक भी लगा दी गई है। श्री बत्ना ने कहा कि यदि इस पुस्तक पर एक महीने के भीतर रोक नहीं लगाई गई तो भारत के अलावा दुनिया भर में इसके खिलाफ आंदोलन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि पुस्तक की लेखिका और पुस्तक के प्रकाशक पेंगुइन बुक्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ कानूनी कार्रवाही भी की जायेगी। अमरीकी राजदूत को दिये गये ज्ञापन में कहा गया है कि इस पुस्तक में दी गई जानकारी कपोल कल्पित तथा आधारहीन है और भारत के लोग इससे बहुत अधिक आहत हैं। राजदूत से पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने के साथ साथ लेखिका के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने की मांग की गई है। श्री बत्ना ने कहा कि उन्होंने इस मामले को अमरीकी राष्ट्रपति के संज्ञान में लाने के लिए उन्हें भी पत्न लिखा है।http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5973729.cms=================================================================================

अब इस लेखिका का परिचय देखेँ :

wendy donigar controversy क्या गांधी छोटी छोटी लड़कियों के साथ सोते थे?(कनिष्क कश्यप की बक बक)

आए दिन ऐसी खबरेँ आती रहती हैँ, जब हिन्दूओँ की आस्था पर प्रहार किया जाता है. कभी भगवान गणेश की तस्वीर गोरी माडलोँ की अंत:वस्त्रोँ पर, कभी भगवान राम और मैया सीता उनके जूतोँ मेँ तो कभी हनुमान को दानव बता कर पेश किया जाना. इन गैर हिन्दू धर्मोँ के ऐसे नाज़ायज पिल्लोँ को यह बात सिधी तौर पर समझ नही आती. यह सब कुछ, हिन्दूओँ के खिलाफ और हमारी संस्कृति के खिलाफ विश्वस्तर पर जारी एक बड़े षड़यंत्र का हिस्सा है . आज की नवयुवा पीढ़ी जो वास्तविक जीवन पद्धति में पूरी तरह क्रिस्चन हो चुकी है. हिन्दू तो केवल जन्म से है . उसके विचार , संस्कार और मूल्य सभी को क्रिस्चन बना दिया गया . अंग्रेजी भाषा में बाकायदा एक शब्द है , जो लिटररी है “Christianize” जिसको कुछ इस तरह परिभाषित किया जाता है .

1Christianize – adapt in the name of Christianity; “some people want to Christianize ancient pagan sites”adapt, accommodate – make fit for, or change to suit a new purpose; “Adapt our native cuisine to the available food resources of the new country”

2. Christianize – convert to Christianity; “missionaries have tried to Christianize native people all over the world”Christianiseconvert – cause to adopt a new or different faith; “The missionaries converted the Indian population”

अब इस पुरे अर्थ को देखें तो उनकी मानसिकता समझ में आ जाती है . वास्तव में शब्द और उसके अध्ययन के फलस्वरूप उपजे भाव , हमारे विचारों और संस्कारों को प्रभावित करते हैं . एक तो इस गुलामीपसंद और पश्चिम के पिछवाड़े से आती बू को अपने घर की अगरबती मानने वाली कांग्रेस सरकार ने, हमारी अपनी भाषा की उपेक्षा कर अन्ग्रेज़िअत का जामा पूरे राष्ट्र को पहनने को विवश कर दिया . दूजे अपने कोढ़ग्रष्ट योजनाओं और राष्ट्रभाषा की उपेक्षा से हिंदी को लगातार हाशिये पर धकेलती जा रही है . अब अंग्रेजी को अपनी प्राथमिक भाषा मानने वाकी आज की युवा पीढ़ी के समक्ष जो ज्ञान का श्रोत है वह इसी तरह की दोगले लेखकों का है . यानी अधिकांश स्तरीय पठनीय सामग्री अब अंग्रेज़ी मेँ ही उप्लब्ध होती है . यहाँ तक की कई देशी लेखक को कलम की वेश्यावृति को अपना चुके है , विदेश के आये पैसों पर पलना और इउनके प्रोपगंडा को यहाँ बढ़ावा देना हीं अपना धर्म मान बैठें हैं. आज अंतरजाल पर हिंदी की दुर्दशा का आलम यह है की आप अगर ” बहन ” या “दीदी ” शब्द को गूगल पर खोजें तो सबसे पहले मस्तराम की कहानियों की लम्बी फेहरिश्त हीं आती है . यह सब कुछ निगरानी तंत्र और सरकार की नज़रों से छुपा तो नहीं है . फिर क्यों हिंदी को अपमानित किया जा रहा है. टी वी सिरिअल ने तो नाश मारी है . मुझे ऐसे निर्देशकों और पटकथा लेखको को ” माँ का दलाल ” कहते हुए कोई अतिश्योक्ति नहीं दिखती . राष्ट्रभाषा ” हिंदी ” की गरिमा , मर्यादा और स्वरूप को शालीनता , उर्वरता और नई उचाईयाँ देने के बजाये उसका नैतिक और चारित्रिक पतन को अपना आदर्श मान बैठे ऐसे हीं लोगों ने हिंदी को बर्बाद कर दिया है . आपको यह लगता है की भाषा और उपर्युक्त विषय का क्या लगाव . ? लगाव है .. उसे समझाने के लिए यह जानना जरोरी है की , किस तरह के पूरे भारत की संस्कृति का इशाईकरण का खेल खेला जा रहा है .

पहला चरण , जो अब पूरा हो चूका है , वह था भारत में अंग्रेजी को व्यवसायिक भाषा और जीविका – उपार्जन की भाषा बनाना . इसके साथ साथ भारत में मकौले की शिक्षा पद्धति को बरकरार रखते हुए , नयी पीढ़ी की सोच और समझ का इशाईकरण . यह चरण पूरा हो गया . आज हम पश्चिम को सभ्य , शिक्षित और सुसंस्कृत मानते हैं . हमारी संस्कृति हमें ढकोसला और ढोंग नज़र आती है . कुछ दिनों पहले , एक न्यूज चैनल की टीम ने दिल्ली के कई नामि – गिरामी कालेजो में दौरा किया . वहां पढकर लौट रहे लडको से पूछा गया कि ” भगवन विष्णु ” का वाहन कौन है . यकीं मानिये ! जवाब इस तरह थे , चूहा , हनुमान , रथ , हाथी और चक्र .. . अब पहले चरण कि सफलता तो तय हो गयी.

भारत कि आज कि पीढ़ी , खास तौर पर जो मेट्रो कल्चर का हिस्सा है . वह अपने को हिन्दू नहीं कह सकती . तमाम हिन्दू मान्यताओं और आस्था पर लगातार आघात हो रहे हैं . कभी राम के अस्तित्व पर सवाल, कभी ज्योतिष विज्ञान को ढोंग कहना और सेकुलरिज्म के नाम पर तो हिन्दुओं का बौद्धिक बलात्कार लगातार जारी है . अब अगले चरण में ऐसे हीं विवादों और नए शोध और पाठ्क्रमों की आड़ में तमाम ” आस्था” के प्रतीकों को बदनाम करना है . क्यों की जीवित आदर्श तो अब बचे नहीं . तमाम मठाधीश और धर्मे ठेकेदार, बाबा बाज़ार में बिक रहे हैं . तो जो आदर्श हमारे मन -मस्तिस्क और हमारे जीवन शैली में विद्धमान हैं , उन्हें मिटाने की यह गहरी साजिश है . शर्म आती है ऐसे हिंदों पर जिनके नशों में अब खून नहीं दौड़ता , जिनके जीवन का मकसद सिर्फ बेड और ब्रेड हीं रह गया है . जिनको कभी इस बात पर ऐतराज़ नहीं होता की हमारे आदर्शो को ऐसे दो कौड़ी के नाजायज़ लेखकों और वैश्या- संस्कृति (पाश्चात्य संस्कृति ) का शिकार बनना पड़ रहा है . मान्यताओं के विध्वंस , आदर्शो के संक्रमण का यह खेल जब तक एक-एक हिन्दू को समझना होगा . नहीं तो वह दिन दूर नहीं , जब एक बार फिर हिन्दुओं के बहू- बेटीओं के बोली , उनके अंगो के आकर की घोषणा कर , सरेआम चौक और चौराहे पर लगाई जाएगी . तब वह अफगानिस्तान था ,पर अब हिंदुस्तान होगा .

यह गलती नौकरशाही की है या “विशिष्ट मानसिकता” की? (सन्दर्भ – विश्वनाथन आनन्द का अपमान)… Vishwanathan Anand Humiliation and Insult

विश्व के नम्बर एक शतरंज खिलाड़ी और भारत की शान समझे जाने वाले विश्वनाथन आनन्द क्या भारत के नागरिक नहीं हैं? बेशक हैं और हमें उन पर नाज़ भी है, लेकिन भारत की नौकरशाही और बाबूगिरी ऐसा नहीं मानती। इस IAS नौकरशाही और बाबूराज की आँखों पर भ्रष्टाचार और चाटुकारिता वाली मानसिकता की कुछ ऐसी चर्बी चढ़ी हुई है, कि उन्हें सामान्य ज्ञान, शिष्टाचार और देशप्रेम का बोध तो है ही नहीं, लेकिन उससे भी परे नेताओं के चरण चूमने की प्रतिस्पर्धा के चलते इन लोगों खाल गैण्डे से भी मोटी हो चुकी है।

viswanathan aanand यह गलती नौकरशाही की है या विशिष्ट मानसिकता की? (सन्दर्भ   विश्वनाथन आनन्द का अपमान)… Vishwanathan Anand Humiliation and Insultविश्वनाथन आनन्द को एक अन्तर्राष्ट्रीय गणितज्ञ सम्मेलन में हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि का सम्मान दिया जाना था, जिसके लिये उन्होंने अपने व्यस्त समय को दरकिनार करते हुए अपनी सहमति दी थी। लेकिन भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने विश्वनाथन आनन्द की “भारतीय नागरिकता” पर ही सवाल खड़े कर दिये, मंत्रालय के अधिकारियों का कहना था कि भले ही आनन्द के पास भारतीय पासपोर्ट हो, लेकिन वह अधिकतर समय स्पेन में ही रहते हैं। विश्वनाथन आनन्द की नागरिकता के सवालों(?) से उलझी हुई फ़ाइल जुलाई के पहले सप्ताह से 20 अगस्त तक विभिन्न मंत्रालयों और अधिकारियों के धक्के खाती रही। हैदराबाद विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट प्रदान करने के बारे में सारे पत्र-व्यवहार 2-2 बार फ़ैक्स किये, लेकिन नौकरशाही की कान पर जूं भी नहीं रेंगी। इन घनचक्करों के चक्कर में विश्वविद्यालय को यह सम्मान देरी से देने का निर्णय करना पड़ा, हालांकि पहले तय कार्यक्रम के अनुसार आनन्द को विश्व के श्रेष्ठ गणितज्ञों के साथ शतरंज भी खेलना था और उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधिभी दी जाना थी। विवि के अधिकारियों और आनन्द, दोनों के सामने ही यह अपमानजनक स्थिति उत्पन्न हो गई क्योंकि उनकी नागरिकता पर ही संदेह जताया जा रहा था।


narendra modi and viswanathan aanand यह गलती नौकरशाही की है या विशिष्ट मानसिकता की? (सन्दर्भ   विश्वनाथन आनन्द का अपमान)… Vishwanathan Anand Humiliation and Insultइस झमेले से निश्चित ही आनन्द ने भीतर तक अपमानित महसूस किया होगा, हालांकि वे इतने सज्जन, शर्मीले और भोले हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी अरुणा से अपने पासपोर्ट की कॉपी मंत्रालय भेजने को कहा, जिसका मंत्रालय के अघाये हुए अधिकारियों-बाबुओं ने कोई जवाब नहीं दिया। एक केन्द्रीय विवि और विश्व के सर्वोच्च खिलाड़ी के इस अपमान के मामले की शिकायत जब राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटिल को की गई तब कहीं जाकर कपिल सिब्बल साहब ने खुद विश्वनाथन आनन्द को फ़ोन करके उनसे माफ़ी माँगी और उन्हें हुई “असुविधा”(?) के लिए खेद व्यक्त किया। आनन्द तो वैसे ही भोले-भण्डारी हैं, उन्होंने भी तड़ से माफ़ी देते हुए सारे मामले का पटाक्षेप कर दिया। (जबकि हकीकत में विश्वनाथन आनन्द संसद में बैठे 700 से अधिक सांसदों से कहीं अधिक भारतीय हैं, एक “परिवार विशेष” से अधिक भारतीय हैं जिसके एक मुख्य सदस्य ने विवाह के कई साल बाद तक अपना इटली का पासपोर्ट नहीं लौटाया था, और किसी नौकरशाह ने उनकी नागरिकता पर सवाल नहीं उठाया…)

पूरे मामले को गौर से और गहराई से देखें तो साफ़ नज़र आता है कि -

1) नौकरशाही ने यह बेवकूफ़ाना कदम या तो “चरण वन्दना” के लिये किसी खास व्यक्ति को खुश करने अथवा किसी के इशारे पर उठाया होगा…

2) नौकरशाही में इतनी अक्ल, समझ और राष्ट्रबोध ही नहीं है कि किस व्यक्ति के साथ कैसे पेश आना चाहिये…

3) नौकरशाही में “व्यक्ति विशेष” देखकर झुकने या लेटने की इतनी गन्दी आदत पड़ चुकी है कि देश के “सम्मानित नागरिक” क्या होते हैं यह वे भूल ही चुके हैं…

4) इस देश में 2 करोड़ से अधिक बांग्लादेशी (सरकारी आँकड़ा) अवैध रुप से रह रहे हैं, इस नौकरशाही की हिम्मत नहीं है कि उन्हें हाथ भी लगा ले, क्योंकि वह एक “समुदाय विशेष का वोट बैंक” है…। बांग्लादेश से आये हुए “सेकुलर छोटे भाईयों” को राशन कार्ड, ड्रायविंग लायसेंस और अब तो UID भी मिल जायेगा, लेकिन आनन्द से उनका पासपोर्ट भी माँगा जायेगा…

5) इस देश के कानून का सामना करने की बजाय भगोड़ा बन चुका और कतर की नागरिकता ले चुका एक चित्रकार(?) यदि आज भारत की नागरिकता चाहे तो कई सेकुलर उसके सामने “लेटने” को तैयार है… लेकिन चूंकि विश्वनाथन आनन्द एक तमिल ब्राह्मण हैं, जिस कौम से करुणानिधि धुर नफ़रत करते हैं, इसलिये उनका अपमान किया ही जायेगा। (पाकिस्तानी नोबल पुरस्कार विजेता अब्दुस सलाम का भी अपमान और असम्मान सिर्फ़ इसलिये किया गया था कि वे “अहमदिया” हैं…)

6) दाऊद इब्राहीम भी कई साल से भारत के बाहर रहा है और अबू सलेम भी रहा था, लेकिन सरकार इस बात का पूरा खयाल रखेगी कि जब वे भारत आयें तो उन्हें उचित सम्मान मिले, 5 स्टार होटल की सुविधा वाली जेल मिले और सजा तो कतई न होने पाये… इसका कारण सभी जानते हैं…

7) विश्वनाथन आनन्द की एक गलती यह भी है कि, मोहम्मद अज़हरुद्दीन “सट्टेबाज” की तरह उन्होंने यह नहीं कहा कि “मैं एक अल्पसंख्यक ब्राह्मण हूं इसलिये जानबूझकर मेरा अपमान किया जा रहा है…, न ही वे मीडिया के सामने आकर ज़ार-ज़ार रोये…” वरना उन्हें नागरिकता तो क्या, मुरादाबाद से सांसद भी बनवा दिया जाता…

icon cool यह गलती नौकरशाही की है या विशिष्ट मानसिकता की? (सन्दर्भ   विश्वनाथन आनन्द का अपमान)… Vishwanathan Anand Humiliation and Insult विश्वनाथन आनन्द की एक और गलती यह भी है कि उनमें “मदर टेरेसा” और “ग्राहम स्टेंस” जैसी सेवा भावना भी नहीं है, क्योंकि उनकी नागरिकता पर भी आज तक कभी कोई सवाल नहीं उठा…

असल में भारत के लोगों को और नौकरशाही से लेकर सरकार तक को, “असली हीरे” की पहचान ही नहीं है, जो व्यक्ति स्पेन में रहकर भी भारत का नाम ऊँचा हो इसलिये “भारतीय” के रुप में शतरंज खेलता है, उसके साथ तो ऐसा दुर्व्यवहार करते हैं, लेकिन भारत और उसकी संस्कृति को गरियाने वाले वीएस नायपॉल को नागरिकता और सम्मान देने के लिये उनके सामने बिछे जाते हैं। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है, कि जहाँ विदेश में किसी भारतीय मूल के व्यक्ति ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर कुछ मुकाम हासिल किया कि मूर्खों की तरह हें हें हें हें हें हें करते हुए उसके दरवाजे पर पहुँच जायेंगे कि “ये तो भारतीय है, ये तो भारतीय है, इनके वंशज तो भारत से आये थे…”, सुनीता विलियम्स हों या बॉबी जिन्दल, उनका भारत से कोई लगाव नहीं है, लेकिन हमारे नेता और अधिकारी हैं कि उनके चरणों में लोट लगायेंगे… सानिया मिर्ज़ा शादी रचाकर पाकिस्तान चली गईं, लेकिन इधर के अधिकारी और नेता उसे कॉमनवेल्थ खेलों में “भारतीय खिलाड़ी” के रुप में शामिल करना चाहते हैं… यह सिर्फ़ चमचागिरी नहीं है, भुलाये जा चुके आत्मसम्मान की शोकांतिका है…।

स्पेन सरकार ने, विश्वनाथन आनन्द के लिये स्पेन की नागरिकता ग्रहण करने का ऑफ़र हमेशा खुला रखा हुआ है। एक और प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी तथा आनन्द के मित्र प्रवीण ठिप्से ने बताया कि स्पेन ने विश्वनाथन आनन्द को “स्पेनिश” खिलाड़ी के रुप में विश्व शतरंज चैम्पियनशिप में खेलने के लिये “5 लाख डॉलर” का प्रस्ताव दिया था, जिसे आनन्द ने विनम्रता से ठुकरा दिया था कि “मैं भारत के लिये और भारतीय के नाम से ही खेलूंगा…” उस चैम्पियनशिप को जीतने पर विश्वनाथन आनन्द को भारत सरकार ने सिर्फ़ “5 लाख रुपये” दिये थे… जबकि दो कौड़ी के बॉलर ईशान्त शर्मा को IPL में सिर्फ़ 6 मैच खेलने पर ही 6 करोड़ रुपये मिल गये थे…

बहरहाल, आनन्द के अपमान के काफ़ी सारे “सम्भावित कारण” मैं गिना चुका हूं… अब अन्त में विश्वनाथन आनन्द के अपमान और उनके साथ हुए इस व्यवहार का एक सबसे मजबूत कारण देता हूं… नीचे चित्र देखिए और खुद ही समझ जाईये…। यदि आनन्द ने सोहराबुद्दीन, शहाबुद्दीन, पप्पू यादव, कलमाडी या पवार के साथ शतरंज खेली होती तो उनका ऐसा अपमान नहीं होता… लेकिन एक “राजनैतिक अछूत” व्यक्ति के साथ शतरंज खेलने की हिम्मत कैसे हुई आनन्द की


झूमने की भी कोई उम्र होती है क्या?

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव संपन्न हो गए .पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम्य सरकारों का जो स्वप्न कभी गांधी जी ने देखा था ,कालांतर में संविधान के तिहत्तरवें संशोधन के जरिये पूर्व- प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उसे साकार कर दिया .आज ग्राम्य सरकारों के रूप में हमारे पास त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था है -ग्राम पंचायत ,क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत जिस में सीधे जनता से चुने प्रतिनिधि विभिन्न पदों पर विराजमान होते हैं -सबसे महत्वपूर्ण उसमें है ग्राम प्रधान का पद जिसे आप पंचायती व्यवस्था का बादशाह या बेगम का पद कह सकते हैं -और सबसे ज्यादा सक्रियता ,तामझाम इसी पद के चुनाव के लिए हुआ -मात्र ग्राम प्रधान बनने के लिए लोगों ने लाख लाख रूपये मतदाताओं की सेवा सुश्रुषा में खर्च कर दिए ...खाने पीने की दिव्य व्यवस्थायें की गयीं -कई जगह पी पीकर लोग झूमते नजर आये -मिलावटी शराब ने पूर्वांचल में कई मतदाताओं को वोट देने के पहले स्वर्ग का द्वार दिखा दिया तो कई प्रत्याशी लोकतंत्र की देहरी के बजाय जेल के लौह दरवाजों को पार कर गए ...इसी आपाधापी के बीच एक दिन एक गाँव में कुछ बच्चे झूमते हुए मिले -पाउच का प्रभाव प्रत्यक्ष था ....बच्चे जिनकी वैधानिक उम्र भी पीने की नहीं है ..ग्राम प्रधानी के चुनाव में प्रतिबंधित पेय का चस्का लेते पाए गए ....

तभी मन में कौंधा था कि आखिर पीने की वैधानिक उम्र क्या होती है ..फिर एक दिनटाइम्स आफ इंडिया ने यही सवाल उठाया कि (शराब ) पीने की वैधानिक उम्र क्या है ? क्या आपको पता है पीने की वैधानिक उम्र ? क्या समीर और सतीश भाई इस जानकारी से रूबरू हैं ? सतीश सक्सेना जी ,दिल्ली में पीने की वैधानिक उम्र क्या है ? और समीर जी, कनाडा में ? उत्तर प्रदेश में लिक्कर की दुकाने इसे १८ वर्ष बताती हैं ....मगर दिल्ली में कहते हैं यह २५ वर्ष है! मगर उत्तर प्रदेश में आबकारी विभाग की अधिकृत सूचना है कि यह २१ वर्ष है ,यह तबसे २१ वर्ष है जब मतदाता की आयु २१ वर्ष मानी गयी थी .मगर बाद में मतदाता की आयु १८ वर्ष हुई तो लोगों ने सहज तर्क से पीने की उम्र भी २१ वर्ष के बजाय १८ वर्ष मान ली है ..नियम के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में कोई भी व्यक्ति जो २१ वर्ष के नीचे हो वह न तो शराब खरीद सकता है और न ही उसका सेवन कर सकता है ..दूसरा प्रतिबन्ध वर्दी मे कर्मचारियों के लिए है- वे भी शराब खरीद नहीं सकते या खरीदने जायं तो उन्हें नहीं दी जा सकती ...और सार्वजनिक स्थल पर तो मद्यपान किसी भी लोक सेवक के लिए निषिद्ध है!
मुझे इस विभाग की बारीकियों की बरोबर जानकारी नहीं है -मेरे एक दो मित्र जो इस मोहकमें में हैं वे भी किसी काम के नहीं हैं -जैसे ब्रांड इत्यादि की जानकारी और उनके तुलनात्मक स्वाद आदि पर मेरे कौतूहलपूर्ण सवालों का जवाब देने के बजाय वे मौन साध जाते हैं ..मैं उलाहना देता हूँ कि यार इस मोहकमें में होने के बाद भी आप इसका स्वाद नहीं चखते तो कहते हैं यह हमारी सेवा शर्तों में एक अनिवार्य प्रावधान नहीं है ,,,और मुझे ही चुप रह जाना होता है .मेरी भी जानकारी इस नशीले सपनीले संसार के बारे में इससे अधिक नहीं है कि जिन नामक/ ब्रांड मद्य महिलाओं में प्रिय है ,रम ज्यादा तेज होती है और व्हिस्की ज्यादा अभिजात्य मद्य का प्रकार है तथा शैम्पेन आदि खुशी के बड़े मौकों के लिए है ....जाहिर है मैं इस डोमेन के लिए पूरा लल्लू ही हूँ मगर मैं स्प्वायल्ट स्पोर्टनहीं हूँ ,प्यार से कोई टोस्ट आफर करता है तो समूह चेतना के नाम पर एकाध पैग ले लेता हूँ मगर अगर होस्ट मद्य पारखी नहीं हुआ तो बिना अंगूर की बेटी की तारीफ़ सुने मन मसोसना भी पड़ जाता है ..मैं समझता हूँ ब्लॉग जगत में ऐसे अनाडी होस्ट नहीं होंगें या कमतर ही होंगे .

आखिर हालात ऐसे न हों तो फिर मजा काहे का ...कि साकी शराब दे कह दे शराब है!उम्मीद है कि आपकी उम्र २१ वर्ष से कम नहीं है !